Jodhpur News: राजस्थान सरकार ने ग्राम पंचायत चुनाव टालते हुए मौजूदा सरपंचों को प्रशासक नियुक्त करने का फैसला किया है. हर पंचायत में एक प्रशासनिक कमेटी बनाई जाएगी, जिसमें उप सरपंच और वार्ड पंच शामिल होंगे. सरकार ने यह कदम मध्यप्रदेश मॉडल के आधार पर उठाया है. हालांकि, इस फैसले से विरोधी खेमे और चुनाव की तैयारी कर रहे नेताओं में नाराजगी है. समर्थक इसे विकास कार्यों को निरंतर रखने का कदम मान रहे हैं.
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Rajasthan News: राजस्थान सरकार ने ग्राम पंचायतों के चुनाव करवाने की जगह मौजूदा सरपंचों को ही प्रशासक नियुक्त करने का फैसला किया है. सरपंचों की सहायता के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत लेवल पर एक प्रशासकीय कमेटी बनाई जाएगी.इस प्रशासनिक कमेटी में उप सरपंच वार्ड पंच सदस्य होंगे. पंचायतराज विभाग ने सरपंचों को प्रशासक नियुक्त करने और प्रशासनिक समिति बनाने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. यह फैसला सरकार ने मध्यप्रदेश सरकार के मॉडल पर किया है. दरअसल राजस्थान की 6759 पंचायतों का कार्यकाल इसी माह पूरा हो रहा था और 31 जनवरी से पहले चुनाव करवाने आवश्यक थे.
लेकिन इससे पहले सरकार ने एमपी मॉडल की तर्ज पर राजस्थान में भी बड़ा फैसला लिया गया. माना जा रहा है की इससे सरपंच का कार्यकाल बढ गया है. प्रदेश में 11 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतें है इनका कार्यकाल भी अलग अलग समय में पूरा होना है. सभी पंचायतों के एक साथ चुनाव करवाने के लिए प्रशासन लगाने सरकार को आवश्यक थे. 6759 ग्राम पंचायत का कार्यकाल जनवरी 704 पंचायत का कार्यकाल मार्च,3847 पंचायत का कार्यकाल सितम्बर अक्टूम्बर में पूरा हो रहा है माना जा रहा है कि सभी के चुनाव एक साथ करवा सकती है. सरकार ने सरंपचों का कार्यकाल बढा कर सरपंचों को तो साध लिया है लेकिन सियासी चुनौतियां अभी भी बरकरार है सरकार ने हर पंचायत में मौजूदा सरपंच को ही प्रशासक लगाकर उनको अपनी तरफ कर लिया. लेकिन हर पंचायत में राजनीति की अलग तरह की होती है हर सरपंच का विरोधी खेमा भी होता है एक अनुमान के अनुसार किसी भी गांव में दो से तीन राजनीतिक गुट बने ही होते है मौजूदा सरपंचों का कार्यकाल पूरा हो चुका है उनके प्रति नाराजगी भी स्वाभाविक है ऐसे में विरोधी खेमा इस फैसले से नाराज होने की पूरी संभावना है.
ऐसे में रूट लेवल पर राजनीति गरमा सकती है जो लोग सरपंच चुनाव की तैयारी कर रहे है वे सरकार के इस फैसले के विरोध में खडे हो सकते है. ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों से आने वाले रूट लेवल के नेताओं और प्रत्याशियों की सरकार के इस फैसले पर अलग अलग राय है. भाजपा समर्थक और मौजूदा सरपंच सरकार के इस फैसले का समर्थन कर रहे है वही भाजपा विरोधी और ग्राम पंचायत चुनाव की तैयारी कर रहे अलग अलग विचारधारा के लोग इसके विरोध में उतर चुके है.
इस फैसले के समर्थन करने वाले नेताओं का कहना है कि सरकार का फेसला स्वागत योग्य है और जो पंचायत के चुनाव में गेप आ गया था उसे कम करने में एक बेहतरीन कदम है सरपंचों को प्रशासक के तोर पर नियुक्त कर पावर देने का फैसला सबसे अच्छा है ताकि ग्राम पंचायतों में विकास ना रूके. वही इस फैसले के विरोध करने वाले नेताओं का कहना है कि भाजपा ने यह ग्राम पंचायतों के लोकतंत्र को खत्म करने का काम किया है. जो लोग इसका समर्थन कर रहे है वे लोग कुछ ही दिन बाद चुनाव की मांग करने लगेंगे. जब सरपंचों के पास पॉवर थी तब काम नही किया तो उनको और समय बढा कर जनता को क्यो त्रस्त किया जा रहा है अगर सरपंच सही है तो चुनाव में वापस जीत कर आ सकते है.
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