CM गहलोत का PM मोदी को पत्र, जातिगत जनगणना की मांग, समझें मायने
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CM गहलोत का PM मोदी को पत्र, जातिगत जनगणना की मांग, समझें मायने

(Ashok Gehlot)सीएम गहलोत ने कहा कि देश में पहले आरक्षण के मामले में 50 फ़ीसदी का बैरियर था, लेकिन ईडब्ल्यूएस (EWS Reservation) को 10 फीसदी आरक्षण मिलने के बाद 50 फीसदी की बाधा भी हट गई है. गहलोत ने कहा कि जनगणना की वैधता तभी है जब उसे (Narendra Modi)केन्द्र सरकार कराए. यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी (Congress)ने केन्द्र से जातिगत जनगणना (Caste Census)के लिए मांग करते हुए दबाव बनाना शुरू कर दिया है.

CM गहलोत का PM मोदी को पत्र, जातिगत जनगणना की मांग, समझें मायने

Politics : देश-प्रदेश में जातिगत जनगणना को लेकर अब नई चर्चा छिड़ गई है. पिछले दिनों रायपुर अधिवेशन में जातिगत जनगणना का प्रस्ताव पारित करने के बाद कांग्रेस पार्टी और उसके नेता केंद्र सरकार से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं और इसके लिए दबाव भी बना रहे हैं.

हालांकि बिहार सरकार ने अलग से अपने स्तर पर जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया था, लेकिन न्यायपालिका की रोक के बाद अब बिहार सरकार की योजना खटाई में पड़ गई है.

ऐसे में कांग्रेस ने देश भर में अलग-अलग तरफ से केंद्र सरकार के सामने मांग रख कर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. सवाल यह उठता है ? कि क्या जातिगत जनगणना की मांग समाजों को आगे बढ़ाने के लिए है ? सवाल यह उठता है ? कि क्या ये मांग देश को एकजुट करने के लिए है? या फिर इस मांग में राजनीतिक पार्टियों को अपनी जीत का रास्ता दिख रहा है ?

कांग्रेस पार्टी की तरफ से अब जातिगत जनगणना की मांग की जा रही है. ताज़ा मांग राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ से की गई है. उदयपुर में मीडिया से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने जातिगत जनगणना कराए जाने का प्रस्ताव पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुए पार्टी अधिवेशन में पारित किया था.

इसके फॉलोअप में ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा.  गहलोत ने कहा कि खुद उनकी तरफ से भी राजस्थान के मुख्यमंत्री के नाते पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देश में जातिगत जनगणना की मांग की गई है. 

सीएम गहलोत ने कहा कि देश में पहले आरक्षण के मामले में 50 फ़ीसदी का बैरियर था, लेकिन ईडब्ल्यूएस को 10 फ़ीसदी आरक्षण मिलने के बाद 50 फ़ीसदी की बाधा भी हट गई है. गहलोत ने कहा कि जनगणना की वैधता तभी है जब उसे केन्द्र सरकार कराए. यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी ने केन्द्र से जातिगत जनगणना के लिए मांग करते हुए दबाव बनाना शुरू कर दिया है.

सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि जब वे 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब ओबीसी का आरक्षण 21 फ़ीसदी था. जबकि अनुसूचित जाति का आरक्षण 8 से बढ़ाकर 16 फ़ीसदी किया गया और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 6 से बढ़ाकर 12 फ़ीसदी किया था. गहलोत ने कहा कि उनकी पार्टी की सरकार के वक्त यह बढ़ोतरी हुई थी और आगे भी उनके वक्त में ही बढ़ोतरी होगी.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह भी कह दिया कि वो सारे जोड़-बाकी देख कर आगे आरक्षण पर कोई बात तय करेंगे. उन्होंने कहा कि सब मिलकर फैसले करेंगे तो लोगों में हार्ट बर्निंग भी नहीं होगी. उन्होंने कहा कि एमबीसी का आरक्षण भी उनकी सरकार के वक्त ही मिला था. गहलोत बोले उसके बाद एमबीसी के लोगों की नौकरियों में भागीदारी बढ़ी है.

