DNA on Jihad: आपने जिहाद के नाम पर निर्दोषों का गला काटते आईएस आतंकियों और बेगुनाहों को बम से उड़ाते हुए आंतकियों के बारे में खूब देखा-सुना होगा. क्या आप जानते हैं कि दुनियाभर में आतंक की इस विषबेल को फैलाने वाला कौन था. आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि उसका भारत से गहरा कनेक्शन रहा है.
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DNA on Abul Ala Maududi and Jihad: क्या आप अबु बकर अल बगदादी की लिखी कुछ किताबों से अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना चाहेंगे? क्या आप ओसामा बिन लादेन की इस्लामिक शिक्षाओं पर लिखी गई किताबों से अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाना चाहेंगे? इन सवालों का जवाब, एक पल में आपने 'ना' में ही दिया होगा. आप भी जानते हैं कि बगदादी और लादेन जैसे आतंकवादी, जो हजारों लाखों लोगों की मौत के गुनहगार हैं. उनके जहरीले विचारों को सुनने या पढ़ने से आपके बच्चों के दिमाग पर, बुरा असर पड़ेगा. आप कभी नहीं चाहेंगे कि ऐसा हो. लेकिन देश के कुछ विश्वविद्यालयों में एक ऐसे पाकिस्तानी लेखक की किताबें पढ़ने की सलाह दी जा रही हैं, जो बगदादी और लादेन जैसे आतंकियों का वैचारिक गुरू था.
दुनिया में फैलाई कट्टर इस्लाम की विचारधारा
वो दुनियाभर में कट्टर इस्लाम के विचारों का समर्थक रहा, और वो हथियारबंद जिहाद को सच्चा जिहाद (Jihad) मानने वाला व्यक्ति था. उसका नाम था अबुल आला मौदूदी (Abul Ala Maududi). मौदूदी को इस्लामिक शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा लेखक माना जाता है. उसके विचारों वाली किताबों को कई विश्वविद्यालयों में इस्लामिक शिक्षा के मानक के तौर पर पेश किया जाता है.
पिछले साल तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया और जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी में इस लेखक की किताबों को रेफरेंस बुक बताया जाता था. लेकिन उस वक्त हुए एक विवाद के बाद, मौदूदी की किताबों को इस्लामिक शिक्षा के सेलेबस से हटा दिया गया. अब आप ये जानना चाहते होंगे, कि हमने आज अबुल आला मौदूदी का जिक्र क्यों किया है.
ऐसे उजागर हुआ मौदूदी का खुलासा
22 मार्च को बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने राज्यसभा में एक सवाल पूछा. उन्होंने पूछा था कि क्या जामिया, एएमयू या किसी भी विश्वविद्यालय में ऐसे पाकिस्तानी लेखक की किताब पढ़ाई जा रही है, जिसकी भाषा भारत के नागरिकों के लिए अपमानजनक और आतंकवाद का समर्थन वाली रही है. इसके जवाब में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि पाकिस्तानी लेखक द्वारा लिखी गई कोई भी किताब नहीं पढ़ाई जा रही है.
केंद्र की ओर से मिले जवाब में बताया गया कि अबुल आला मौदूदी (Abul Ala Maududi) जैसे कट्टर विचारधारा वाले लेखक की किताबों को विश्वविद्यालयों में नहीं पढ़ाया जा रहा है. लेकिन DNA के पास ऐसी कई यूनिवर्सिटी के दस्तावेज हैं, जिसमें मौदूदी जैसे लेखक की किताबों को आज भी रेफरेंस बुक के तौर पर पढ़ाया जा रहा है.
इन जगहों पर पढ़ाई जा रही कट्टरपन की पढ़ाई
जम्मू कश्मीर की बाबा गुलाम शाह बादशाह यूनिवर्सिटी के मास्टर ऑफ आर्ट्स के सेलेबस में इस्लामिक स्टडीज़ के लिए ((page 31)) The Laws of Marriage and Divorce in islam किताब पढ़ने की सलाह दी गई है. ये किताब अबुल आला मौदूदी की है. ((page 36)) इस सेलेबस में 'इस्लाम में मानवाधिकार' के सब्जेट पर अबुल आला मौदूदी की किताब Human Rights in Islam पढ़ने के लिए कहा गया है.
