Parivartini Ekadashi 2022: पार्श्व एकादशी पर करें विष्णु सहस्रनाम का पाठ, जानिए व्रत कथा

Parivartini Ekadashi 2022 vrat katha: परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. इस दिन ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ अत्यधिक शुभ माना जाता है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 6, 2022, 09:33 AM IST
  • भगवान के वामन रूप की होती है पूजा
  • इस दिन भगवान विष्णु लेते हैं करवट
Parivartini Ekadashi 2022: पार्श्व एकादशी पर करें विष्णु सहस्रनाम का पाठ, जानिए व्रत कथा

नई दिल्ली. परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है. भक्त  भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों का पाठ करते है और इसकी कथा सुनते हैं. इसके साथ ही ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ इस दिन अत्यधिक शुभ माना जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ने इस व्रत की पूरी विधि और कथा के बारे में बताया है.

श्रीकृष्ण कहते हैं हे राजन! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था. वह मेरा परम भक्त था. विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ का आयोजन करता था, लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया.

इस कारण सभी देवता एकत्र होकर सोच-विचार कर भगवान के पास गए. बृहस्पति सहित इंद्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे. अतरू मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया.

इतनी वार्ता सुनकर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता?
श्रीकृष्ण कहने लगे, मैंने बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा ये मुझको तीन लोक के समान है और हे राजन यह तुमको अवश्य ही देनी होगी.

राजा बलि ने इसे तुच्छ याचना समझकर तीन पग भूमि का संकल्प मुझको दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर यहां तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, महरूलोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया. 

तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़कर कहा कि हे राजन! एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए. अब तीसरा पग कहां रखूं? तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया. फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूंगा. विरोचन पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई.

इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए. इस दिन तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना उचित है. रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए.
जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं. जो पापनाशक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उनको हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है.

(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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