गहलोत के बयान का चुनावी राजनीति पर क्या असर ?
सीएम गहलोत ने ये बयान देकर आरक्षित वर्ग को साधने की कोशिश की है. संभवतया इस बयान के जरिए मुख्यमंत्री आरक्षित वर्ग को यह मैसेज देना चाहते होंगे, कि आरक्षण को बढ़ाने वाले और आरक्षित जातियों को संरक्षण देने वाले वे और उनकी कांग्रेस पार्टी ही हो सकते हैं. इस बयान के गहरे राजनीतिक मायने हैं. साथ ही माना जाता है कि कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन के प्रस्ताव को देश की भावी राजनीति की धारा तय करने वाला आधार बनाने की कोशिश में कांग्रेस के नेता और ज्यादा मेहनत करते हुए केन्द्र पर दबाव बनाएंगे.

चुनावी राजनीति पर असर 
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जातिगत जनगणना को लेकर इससे पहले भी बात रखी है. दरअसल पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी और उसके नेता राहुल गांधी जातिगत जनगणना को लेकर मुखर दिखे हैं. ऐसे में गहलोत के इस बयान के बाद माना जा रहा है कि जातिगत जनगणना और उसकी मांग का चुनावी राजनीति पर बड़ा असर पड़ सकता है.

दरअसल कांग्रेस पार्टी कई बार बीजेपी पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाती रही है. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी हिंदू-मुस्लिम के आधार पर राजनीति करती है और इससे वोटों का ध्रुवीकरण होता है. संभवतया बीजेपी की इसी रणनीति को काउंटर करने के लिए कांग्रेस ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई है.

कांग्रेस के रणनीतिकारों का ऐसा मानना है कि उसके पास में अल्पसंख्यक वर्ग का बड़ा वोट बैंक इंटेक्ट है. ऐसे में अगर बीजेपी के वोट बैंक में जातिगत जनगणना के नाम पर सेंध लगाई जाए और बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक को तोड़ा जाए तो बीजेपी को तो नुकसान होगा ही, साथ में कांग्रेस को इसका चुनावी फायदा मिल सकता है. शायद इसी सोच के साथ कांग्रेस पार्टी जातिगत जनगणना की मांग को और आगे बढ़ती जा रही है.

एक मोटे अनुमान के आधार पर माना जाता है कि देश में अगर किसी एक वर्ग की जनसंख्या सबसे बड़ी है तो वह ओबीसी वर्ग है. पिछले दिनों आरक्षण में ईडब्ल्यूएस और एमबीसी की एंट्री होने के बाद 50 फ़ीसदी से पार आरक्षण की सीमा जा चुकी है. ऐसे में ओबीसी वर्ग को लगता है कि उन्हें भी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए.

कांग्रेस पार्टी भी इन्हीं भावनाओं को भुनाने के लिए जातिगत जनगणना के मुद्दे को और आगे बढ़ा सकती है. अगर कांग्रेस का यह मुद्दा लोगों के मन में जगह बना पाया, तो हो सकता है कि आने वाले चुनाव में ओबीसी के बड़े वर्ग को पार्टी अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाब हो जाए. कांग्रेस के कुछ रणनीतिकार भी मानते हैं, कि ध्रुवीकरण की राजनीति का जवाब देने का एक तरीका जाति आधारित राजनीति हो सकती है. जिस वर्ग पर बीजेपी फोकस कर रही है उस वर्ग में सेंध लगाते हुए अगर कांग्रेस पार्टी से जोड़ा जाए, तो आगामी चुनाव में कांग्रेस बढ़त बना सकती है.

राजनीतिक हलकों में इस बात को लेकर चर्चा है कि कांग्रेस पार्टी जो प्रो-मायनोरिटी की छवि बनी है, उसमें अब कांग्रेस ओबीसी का साथ लेकर चुनावी चौसर का रुख बदलना चाहती है. अगर कांग्रेस की सोच सही दिशा में जा रही है तो पार्टी की कोशिश यही रहेगी कि वो जातिगत जनगणना के मुद्दे को चुनाव तक लगातार प्रासंगिक बनाये रखे और ओबीसी की सच्ची हितैषी बनकर उसे अपने साथ जोड़ ले. जानकार कहते हैं कि कांग्रेस अगर ऐसा कर सकी तो मुस्लिम और ओबीसी जैसे बड़े वोट बैंक पार्टी को मिल सकते हैं और यह जातिगत जनगणना का स्टैण्ड 'गेम चेन्जर' साबित हो सकता है.

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