Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में किन्नौरी पारंपरिक उत्पादों और सूखे मेवों की खेती पर सेब की नवीनतम किस्मों के चलते खतरा मंडरा रहा है. सेब की बढ़ती बागवानी के चलते बाजार से पारंपरिक पहाड़ी जैविक उत्पाद एवं किन्नौरी सूखे मेवे होने गायब होने शुरू हो गए हैं.
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विशेषर नेगी/रामपुर बुशहर: हिमाचल प्रदेश का जनजातीय जिला किन्नौर पारंपरिक पहाड़ी जैविक उत्पादों और स्थानीय सूखे मेवों के लिए देश-दुनिया में जाना जाता है. खासकर तिब्बत व्यापारिक संबंधों के प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले की पहचान इन उत्पादों के कारण रहती है, लेकिन समय के साथ इन उत्पादों का बाजार में कम होना शुरू हो गया है.
इसका मुख्य कारण क्षेत्र के लोगों का सेब की नवीनतम किस्मों की बागवानी की ओर बढ़ता रुझान है. किन्नौर के लोगों और बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक उत्पादों और सूखे मेवे को तैयार करने में श्रम शक्ति और उत्पादन लागत अधिक आती है. वहीं सेब की नवीनतम किस्मों की बागवानी से उन्हें जल्दी और अधिक लाभ हो रहा है.
अब लोग विकल्प के तौर पर सेब की बागवानी की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे में अन्य पारंपरिक फसलों के उत्पादन का क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला में इस बार बादाम, खुरमानी, चिलगोजा, राजमाह, मटर, काला जीरा शिलाजीत और विभिन्न प्रकार के अनाज लाए गए हैं, लेकिन मांग के अनुसार, यह उत्पाद काफी कम है. मांग अधिक और उत्पाद कम होने के साथ महंगे होने से हर खरीददार की जरूरत पूरी नहीं हो रही है.
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किन्नौर लियो गांव के अतुल नेगी ने बताया कि वह बीते कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में स्थानीय उत्पाद लेकर आ रहे हैं. वे खुमानी, बादाम, सेब चिलगोजा आदि लेकर आए हैं. उन्होंने बताया कि सूखे मेवे, दालें और अन्य पारंपरिक फसलें महंगे पढ़ने का एक कारण अब लोग सेब की बागवानी की ओर ज्यादा बढ़ना है. अन्य फसलों की पैदावार कम हो गई है. इसके साथ ही बताया कि पहले वह 12 से 15 क्विंटल खुमानी और तीन क्विंटल बादाम लेकर आते थे, लेकिन इस बार बस 1 क्विंटल खुमानी और 30 किलो बादाम लेकर आए हैं. पैदावार कम होने के कारण दरें भी अधिक हो गई हैं.
किन्नौर रिस्पा के रहने वाले यशवंत सिंह ने बताया कि वे पिछले तीन-चार वर्षों से लवी मेला मैदान में सूखे मेवे और किन्नौरी उत्पादों को लेकर आ रहे हैं. अब तक मेले में कोई तेजी नहीं आई है. एक तो ड्राई फ्रूट्स काफी महंगे हो गए हैं. खरीददार भी यही कह रहे हैं कि महंगे हैं, क्योंकि उत्पादन कम होने के कारण गांव में वैसे ही इनकी दरें अधिक हो गई हैं. उन्होंने बताया कि किन्नौर में लोग खाली जमीन पर अब सेब के बाग अधिक लगा रहे हैं, इसलिए अन्य फसलों के लिए जगह नहीं बची है.
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बागवानी विभाग के विषय विशेषज्ञ डॉ. अश्वनी ने बताया कि नई वैराइटीज के सेब पौधे विदेशों से मार्केट में आने लगे हैं. इनसे अधिक पैदावार के साथ-साथ चार पांच वर्षों में ही अच्छी फसल भी होने लगती है. सेब की पैदावार अच्छी होने के कारण किसानों को अच्छा पैसा मिलने लगा है. इस कारण तेजी से किसान पारंपरिक खेती से बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने बताया हर साल लोग हजारों की संख्या में नई किस्म के सेब पौधे लगा रहे हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि सेब बागवानी की ओर लोग कितना तेजी से बढ़ रहे हैं.
कृषि विभाग के विषय विशेषज्ञ डॉ. राजेश जायसवाल ने बताया कि कृषि विभाग किसानों को अनुदान देकर पारंपरिक फसलों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है. लोगों को बीज भी उपलब्ध कराया जा रहा है, ताकि पारंपरिक फसलें अधिक से अधिक उगाई जा सकें और लोगों का जीवन निरोग व स्वस्थ रहे. ऐसा इसलिए, क्योंकि इन फसलों में औषधि गुण अधिक होते हैं.
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