क्या सरोगेसी जरूरत के बजाए बन रहा फैशन, इसके लिए क्‍या हैं कानून?
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क्या सरोगेसी जरूरत के बजाए बन रहा फैशन, इसके लिए क्‍या हैं कानून?

प्रियंका चोपड़ा के सरोगेसी मदर बनने के बाद से इस मुद्दें पर चर्चा तेज हो गई है. आज से देश में सरोगेसी कानून में किए बदलाव को भी लागू किया जाएगा. तो चलिए आपके मन में इसको लेकर जो भी परेशानी हैं वो इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद जरूर दूर होगी.

सरोगेसी के बारे में जानें सबकुछ

नई दिल्ली: बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने जैसे ही ऐलान किया है कि वह सरोगेसी (Surrogacy) से मां बन गई हैं, तो उसके बाद पूरे देश में सरोगेसी को लेकर चर्चाएं तेज हो गईं. दरअसल, इसको लेकर प्रत्येक देश में अलग-अलग कानून हैं. इतना ही नहीं भारत में भी सरोगेसी कानून (Surrogacy Law)में पिछले साल बदलाव किया गया था, लेकिन पिछले कानून की आड़ में अधिकतर मजबूर और बेबस लोगों का फायदा उठाया जा रहा है. कुल मिलाकर बदलाव किए गए कानून में यह तय किया गया है कि सरोगेसी के दौरान महिला का किसी भी प्रकार शोषण न किया जाए. तो चलिए जानते हैं कि सरोगेसी कितने प्रकार की होती है? भारत में इसको लेकर क्या कानून हैं? और क्या अब सरोगेसी जरूरत के बजाए फैशन बन गया है. इस रिपोर्ट के माध्यम से आपको सरोगेसी से संबंधित सभी प्रश्नों का उत्तर आपको मिलेगा.

  1. सरोगेसी से जुड़ी हर समस्या का यहां मिलेगा समाधान
  2. जानें- क्या होती है सरोगेसी
  3. इसको लेकर भारत में क्या है कानून

सरोगेसी से जुड़े कानून में हुआ बदलाव

दरअसल, बॉलीवुड और हॉलीवुड में सरोगेसी से बच्चे पैदा करने का चलन अब जरूरत से ज्यादा फैशन बनता जा रहा है. हम किसी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में ज्यादा नहीं बताना चाहते क्योंकि ये उनकी प्राइवेसी से जुड़ा मामला है, लेकिन आज ये खबर जानना आपके लिए क्यों जरूरी है. ये हम आपको बता देते हैं. पूरी दुनिया में सेरोगेसी से जुड़े हुए अलग-अलग कानून बने हुए हैं. भारत में भी इससे जुड़ा कानून और उसके प्रावधान हैं, लेकिन कल रात 12 बजे से सेरोगेसी से जुड़े कानून में बड़े बदलाव हो गए हैं.

क्या है सरोगेसी 

आसान भाषा में बताएं तो सरोगेसी बच्चा पैदा करने की एक आधुनिक तकनीक है. इसके जरिए कोई कपल बच्चा पैदा करने के लिए किसी महिला की कोख किराए पर ले सकता है. सरोगेसी के जरिये कोई महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिये किसी दूसरे कपल के लिए प्रेगनेंट होती है. जो महिला अपनी कोख में दूसरे का बच्चा पालती है, वो सेरोगेट मदर कहलाती है. 

किया जाता है एग्रीमेंट

डॉक्टरों के मुताबिक, एक महिला और एक बच्चे की चाह रखने वाले कपल के बीच एक तरह का एग्रीमेंट किया जाता है. इसके तहत सरोगेसी  कराने वाला कपल ही कानूनी रूप से बच्चे के असली माता पिता होते हैं. वहीं जो सरोगेट मां होती है, उसे सरोगेस  कराने वाले कपल की तरफ से प्रेग्नेंसी के दौरान अपना ख्याल रखने और मेडिकल जरूरतों के लिए पैसे भी दिए जाते हैं.

