Spy: खूबसूरत लेकिन खतरनाक! भारत से नाता रखने वाली इस जासूस की जर्मनी तक थी दहशत
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Spy: खूबसूरत लेकिन खतरनाक! भारत से नाता रखने वाली इस जासूस की जर्मनी तक थी दहशत

True Spy Stories: जासूसी आदिकाल से होती रही है. इस काम में महिलाओं को परफेक्ट माना जाता है. सीमा हैदर और अंजू को भी जासूसी के एंगल से देखा गया. युद्ध हो ना हो राज उगलवाने में जासूसों का इस्तेमाल हमेशा होता आया है. सच्ची कहानियों में अब चर्चा भारतीय मूल की महिला जासूस की जिससे हिटलर भी खौफ खाता था.

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Indian spy princess noor inayat: जासूस कहें या एजेंट (Spy) उनकी जिंदगी इतनी सीक्रेट होती है कि उनका राज मरते दम तक राज ही रहता है. हालांकि ये भी सच है कि समय-समय पर दुनियाभर के जासूसों की जिंदादिली की कहानियों से पर्दा उठता रहता है. दरअसल युद्ध में महिला जासूसों का इस्तेमाल नई बात नहीं है. यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध में अपनी अहम भूमिका निभाने वाली कुछ महान महिला जासूसों की याद दिला दी है. इस कड़ी में अब बात उस भारतीय महिला जासूस की जिससे हिटलर भी खौफ खाता था.

पहले-दूसरे विश्व युद्ध में इनके थे चर्चे

पहले विश्व युद्ध में माता हारी (Mata Hari) नाम की महिला जासूस फ्रांस के लिए जासूसी करती थीं. उन्हें 50000 मौतों का दोषी माना जाता है. दूसरे विश्व युद्ध में भी जोसेफिन बेकर नाम की Spy ने बड़ी भूमिका निभाई थी. रियल स्पाई स्टोरीज के इस पार्ट में आज आपको बताते हैं उस भारतीय जासूस की सच्ची कहानी जिससे हिटलर जैसा ताकतवर तानाशाह भी डरता था.

नूर इनायत खान की दिलचस्प कहानी

ये बात आजादी से पहले यानी ब्रिटिश इंडिया की है. भारतीय मूल की नूर इनायत जांबाज जासूस थीं. नूर मैसूर के बादशाह टीपू सुल्तान की वंशज थीं. उन्होंने दूसरे वर्ल्ड वार में हिटलर की सेना के कई सीक्रेट ब्रिटेन तक पहुंचाए. उनके नाम से हिटलर भी खौफ खाता था. नूर की जिंदगी पर एक किताब 'द स्पाई प्रिसेंज: द लाइफ़ ऑफ़ नूर इनायत ख़ान' भी लिखी गई है. जिसकी लेखिका श्राबणी ने उनकी जाबांजी के हैरतअंगेज किस्से लिखे हैं.

हिंदुस्तानी पिता, मां अमेरिकी

'बीबीसी' की रिपोर्ट के मुताबिक, नूर का जन्म मॉस्को और परवरिश फ्रांस में हुई, लेकिन वो ब्रिटेन में रहीं. उनके पिता हिंदुस्तानी और मां अमरीकन थीं. दूसरे विश्व युद्ध के समय उनका परिवार पेरिस में रहता था. जर्मनी के हमले के बाद उन्होंने देश छोड़ने का फैसला किया. नूर एक वालंटियर के तौर पर ब्रिटिश आर्मी में शामिल हो गईं. वह उस देश की मदद करना चाहती थीं, जिसने उन्हें अपनाया था. उनका मकसद फासीवाद से लड़ना था.

ब्रिटिश सेना की एजेंट

1914 में जन्मीं नूर जब ब्रिटिश सेना की एजेंट बनीं तो उन्हें एक रेडियो ऑपरेटर की प्रोफाइल में ट्रेन्ड करके 1943 में फ्रांस भेजा गया. उनके काम में पकड़े जाने या मौत का खतरा था. जर्मनी की सीक्रेट पुलिस 'गेस्टापो' जासूसों के इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल्स की पहचान में माहिर थी. नूर की ख़तरनाक भूमिका को देखते हुए लोग मानते थे कि फ्रांस में 6 हफ्ते से अधिक जीवित नहीं रह पाएंगी. नूर के कई साथी जल्द ही गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन वह बच गईं.

कम उम्र में हुई मौत

उसी साल वो धोखे का शिकार हो गईं. उनके किसी सहयोगी की बहन ने जर्मनों के सामने उनका राज खोल दिया. धोखा करने वाली लड़की नूर की खूबसूरती से जलती थी. गद्दारी की खबर की पुष्टि होते ही जर्मन पुलिस ने पकड़ने पहुंची तो नूर ने सरेंडर नहीं किया. वो बहादुरी से लड़ी लेकिन वहां से निकल नहीं पाईं. जर्मन फौज ने ब्रिटेन के ऑपरेशन की जानकारी निकलवाने के लिए टॉर्चर किया पर उनका मुंह न खुलवा सके.

एक साल बाद उन्हें दक्षिणी जर्मनी के एक यातना शिविर में भेज दिया गया. नाजियों ने उन्हें तीन अन्य महिला जासूसों के साथ गोली मार दी. मौत के वक्त उनकी उम्र महज 30 साल थी. इस तरह एक काबिल जासूस की कहानी का अंत हो गया.

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