इसी तरह से केरल के एर्नाकुलम के महाराजा कॉलेज में एमए इस्लामिक हिस्ट्री के सेलेबस में ((page-52)) अबुल आला मौदूदी की किताब Towards Understanding Islam पढ़ने के लिए कहा गया है.
केरल के ही 'कन्नूर यूनिवर्सिटी' में बीए के अरबी और इस्लाम के इतिहास के विषय में यहां मौदूदी की किताब Seerat Sawrar-i-Alam (सीरत सवराव ए आलम) को पढ़ने के लिए कहा गया है.
हरियाणा के कैथल की NIILM यूनिवर्सिटी में तो मौदूदी को महान व्यक्ति बताने की कोशिश की गई है. कम से कम 4 पेज में अबुल आला मौदूदी जैसे व्यक्ति की गाथा गायी गई है.
भारत में दी जा रही जिहाद की शिक्षा
आपको अगर लग रहा है लिस्ट खत्म होगी, तो जवाब है नहीं, Calicut University के MA DEGREE IN ISLAMIC STUDIES कोर्स के Syllabus में मौदूदी की एक नहीं दो किताबें छात्रों को पढ़ने की सलाह दी जा रही है. इसमें एक है Towards understanding Islam और दूसरी है Islamic Law and Constitution.
जिन किताबों को इन यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए कहा गया है, वो मौदूदी की कुछ ऐसी किताबें हैं जिससे ऐसा लगता है कि वो कट्टर इस्लाम के समर्थक थे. पाकिस्तान लेखक और कट्टर इस्लाम के समर्थक अबुल आला मौदूदी की किताब Towards Understanding Islam.केरल के Maharaja's College और Calicut विश्वविद्यालय में पढ़ाई जा रही है. इस किताब में कुल मिलाकर 9 बार 'जिहाद' शब्द का जिक्र है.
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— Zee News (@ZeeNews) April 10, 2023
'जिहाद के लिए सब कुर्बान कर दो'
इसमें 'जिहाद' (Jihad) का महिमामंडन किया गया है और इसके लिए सबकुछ कुर्बान करने की बात कही गई है. इन दो पन्नों में 'जिहाद' कैसे करना है, और जिहाद के लिए किस हद तक जाना चाहिए, इसके बारे में बताया गया है. Towards Understanding Islam के पेज़ नंबर 144 के दूसरे पैराग्राफ में लिखा गया है, 'इसमें कहा गया है कि पैसे, जुबान, कलम, हाथ और पैर किसी भी तरह से जिहाद किया जा सकता है. खासतौर से जिहाद का इस्तेमाल इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ किया जाता है.'
हालांकि जिहाद (Jihad) के विषय पर लिखे गए इस पन्नों पर इस्लाम के दुश्मनों के बारे में नहीं बताया गया है. लेकिन माना यही जाता है कि इस्लाम का दुश्मन, कोई गैर इस्लामी व्यक्ति ही होगा. इसीलिए इस हिस्से को कट्टर इस्लामी विचारधारा से जोड़कर देखा गया है. इसी विचार का इस्तेमाल आतंकवादी संगठन युवाओं का ब्रेन वॉश करने के लिए करते हैं. जिसमें गैर इस्लामी व्यक्ति को इस्लाम के दुश्मन के तौर पर पेश कर किया जाता है.
इसी पेज में नीचे लिखा गया है कि अगर किसी मुस्लिम देश पर दुश्मनों का हमला होता है तो जिहाद करना, नमाज और रोज़े की तरह जरूरी हो जाता है. मौदूदी (Abul Ala Maududi) के मुताबिक जिस तरह से मुस्लिम व्यक्ति के नमाज और रोज़े रखना जरूरी है, ठीक उसी तरह से मुस्लिम देश पर दुश्मन के हमले के वक्त जिहाद करना जरूरी है. यहां भी मौदूदी का इशारा दुश्मनों के तौर पर गैर इस्लामिक देशों या व्यक्तियों की ओर ही माना गया है.
