नई दिल्लीः पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को एफ-35 लड़ाकू विमान बेचने का प्रस्ताव दिया था. भारत के पास पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान नहीं है और ये एडवांस्ड फाइटर जेट नई दिल्ली की जरूरतों को पूरा कर सकता है. लेकिन पेच यह है कि भारत के पास S-400 रूसी एयर डिफेंस सिस्टम है जो लड़ाकू विमानों को मार गिराने के लिए बनाया गया है. वहीं अमेरिकी लड़ाकू विमान एफ-35 रूसी एयर डिफेंस सिस्टम से बचने के लिए डिजाइन किया गया है. ऐसे में भारत को दोनों देशों को इन सिस्टम को अलग करने के सुरक्षा उपाय करने पड़ सकते हैं.
क्या है अमेरिका की चिंता
रिपोर्ट्स की मानें तो पूर्व में अमेरिका को रूसी एस-400 सिस्टम की मौजूदगी से आपत्ति थी. वैसे भी पूरी दुनिया में कोई भी देश इन दोनों सिस्टम को एक साथ इस्तेमाल नहीं कर रहा है. अमेरिका की चिंता यह है कि एफ-35 लड़ाकू विमान भारत को मिलने के बाद एस-400 को एडवांस्ड फाइटर जेट का पता लगाने के लिए तैयार किया जा सकता है.
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि दोनों प्रणालियों को किस तरह अलग रखा जाएगा, इसके लिए क्या आश्वासन और सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं.
गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट डील
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत ने जिन पहलुओं को ध्यान में रखकर फ्रांस से राफेल डील की थी, उसी तर्ज पर अमेरिका से पांचवीं पीढ़ी के विमान खरीदने के लिए योजना बनाई जा रही है. भारत ये डील गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट करने की योजना बना रहा है. इससे भारत को अमेरिकी फोर्सेज के बराबर डिलीवरी और मूल्य तय होने की गारंटी मिलेगी. साथ ही स्वदेशी विमानों के बनने तक इसे एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में देखा जाएगा.
भारत ने सीमित संख्या में एफ-35 लड़ाकू विमान खरीद सकता है. इसकी वजह रखरखाव से लेकर संचालन तक में अत्यधिक लागत का होना है. एफ-35 को अस्थायी व्यवस्था के तौर पर पेश करने की संभावना है.
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