Independence Day 2022: अंग्रेजों की बनाई इन फिल्मों को देख खौल उठेगा आपका खून, एक बार फिर हो जाएगी क्रांति

Independence Day 2022: 1930 के दशक में जब ब्रिटिश और अमेरिकी डायरेक्टर्स की ये फिल्में जब भारत आई तो उस वक्त भारत तेजी से बदल रहा था. उन्होंने भारतीयों को अपनी फिल्मों में नीच और उत्पाति बताया.

Written by - Kamna Lakaria | Last Updated : Aug 15, 2022, 09:50 AM IST
  • फिल्म 'द ड्रम' के रिलीज होते ही भारत में दंगे भड़क उठे
  • पुलिस को मामला शांत करने में कम से कम हफ्ता लग गया
Independence Day 2022: अंग्रेजों की बनाई इन फिल्मों को देख खौल उठेगा आपका खून, एक बार फिर हो जाएगी क्रांति

नई दिल्ली: Independence Day 2022: 1947 से पूर्व भारत के हालात किसी से भी छिपे नहीं हैं. ऐतिहासिक किताबों में काले अक्षरों में दर्ज वो डरावने दिन किसी खौफनाक सपने से कम नहीं है. ऐसे में 1929 और 1939 के बीच हॉलीवुड और ब्रिटिश फिल्मों का एक दौर चला. इन फिल्मों में भारत को सेंट्रल थीम के रूप में चुना गया. भारतीयों को पागल बताया गया और उन पर नस्लभेदी टिप्पणियां भी की गईं. ये फिल्में भारत आईं और फिर भारतीय दर्शकों ने इन फिल्मों का जमकर विरोध किया.

'द ड्रम', जोल्टन कोर्डा

1938 में बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के मामले में ये ब्रटिश साम्राज्य के दौरान रिलीज हुई सबसे सक्सेसफुल फिल्म थी. फिल्म के रिलीज होते ही भारत में दंगे भड़क उठे. पुलिस को इस मामले को शांत करवाने में कम से कम एक हफ्ता लग गया. फिल्म में पठानों की इमेज को खराब करने की कोशिश की गई थी. हकीकत में पठान हमेशा से ब्रिटिश हुकूमत के अंगेस्ट ही रहे. फिल्म में हिंदू-मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने का भी प्यास किा गया.

'गूंगा दिन', जॉर्ज स्टीवन्स

1939 में जब ये फिल्म सिनेमाघरों में आई तो उस वक्त ब्रिटिश हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का भारतीय मन बना चुके थे. 'गूंगा दिन' फिल्म में तीन सार्जेंट की दोस्ती के बारे में बताया गया था. फिल्म में अंग्रेजों को ईमानदार और शांति प्रिय दिखाया गया. जबकि स्थानीय लोगों (भारतीयों) को राक्षस और उत्पाति बताया गया. इस फिल्म में ठगों को हिंदू बताकर मुसलमानों को साइडलाइन किया गया ताकि भारत के आजादी के आंदोलन में से हिंदू-मुसलमान एकता को कम किया जा सके.

द रेन्स केम, क्लैरेंस ब्राउन

1939 में आई इस फिल्म की कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प थी पहली दो फिल्मों की तरह ये भी ब्रिटिश साम्राज्य की बढ़-चढ़कर तारीफ करती दिख रही थी. फिल्म में एक बात अच्छी थी कि इसमें हर तरह के भारतीय तबके अनपढ़ से लेकर पढ़े-लिखे को दिखाया गया था. फिल्म में ये भी दिखाया गया कि कैसे अंग्रेज स्थानीय लोगों को आगे बढ़ने में मदद करते हैं. फिल्म में ये बात पूरी तरह झुठला दी गई कि बंगाल में अकाल भी ब्रिटिश सरकार की ही देन था.

1930 के दशक में जब ये फिल्मे भारत आई उस वक्त भारत तेजी से बदल रहा था. वेस्ट की फिलमें जैसे 'रॉबिनहुड', 'टार्जन', 'किंग कॉन्ग' और 'ऐप मैन' को भारत ने बहुत पसंद किया. शायद यही वजह थी कि उन्हें लगा कि भारत की जनता इन फिल्मों को पचा पाएगी. भले ही इन फिल्मों ने यूएस और ब्रिटेन में अच्छा बिजनेस किया था लेकिन भारतीयों नें इनका जमकर विरोध किया.

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