'जो मुस्लिम जिहाद न करे, वो पाखंडी'
इसी के बाद लिखा है कि ऐसे समय में कोई भी मुसलमान जो जिहाद (Jihad) नहीं करता है, वो पाखंडी और गुनहगार माना जाएगा. इस किताब में सिर्फ यही नहीं, पेज नंबर 166 में जिहाद के लिए किस हद तक चले जाना चाहिए, इसके बारे में भी बताया गया है. इसकी पहली चार लाइनों में बताया गया है कि जिहाद के लिए व्यक्ति को अपनी जीवन और अपनी संपत्ति ही नहीं, दूसरे व्यक्ति और उसकी संपत्ति भी नष्ट कर देनी चाहिए. यानी मौदूदी के शिक्षा के हिसाब से जिहाद में केवल खुद की जान देने का ही नहीं, दूसरे की जान लेने की भी छूट है.
इसी के आगे मौदूदी ने लिखा है कि जिहाद (Jihad) के दौरान इस्लामिक सिद्धांतों के मुताबिक खुद की सुरक्षा ज्यादा करनी चाहिए. मौदूदी का मानना है कि जिहाद के दौरान दूसरे की जान और संपत्ति का ज्यादा बड़ा नुकसान होना चाहिए, जिहाद करने वाले को बड़े नुकसान से बचना चाहिए. इसी में आगे वो लिखते हैं कि जिहाद के लिए अगर मुस्लिमों को लाखों जिंदगियां भी कुर्बान करनी पड़ीं, तो इसमें कोई नुकसान नहीं है.
'दुनिया में सबसे श्रेष्ठ है इस्लाम'
मौदूदी (Abul Ala Maududi) अपने इन विचारों के जरिए, जिहाद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा मानते हुए, मरने और मारने की शिक्षा दे रहे हैं. ऐसे लेखक की किताबें भारत के विश्वविद्यालयों में इस्लाम की शिक्षा के तौर पर पढ़ाई जा रही है. अगर इस तरह की शिक्षा भारतीय छात्रों को दी जा रही है, तो ये देश की संप्रुभता और एकता के लिए खतरा है. ये समाज को सांप्रदायिक तौर पर बांटने की साजिश है. जिसमें एक धर्म को श्रेष्ठ मानते हुए, दूसरे का नुकसान करने की प्रेरणा दी जा रही है.
अबुल आला मौदूदी की एक किताब 'JIHAD IN ISLAM' में जिहाद के बारे में तफ्सील से बताया गया है. इसमें लिखा गया है कि इस्लाम का उद्देश्य, हर उस देश या सरकार को नष्ट कर देना है, जो इस्लाम के सिद्धांतों के विरुद्ध हैं. मौदूदी ने अपनी इस किताब में लिखा है- 'Islam requires the earth - not just a portion, but the entire planet'.यानी मौदूदी का मानना था कि इस्लाम को पूरी पृथ्वी चाहिए, इसका कोई हिस्सा नहीं, उसे पूरा ग्रह चाहिए.
इसी किताब में आगे लिखा है कि गैर-मुस्लिम देशों और व्यक्तियों के विचारों को कलम या शब्दों के जरिए बदलना भी जिहाद है, यही नहीं तलवारों से उनके विचार और व्यवस्था बदलना भी जिहाद है.
'गैर-इस्लामी सरकारों को कर दो नष्ट'
इसी किताब में वो लिखता है कि सच्चे मुसलमान के लिए गैर-इस्लामिक सरकार में रहना संभव नहीं है. मौदूदी के मुताबिक गैर इस्लामी सरकार ऐसे नियम बनाएं तो इस्लाम के सिद्धांतों से अलग होंगे, ऐसे में उनका पालन संभव नहीं होगा. मौदूदी का आगे कहना है कि इस वजह से ऐसी गैर इस्लामी सरकार को नष्ट करना जरूरी है.
मौदूदी के मुताबिक सिर्फ कुछ देशों को इस्लामिक देश बनाने से काम नहीं होगा, बल्कि उन्होंने इस्लाम को एक वैश्विक क्रांति कहा है. मौदूदी ने इसका एक रास्ता भी बताया है. उसके मुताबिक एक इस्लामिक पार्टी बनाना होगा, फिर ये पार्टी कुछ देशों पर राज स्थापित करेगी, फिर धीरे-धीरे पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व बना लेगी. मौदूदी के मुताबिक इसी तरीके से इस्लाम मध्य एशिया, उत्तरी अफ्रीका से लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया तक फैला है.
