Udaipur Janmashtami 2023: जन्माष्टमी के मौके पर आज हम आप को उदयपुर के एक ऐसी मंदिर के दर्शन कराएंगें जहां भगवान विष्णु जगदीश रूप में विराजीत हो अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा कर रहे है. बेजोड़ वास्तु शैली का उदाहरण माने जाने वाले इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसे बनने में 25 साल लग गए थे.
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Udaipur Janmashtami 2023 News: देश-दुनिया में लेकसिटी के नाम से विख्यात उदयपुर शहर को धार्मिक नगरी के रूप में भी जाना जाता है. भले ही मेवाड़ में भगवान शिव को आराध्य देव के रूप में पूजा जाता है लेकिन यह धरती कृष्ण भक्ति के रंग में भी रंगी दिखाई देती. यहां सांवलिया जी, श्रीनाथजी, चारभूजा जी और भगवान द्वारकाधीश के मंदिर स्थापित है, लेकिन जन्माष्टमी के मौके पर आज हम आप को उदयपुर के एक ऐसी मंदिर के दर्शन कराएंगें जहां भगवान विष्णु जगदीश रूप में विराजीत हो अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा कर रहे है.
जी हां, हम बात कर रहे शहर के बीचों बीच स्थित भगवान जगदीश के भव्य मंदिर की, जो करीब 400 वर्ष पुराना है. भगवान जगदीश की मनमोहक छवी के दर्शन करने हर साल हजारों भक्त यहा पहुंचते है. पेश है जगदीश मंदिर के इतिहास से जुड़ी हमारी यह खास पेशकश.
हरिभरी अरावली पहाड़ियों और नीली झीलों बीच बसे उदयुपर शहर की खूबसूरती को निहारने हर साल हजारों की संख्या में देश विदेश सैलानी यहां पहुंचते है. उदयपुर शहर का जितना ऐतिहासिक महत्व है उतनी ही समृद्ध यहां की धार्मिक धरोहर भी है. शहर के बीचों बीच और सिटी पैलेस का पास बना भगवान जगदीश का मंदिर कुछ ऐसे ही धार्मिक संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है. मेवाड़ शासक महाराणा जगत सिंह द्धारा करीब चार सौ वर्ष पूर्व इस मंदिर का निर्माण करवाया था.
यह मंदिर अपने ऐतिहासक और धार्मिक महत्व के लिए देश और दुनिया में विख्यात है. यह मंदिर जितना भव्य है उतना ही विशाल इसका इतिहास भी है. बताया जाता है कि मेवाड़ के तात्कालिक महाराणा जगत सिंह प्रथम हर रोज अपनी दिव्य शक्ति से भवागन के दर्शन करने जगन्नाथ पुरी जाते थे और इसके बाद ही वे भोजन ग्रहण करते, लेकिन जब वे जेष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान के दर्शन करने पहुंचे तो मंदिर के कपाट बंद हो गए थे.
ऐसे में उन्होंने 5 दिन तक अन्न ग्रहण नहीं किया. इस पर भगवान ने उन्हे स्वप्न में दर्शन दे कर उदयपुर में भगवान जगदीश का भव्य मंदिर बनाने का आदेश दिया. साथ ही उन्हें वो स्थान भी बताया जहां खुदाई करने पर भगवान की भव्य प्रतिमा मिलेगी. भगवान के आदेश के बाद महाराण जगत सिंह ने मंदिर के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया.
मंदिर निर्माण में 25 साल का समय लगा और उस समय करीब 15 लाख रूपए खर्च हुए. भगवान के संकेतानुसार महाराणा जगत सिंह ने डूंगरपुर के पास कुणबा गांव में एक पेड़ के निचे खुदाई कराई गई जहां से भगवान जगदीश की प्रतिमा निकली. मंदिर निर्माण के दौरान प्रतिमा को एक पत्थर पर रख कर उसकी पूजा की गई. जिस पर भगवान के चरण चिन्ह आज भी मौजूद है. मान्यता है कि इस पत्थर को स्पर्श करने से असाध्य रोग का भी उपचार हो जाता है.
भगवान जगदीश के मंदिर की भव्यता इसी बात से पता चल जाती है कि इस मंदिर की उचाई 125 फिट है और यह 50 कलात्मक गंबो पर टिका हुआ है. मंदिर के चारों ओर बनी शिल्पकारी यहा आने वाले भक्तों और पर्यटकों को काफी आकर्षित करती है. जगदीश मंदिर के हर कोने पर चार मंदिर बने हुए है. जिसमें गणपति, मॉ दुर्गा, महादेव और सुर्य देव की पुजा अर्चना की जाती है. हर माह की दशमी पर भगवान जगदीश मंदिर परिसर की परिक्रमा भी करते है. भक्तों के लिए यह मंदिर सुबह करीब सवा पांच बजे ही खुल जाता है, जो रात करीब 11 बजे तक खुला रहता है.
इस दौरान दिन में दो घंटे भगवान विश्राम करते है. मंदिर के पुजारियों की माने तो मंदिर की पूजा पद्धति चार सौ साल पुरानी है और भी उसी पद्धति के आधार पर हर रोज भगवान की पूजा की जाती है. मंदिर में भगवान की चार बार आरती की जाती है और दिन भर भक्तों की ओर से भजनों का गायन किया जाता है.
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साल में एक जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर उदयपुर में भी भगवान जगदीश अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए शाही लवाजमें के साथ नगर भ्रमण पर निकलते है. इस दौरान हजारों की संख्या में भक्त अपने आराध्य देव को पलक पावडे़ बिछा कर स्वागत करते है. यहीं नहीं कृष्ण जन्माष्टमी, राम नवमी और एकादशी के पर्व भी मंदिर में बडे़ धूमधाम के साथ मनाए जाते है.
करीब चार सौ वर्ष पूरा जगदीश मंदिर शहर वासियों के साथ दूर दराज से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आस्था का प्रमुख केन्द्र है. यही कारण है कि जो भी दुनिया के सबसे खूबसूरत शहर में भ्रमण के लिए आता है. ऐस बार भगवान जगदश के दर पर अपना सिर जरूर झुकाता है और जगत के पालन हार अपने भक्तों के मनोकामनाओं को भी जरूर पूरा करते है.