2 तरह की होती हैं सरोगेसी

बता दें कि सरोगेसी भी दो तरह की होती है. पहली है ट्रेडिशनल सरोगेसी तो दुसरी जेस्टेशनल सरोगेसी. ट्रेडिशनल सरोगेसी में होने वाले पिता या डोनर का स्पर्म  सरोगेट महिला के एग्स से मैच कराया जाता है. इस सरोगेसी में सरोगेट मां ही बच्चे की बायोलॉजिकल मां होती है. वहीं दूसरी तरफ जेस्टेशनल सेरोगेसी में सरोगेट मां का बच्चे से कोई जेनेटिक संबंध नहीं होता है. इस सरोगेसी में सरोगेट मां के एग्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता है और वो बच्चे को जन्म देती हैं. इसमें होने वाले माता पिता के स्पर्म और एग्स का मेल टेस्ट ट्यूब बेबी (ivf तकनीक) के जरिये कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूट्रस में इम्प्लांट किया जाता है.

जेस्टेशनल सरोगेसी भी दो तरह की होती हैं 

1. अल्ट्रस्ट्रिक सरोगेसी तब कही जाती है जब कपल किसी सरोगेट महिला को अपने साथ रहने की परमिशन देता है और उसके सारे खर्च उठता है. ये महिला कपल की परिचित या अपरिचित भी हो सकती है. बता दें कि नए नियम के हिसाब से अल्ट्रस्ट्रिक सरोगेसी में सरोगेट मदर सिर्फ कपल की परिचित होनी चाहिए जो उसके साथ रहे. 

2. कामर्शियल सरोगेसी तब कही जाती है जब कपल किसी सरोगेट महिला को अपने साथ तो नही रखता है, लेकिन उसे खर्च देता है.डॉक्टरों के मुताबिक, पहले भारत में कामर्शियल सरोगेसी काफी तेजी से चलन में थी और इसका खर्च भी 15-30 लाख के बीच होता था. बता दें कि इसी तरह की सरोगेसी पर नए नियम के तहत बैन लगाया जा रहा है.

क्यों पड़ती है सरोगसी की जरूरत

दरसलस, सरोगेसी से बच्चा पैदा करने की कई वजहें हैं. पहली वजह तो ये की ,किसी कपल के अपने बच्चे नहीं हो पा रहे हों. दूसरी वजह ये कि गर्भ धारण की वजह से किसी महिला को जान का खतरा या दूसरे खतरे होने की आशंका हो. तीसरी वजह ये कि कोई महिला खुद अपना बच्चा पैदा न करना चाहती हो. हालांकि, कई गरीब महिलांए अपने परिवार का भविष्य सुरक्षित करने और बच्चों की सही देखभाल और फिर पढ़ाई या किसी के इलाज के लिए खर्चा उठाने के लिए सरोगेसी को पैसे कमाने का एक आसान जरिये की तरह भी देखती हैं.

भारत में सरोगेसी का गलत इस्तेमाल

भारत में भी सेरोगेसी के बढ़ते दुरुपयोग को देखते हुए इसके लिए नए नियम तय कर दिए गए हैं. आज से इन नियमों में क्या बदलाव होने जा रहा है.  अबतक जो सरोगेसी होती थी, उसमें कई गरीब महिलाएं आर्थिक दिक्कतों के चलते सरोगेट मदर बनती थीं. हालांकि, सरकार ने इस तरह की सरोगेसी पर साल 2019 में ही बैन लगा दिया था. कामर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने के साथ ही नए बिल में अल्ट्रस्ट्रिक सेरोगेसी को लेकर भी नियम कायदों को सख्त कर दिया गया था. इसके तहत विदेशियों, सिंगल पेरेंट, तलाकशुदा कपल, लिव इन पार्टनर्स और LGBT कम्युनिटी से जुड़े लोगों के लिए सेरोगेसी के रास्ते बंद कर दिए गए .

2019 में क्या था कानून

2019 के नियम के हिसाब से सरोगेसी के लिए सेरोगेट महिला के पास मेडिकल रूप से पूरी तरह फिट होने का सर्टिफिकेट होना चाहिए तभी वह सरोगेट मां बन सकती है. वहीं सरोगेसी का सहारा लेने वाले कपल के पास इस बात का प्रमाण होना चाहिए कि वो मां या पिता बनने के लिए (infertile) अनफिट हैं.