जिहाद को लेकर मौदूदी (Abul Ala Maududi) का विचार है कि जिहाद को आक्रामक या रक्षात्मक श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता है. उसके मुताबिक जिहाद (Jihad) आक्रामक भी हो सकता है और रक्षात्मक भी. मौदूदी के मुताबिक जब इस्लामी शासन होगा तो गैर इस्लामी महिलाओं को भी इस्लाम के हिसाब से कपड़े पहनने होंगे.
आतंकी संगठनों का उस्ताद था मौदूदी
मौदूदी 20वीं शताब्दी में राजनैतिक इस्लाम का सबसे बड़ा आदर्श माना जाता था. उसकी राजनीतिक इस्लामी की विचारधारा ने मिस्र,सीरिया और कई इस्लामिक देशों में इस्लामिक कट्टरपंथ को जन्म दिया. मिस्र सैयद कुतुब पर भी मौदूदी के विचारों का प्रभाव पड़ा था. आगे चलकर आतंकी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से लेकर ISIS तक जैसे संगठनों ने मौदूदी के विचारों को अपनाया है.
कोलकाता के प्रेसिडेंसी यूनिवर्सी के इतिहास विभाग के प्रोफेसर अफरीदी ने अपने एक रिसर्चे पेपर में लिखा है कि अबुल आला मौदूदी ने इस्लामी जिहाद के क्षेत्र में हिंसा को बुनियादी कदम बताया है.
इंग्लैंड के मिडिलसेक्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर केविन मैक्डॉनल्ड के मुताबिक अबु बकर अल बगदादी ने जब मोसुल की मस्जिद से इस्लामी स्टेट की घोषणा की थी, उस वक्त उसने अबुल आला मौदूदी के किताबों की कुछ लाइनों का जिक्र किया था.
भारत के औरंगाबाद में पैदा हुआ था मौदूदी
अबुल आला मौदूदी (Abul Ala Maududi) भारत के औरंगाबाद में पैदा हुआ था, लेकिन बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान चला गया था. मौदूदी की शुरुआती शिक्षा, औरंगाबाद के उसके घर पर ही हुई थी. दरअसल मौदूदी के पिता नहीं चाहते थे कि उस पर पश्चिम सभ्यता का असर पड़े. मौदूदी ने अरबी, उर्दू, फारसी की पढ़ाई की. इसके बाद वो कॉलेज भी गया.
वर्ष 1919 में मौदूदी, दिल्ली आ गया था. उसने एक पत्रकार के तौर पर काम किया. आजादी के आंदोलन के वक्त उसने कांग्रेस पार्टी को एक हिंदू संगठन बताते हुए, मुस्लिमों को इससे दूर रहने के लिए भड़काया. 1939 में मौदूदी ने लाहौर में एक भाषण दिया था, जिसका शीर्षक था- 'जिहाद इन इस्लाम'. इस भाषण में कही गई बातों को बाद में किताब के तौर पर लोगों को पढ़ाया जाने लगा.
1941 में मौदूदी ने जमात ए इस्लामी नाम का संगठन बना लिया. फिर 1947 में बंटवारा हो गया, जिसके बाद वो पाकिस्तान चला गया.हालांकि पाकिस्तान जाकर उसने जिन्ना का भी विरोध किया, क्योंकि उसके मुताबिक जिन्ना ने पाकिस्तान को शरीयत को मानने वाले देश नहीं बनाया था.
पाकिस्तान में मरवा दिए थे 200 अहमदिया मुसलमान
धीरे-धीरे मौदूदी (Abul Ala Maududi) के विचारों को पाकिस्तान के पूर्व जनरल जिया उल हक ने 'निज़ाम-ए-मुस्तफा' के तहत, पाकिस्तान पर लागू करना शुरू कर दिया. पाकिस्तान का मौजूदा इस्लामीकरण अबुल आला मौदूदी के विचारों से प्रभावित होकर ही किया गया है.
1953 में मौदूदी और जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तान की अहमदिया समुदाय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इनकी मांग थी कि अहमदिया समुदाय को गैर मुस्लिम घोषित किया जाए. इससे लाहौर में दंगे हो गए और 200 से ज्यादा अहमदिया मुसलमानों की हत्या कर दी गई.
