पूरी दुनिया में बजता है भारत के इस खिलौने का डंका, जानें क्या है चन्नापटना की दास्तां

हम सभी बचपन से चन्नापटना खिलौने से खेलते आए हैं. कई घरों में तो हमने इसकी सजावट भी देखी है. हालांकि, क्या आपने कभी सोचा है कि ये खिलौने कहां से आएं और कौन इन्हें भारत लेकर आया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका कनेक्शन टीपू सुल्तान के साथ है.

Written by - Bhawna Sahni | Last Updated : Feb 6, 2025, 07:50 PM IST
    • टीपू सुल्तान से है खिलौनों का कनेक्शन
    • घरों में होते हैं शोपीस की तरह डेकोरेट
पूरी दुनिया में बजता है भारत के इस खिलौने का डंका, जानें क्या है चन्नापटना की दास्तां

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले ही दीनों बजट के दौरान भारत को खिलौने का हब बनाने का ऐलान कर दिया है. उन्होंने बताया कि मेक इन इंडिया के तहत खिलौना उद्योग में एक विशेष योजना लाने की तैयारी की जा रही है. दूसरी ओर पीएम नरेंद्र मोदी भी 'मन की बात' में भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देने की बात कह चुके हैं. उन्होंने इस दौरान कर्नाटक के खिलौनों का भी जिक्र किया. हालांकि, क्या आप जानते हैं कर्नाटक के मशहूर चन्नापटना खिलौनों को पूरी दुनिया में एक खास पहचान हासिल हो चुकी है. कम ही लोग है जो चन्नापटना खिलौनों का इतिहास जानते होंगे, चलिए आज इसी मुद्दे पर चर्चा की जाए.

कर्नाटक के शहर के नाम से पड़ा खिलौनों नाम

कर्नाटक के रामनगर जिले से आने वाले खिलौने चन्नापटना को लड़की से बनाया जाता है. इन खिलौनों में की बनावट और अंदाज में ही देसी अंदाज छलकता है. यही कारण भी है कि ये खिलौने दुनियाभर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. दरअसल, कर्नाटक के एक शहर चन्नापटना के नाम पर ही इन लकड़ी के खिलौना का नाम पड़ा है. इस शहर को इन खिलौनों की वजह से ही जाना जाता है. यहां के लोगों की आमदनी का अहम स्रोत ही ये खिलौने माने जाते हैं.

क्या है चन्नापटना खिलौनों की कहानी 

शायद ही किसी को पता होगा इन खूबसूरत खिलौनों का कनेक्शन मैसूर के राजा रहे टीपू सुल्तान के साथ है. दरअसल, 18वीं शताब्दी की बात है, जब टीपू सुल्तान को फारस से लकड़ी से बना एक खिलौना किसी ने तोहफे में दिया था. इसे देखकर सुल्तान इतना खुश हुए कि खिलौने बनाने वाले कारीगरों को उन्होंने हिन्दुस्तान बुलाया और यहां के कारीगरों को भी उस कला से रूबरू कराने के लिए कहा. वहीं, इन खिलौनों की कारीगरी को सीखने वाले इसी शहर में आकर बस गए. ऐसे में खिलौनों का दायरा चन्नापटना से भी बाहर जाने लगा.

कैसे बनते हैं खिलौने

इन खिलौनों का इतिहास 300 साल पुराना बताया जाता है. लकड़ी से बनने वाले ये खिलौने वजन में काफी हल्के होते हैं, ताकि बच्चों को इनके साथ खेलने में कोई परेशानी न हो. पहले के समय में इन्हें आइवरी लड़की का इस्तेमाल कर बनाया जाता था. इन पर चुकंदर और हल्दी के पानी से सजावट होती थी. हालांकि, बदलते वक्त के साथ इन टॉयस को देवदार, सागौन, पाइनवुड और गूलर की लड़की से भी बनाया जाने लगा. सजाने के लिए पेंट का इस्तेमाल होने लगा. इसे पहले हाथों से ही बनाया जाता था, लेकिन आज इसके लिए मशीनों का इस्तेमाल किया जाने लगा है.

शोपीस के तौर पर भी होते हैं इस्तेमाल

इन खिलौनों को बनाने के तरीके से लेकर इसकी बनावट ने भी बच्चों से लेकर बड़ों का ध्यान भी अपनी ओर खींचा है. जहं एक ओर बच्चे आसानी से इन खिलौनों से खेल पाते हैं, वहीं कुछ घरों में तो इन्हें शोपीस के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. इन खिलौनों को अलग-अलग आकारों में बनाया जाता है और यही कारण है कि इन्हें बनाने में लकड़ी की बर्बादी नहीं होती, इसी वजह से कारीगरों के लिए यह फायदे का सौदा भी साबित होती है.

इन देशों में होते हैं एक्सपोर्ट

भारत के चन्नापटना टॉयज की मांग दुनियाभर में बढ़ती जा रही है. जहां एक चीनी खिलौनों का मार्केट लगातार बढ़ता जा रहा है ऐसे में चन्नापटना की पॉपुलैरिटी को बनाए रखने के लिए इन्हें अलग-अलग तरीकों से भी मशीन की सहायता से बनाया जाने लगा है. आज इन खिलौनों की मांग अमेरिका, जापान, साउथ कोरिया, मिडिल ईस्ट और यूरोपीय देशों में खूब की जा रही है. वहीं, इस डिजिटल दौर में ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर भी इन खिलौनों को बेचा जा रहा है.

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