समुद्र में अब कोई सानी नहीं! अमेरिका में पीएम मोदी ने की ऐसी डिफेंस डील कि बढ़ जाएगा इंडियन नेवी का दबदबा

भारत और अमेरिका ने समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए मिलकर आधुनिक समुद्री ड्रोन, ग्लाइडर और निगरानी सिस्टम बनाने का निर्णय लिया है. इस पहल के तहत ऐसे स्वायत्त हथियार बनाए जाएंगे, जो समुद्र में लंबे समय तक काम कर सकें और जहाजों की गतिविधियों पर नजर रख सकें. इस समझौते की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी नेतृत्व के बीच बैठक के दौरान की गई थी.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 16, 2025, 05:04 PM IST
  • रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने का है लक्ष्य
  • इन प्रमुख सिस्टम्स का किया जाएगा निर्माण
समुद्र में अब कोई सानी नहीं! अमेरिका में पीएम मोदी ने की ऐसी डिफेंस डील कि बढ़ जाएगा इंडियन नेवी का दबदबा

नई दिल्लीः भारत और अमेरिका ने समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए मिलकर आधुनिक समुद्री ड्रोन, ग्लाइडर और निगरानी सिस्टम बनाने का निर्णय लिया है. इस पहल के तहत ऐसे स्वायत्त हथियार बनाए जाएंगे, जो समुद्र में लंबे समय तक काम कर सकें और जहाजों की गतिविधियों पर नजर रख सकें. इस समझौते की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी नेतृत्व के बीच बैठक के दौरान की गई थी.

रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने का है लक्ष्य

यह परियोजना 'ऑटोनॉमस सिस्टम्स इंडस्ट्री अलायंस (ASIA)' के तहत शुरू की गई है, जिसका मकसद भारत और अमेरिका की कंपनियों को साथ लाकर रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देना है. इन नए सिस्टम्स का इस्तेमाल भारत और अमेरिका की सेनाओं द्वारा किया जाएगा और साथ ही इनका निर्यात भी संभव होगा.

इस पहल से भारत के रक्षा उद्योग को मजबूती मिलेगी, खासकर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) और सागर डिफेंस इंजीनियरिंग जैसी कंपनियों को बड़ा फायदा होगा. इस नई पहल के तहत कई महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों का सह-निर्माण किया जाएगा.

इन प्रमुख सिस्टम्स का किया जाएगा निर्माण

वेव ग्लाइडर अनमैंड सरफेस वीइकल (Wave Glider Unmanned Surface Vehicle) - यह एक ऐसा स्वायत्त निगरानी ड्रोन है, जो बिना ईंधन भरे समुद्र में एक साल तक रह सकता है. यह जलयान और पनडुब्बियों की गतिविधियों को रिकॉर्ड करने की क्षमता रखता है.

सी पिकेट ऑटोनॉमस सर्विलांस सिस्टम (Sea Picket Autonomous Surveillance System) - यह एक मूरिंग (स्थायी रूप से तैनात) निगरानी प्रणाली है, जो सतह और पानी के अंदर की गतिविधियों पर लगातार नजर रखती है. यह छह साल तक बिना किसी रुकावट के काम कर सकती है.

लो फ्रीक्वेंसी एक्टिव टोड सोनार (Low Frequency Active Towed Sonar) - यह सोनार सिस्टम भारतीय युद्धपोतों पर लगाया जाएगा, जिससे पानी के अंदर मौजूद खतरों का आसानी से पता लगाया जा सकेगा. इसका निर्माण अमेरिका की एल3 हैरिस (L3 Harris) और भारत की भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) मिलकर करेंगी.

मल्टी-स्टेटिक एक्टिव सोनोबॉयज (Multi-Static Active Sonobuoys) - यह अंडरवाटर निगरानी प्रणाली है, जिसे अमेरिका की अल्ट्रा-मैरिटाइम और भारत की BDL मिलकर विकसित करेंगी.

ट्रिटन ऑटोनॉमस अंडरवाटर एंड सरफेस वीइकल (Triton Autonomous Underwater and Surface Vehicle) - यह एक खास तरह का ड्रोन है, जो पानी की सतह और पानी के अंदर जाकर निगरानी कर सकता है. इसे अमेरिका की ओशियनरिंग कंपनी बनाती है. इसे अब भारत में भी सह-निर्मित किया जाएगा.

दोनों देशों के बीच तकनीकी आदान-प्रदान आसान

इस नई पहल से भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग और मजबूत होगा. अमेरिका पहले ही भारत को स्ट्रैटेजिक ट्रेड अथॉराइजेशन-1 (STA-1) का दर्जा दे चुका है. इससे अत्याधुनिक तकनीकों का आदान-प्रदान आसान हुआ है.

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ेगी

इसके अलावा इस परियोजना से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ेगी और भारत की समुद्री क्षमताओं को मजबूती मिलेगी. इससे न केवल भारतीय नौसेना को फायदा होगा, बल्कि मित्र देशों को भी आधुनिक रक्षा तकनीक उपलब्ध कराई जा सकेगी. यही नहीं यह संयुक्त रक्षा सहयोग 'मेक इन इंडिया' पहल को भी मजबूती देगा और भारतीय रक्षा उत्पादन को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा.

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