सरोगेसी रेग्युलेशन बिल 2020 में किए कई सुधार

हालांकि ,अब नए सेरोगेसी रेग्युलेशन बिल 2020 में कई तरह के सुधार किए गए हैं. ये बिल आज से लागू होगा. इसमें किसी भी इच्छुक महिला को सरोगेट बनने की परमिशन दी गई है. बिल कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाता है, लेकिन परोपकारी सरोगेसी की परमिशन देता है। पुराने नियम के हिसाब से एक महिला की उम्र 21 से 35 साल की होती थी लेकिन अब इसे बदलकर 25 से 35 कर दिया गया है. साथ ही पुराना नियम यह कहता था कि सेरोगेट मदर पहले से शादीशुदा होना चाहिए और उसका पहले से एक बच्चा होना चाहिए.

नए नियम में सरोगेसी मां की बढ़ी उम्र

अब नए नियम के हिसाब से ये चीजे वही रहेंगी. बदलाव सिर्फ ये हो रहा है कि उम्र सरोगेट मां की उम्र 21 से बढ़ा कर 25 कर दी गई है और अब नए नियम के हिसाब से अल्ट्रस्ट्रिक सेरोगेसी में सेरोगेट मदर सिर्फ कपल की परिचित होनी चाहिए. जो उसके साथ पूरी गर्भावस्था के दौरान साथ रहे। साथ ही पुराने नियम में एक सेरोगेट मां, अपने जीवन में तीन बार सेरोगेट मां बन सकती थी, लेकिन अब नए नियम की वजह से वह सिर्फ 1 बार ही सेरोगेट मां बन सकती है.  दिल्ली में स्थित नर्चर केयर हॉस्पिटल की सीनियर डॉक्टर डॉ अर्चना धवन बजाज ने यह जानकारी दी है.

नए नियम में बदलाव सरोगेट मां की रक्षा के लिए

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजीव उनियाल के मुताबिक, नए नियमों को लाने का पूरा उद्देश्य सरोगेसी के हितों की रक्षा करना है ताकि सरोगेसी की प्रक्रिया के दौरान उसकी अच्छी तरह से देखभाल की जा सके और उसका शोषण न हो. बता दें कि संजीव उनियाल सुप्रीम कोर्ट में सिविल मामलों के वरिष्ठ वकील हैं. बता दें कि बिल में ये भी प्रावधान है कि प्रत्येक एआरटी क्लिनिक और बैंक को भारत के बैंकों और क्लीनिकों की राष्ट्रीय रजिस्ट्री के तहत रजिस्टर होना चाहिए और एक नेशनल डेटा बेस तैयार करना चाहिए.

इन दो केस से सरोगेसी के बारे में विस्तार से जानें

इस सरोगेसी को समझने के लिए हम लोग दो केस के बारे में गहराई से समझ सकते हैं. ये दोनों महिलाएं सरोगेटे महिलाएं हैं.  इनका नाम बदला हुआ है. चलिए जानते हैं. उनकी स्टोरी.

-मुस्कान दिल्ली की रहने वाली हैं. इनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए इन्होंने सेरोगेट माता बनने का फैसला किया कि इन्हें सरोगेट मदर बनना चाहिए, जिससे इनकी भी आर्थिक जरूरतें पूरी हो सके और एक ऐसी महिला को भी मातृत्व का एहसास हो जो बच्चे की चाहती थी.

-मुस्कान की ही तरह रेशमा भी दिल्ली की रहने वाली हैं. वो भी एक गरीब परिवार से आती हैं. घर में कमाने वाला एक पति ही था जिसका एक दुर्घटना में एक्सीडेंट ही गया, जिसके बाद उसका पति ठीक से बिस्तर से उठ भी नहीं पाता, ऐसे में दोनो ने फैसला किया कि रेशमा को सरोगेट मदर बनना चाहिए, जिससे इनकी भी आर्थिक जरूरतें पूरी हो सके और एक ऐसी महिला को भी मातृत्व का एहसास हो जो बच्चे की चाह रख रही थी. 

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