Samjhauta Express: भारत की एक ट्रेन पिछले करीब 6 सालों से पाकिस्तान में खड़ी है. यह बात बहुत सारे लोगों को पता होगी, लेकिन भारत देश में ऐसे कई लोग होंगे, जिन्हें इसकी शायद ही जानकारी हो. लेकिन यह सच है कि भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती का प्रतीक मानी जानी वाली यह ट्रेन अब पाकिस्तान में ही खड़ी-खड़ी सड़ रही है. बोगियों में जंग लग गए हैं. छह सालों से इस ट्रेन का चक्का चला ही नहीं है. तो आइए जानते हैं इस ट्रेन का इतिहास, जो भारत और पाकिस्तान के बीच शांति का प्रतीक थी, परिवारों को जोड़ती थी, तीर्थयात्रियों की सेवा करती थी और सीमा पार व्यापार का समर्थन करती थी. उसे “प्रेम की ट्रेन” भी कहते थे.
भारत की एक ट्रेन पिछले 6 सालों से पाकिस्तान में खड़ी है. समय के साथ, इस ट्रेन की बोगियों की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि वे अब सड़ने की कगार पर पहुंच गई हैं. यह ट्रेन कोई और नहीं बल्कि समझौता एक्सप्रेस है, जो कभी भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती का प्रतीक मानी जाती थी. आइए जानते हैं इस ट्रेन से जुड़े सम्पूर्ण इतिहास को…
दरअसल, समझौता एक्सप्रेस की शुरुआत 22 जुलाई 1976 को अटारी-लाहौर के बीच हुई. यह ट्रेन भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुए शिमला समझौते (1971) के तहत चलाई गई थी. शुरुआत में यह ट्रेन हर रोज चलती थी, लेकिन 1994 में इसे सप्ताह में केवल दो दिन चलाने का फैसला लिया गया.आपको बता दें कि 2019 में जब भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया, तो इसके बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव बढ़ गया. इस कारण समझौता एक्सप्रेस को बंद कर दिया गया. उस समय भारत की ट्रेन के 11 डिब्बे पाकिस्तान के लाहौर में थे. ये डिब्बे अभी भी वहीं खड़े हैं और जर्जर होने की स्थिति में पहुंच चुके हैं.
दोनों देशों के बीच तय समझौते के अनुसार, जुलाई से दिसंबर: भारतीय बोगियों का उपयोग होता था, लेकिन इंजन पाकिस्तान का होता. जनवरी से जून: पाकिस्तानी बोगियां और इंजन भारत में इस्तेमाल होते थे. जब 2019 में रेल सेवा स्थगित की गई, तब भारत की 11 बोगियां पाकिस्तान में थीं और पाकिस्तान के 16 बोगियां भारत के अटारी रेलवे स्टेशन पर हैं.
समझौता एक्सप्रेस का निलंबन पहले कश्मीर में फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान को भारत के कूटनीतिक जवाबों में से एक था. अटारी (भारत) और लाहौर (पाकिस्तान) के बीच हर गुरुवार और सोमवार को 29 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली शांति ट्रेन, जो अटारी और वाघा के बीच सिर्फ़ 3.25 किलोमीटर की सबसे छोटी अंतरराष्ट्रीय दूरी तय करती थी, ने भी बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, 2015 में किसानों के आंदोलन के दौरान और पुलवामा के बाद कई बार निलंबन के दौरान द्विपक्षीय कटुता का खामियाजा भुगता है.
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और कूटनीतिक गतिरोध के कारण यह ट्रेन आज भी वहीं खड़ी है. इन 6 सालों में बोगियों की हालत खराब हो गई है, लेकिन दोनों देश अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं. समझौता एक्सप्रेस भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती का एक अहम प्रतीक थी, लेकिन राजनीतिक और कूटनीतिक कारणों से यह अब इतिहास बनती दिख रही है. उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच कोई समाधान निकले और यह ट्रेन अपने देश लौट सके. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमृतसर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. माणिक महाजन ने कहा: "समझौता एक्सप्रेस के फिर से शुरू होने से न केवल दोनों पक्षों के लिए व्यापार और समृद्धि आएगी, बल्कि तीर्थयात्रियों की प्रार्थनाएँ भी पूरी होंगी और पंजाब में चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. इस मामले को लंबे समय तक नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए."
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