मौदूदी के इन्हीं विचारों से कई मुस्लिम देश प्रभावित हैं. शरीया कानून लागू करने की मांग के पीछे भी मौदूदी की विचारधारा कही जाती है. क्योंकि इसी विचारधारा को पढ़कर निकले युवा, शरीया कानून की मांग करने लगते हैं. यही वजह है, भारतीय विश्वविद्यालयों से मौदूदी जैसे लेखों की किताबें प्रतिबंधित करवाना जरूरी है. क्योंकि ये हमारे समाज में दो धर्मों के बीच वैचारिक जंग छेड़ रहे हैं. जो आगे चलकर बहुत घातक साबित हो सकता है.
दुनियाभर में इस्लामी क्रांति जैसे शब्द 1979 की ईरान क्रांति से निकलकर आए हैं. जबकि दुनिया इस्लामिक स्टेट जैसी विचारधारा से 2014 में वाकिफ हुई थी. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस्लामिक क्रांति और इस्लामिक स्टेट, ये दोनों ही विचार अबुल आला मौदूदी ने 50 वर्ष पहले दिए थे. तो एक तरह कहा जा सकता है कि इस्लामिक स्टेट जैसे विचारों का जनक मौदूदी ही है.
अबुल आला मौदूदी (Abul Ala Maududi) जैसे कट्टर इस्लाम और हिंसा वाले जिहाद के समर्थक की किताबें भले ही भारत में पढ़ाई जा रही हों. लेकिन कई देशों ने मौदूदी के जिहाद (Jihad) लेखन को प्रतिबंधित किया हुआ है.
बांग्लादेश में लगा हुआ है मौदूदी पर बैन
वर्ष 2010 में भारत के पडोसी देश बांग्लादेश ने ही अबुल आला मौदूदी की हर किताब को प्रतिबंधित कर दिया था. उनका मानना था कि मौदूदी के किताबों से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है. उनका मानना था कि मौदूदी की किताबें पढ़कर, उनके देश के युवा कट्टर इस्लाम की ओर बढ़ रहे हैं, जो की ठीक नहीं है. बांग्लादेश के 24 हजार मस्जिदों और पुस्तकालयों से मौदूदी की किताबों को हटाया गया था. बांग्लादेश ने एक मुहिम की तरह मौदूदी की किताबों का नामोनिशान मिटा दिया था. जबकि बांग्लादेश एक मुस्लिम बहुल देश है.
भारत की स्थिति ये है कि केंद्र सरकार को इन किताबों की गंभीरता और इसमें छिपे जहरीलों विचारों की जानकारी नहीं है. इसीलिए विश्वविद्यालयों से लेकर कई पुस्तकालयों में ये किताबें मौजूद हैं. यही नहीं अबुल आला मौजूदी का ये वैचारिक जहर, ऑनलाइन भी घोला जा रहा है. कई ऑनलाइन पोर्टल पर मौदूदी का ये वैचारिक जहर मिल रहा है.
अबुल आला मौदूदी (Abul Ala Maududi) की किताबों को लेकर विवाद काफी पहले से चल रहा है. लेकिन इस लेखक के विचारों पर कभी गंभीर कदम नहीं उठाए गए. यही वजह है कि कई यूनिवर्सिटी इस्लामी शिक्षा देने में रेफरेंस बुक के तौर पर मौदूदी की किताबें पढ़ने की सलाह देती रही हैं. अब सवाल ये है कि कट्टर इस्लामी की शिक्षा देने वाली, जिहाद (Jihad) में हिंसा को जायज़ बताने वाली, जिहाद के नाम पर गैर इस्लामी व्यक्ति को मारने वाले विचार दे रहे मौदूदी को भारत में पढ़ाने की जरूरत क्यों है. कई बुद्धिजीवी मौदूदी की किताब को हटाए जाने की मांग को गलत बता रहे हैं. उनके मुताबिक मौदूदी की किताबों को हटाना शिक्षा के साथ खिलवाड़ करना है. जबकि हमारे इस विश्लेषण से साफ है कि अगर मौदूदी के विचार, भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाते रहे, तो ये युवाओं को गलत राह पर ले जाएंगे.
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