Rajasthan News: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) के "चारबाग" सत्र में "मेमोरीज़ फ्रॉम द स्क्रीन एंड स्टेज" विषय पर चर्चा हुई. अभिनेत्री इला अरुण ने थिएटर को लेकर अपने अनुभव साझा किए और युवाओं के बदलते रवैये पर चिंता जताई.
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Rajasthan News: राजस्थान के जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) के "चारबाग" सत्र में "मेमोरीज़ फ्रॉम द स्क्रीन एंड स्टेज" विषय पर चर्चा हुई. इस दौरान मशहूर गायिका और अभिनेत्री इला अरुण ने थिएटर को लेकर अपने अनुभव साझा किए और इस कला के प्रति युवाओं के बदलते रवैये पर चिंता जताई.
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इला अरुण ने कहा कि मेरे लिए थिएटर एक जिंदगी है, एक मंदिर है. मैं रेलगाड़ी से चर्च गेट तक जाती थी, तब भी थिएटर के हालात ठीक नहीं थे और आज भी नहीं हैं. आज का युवा थिएटर को सपोर्ट नहीं करता. वे एक हजार रुपये बर्गर और पिज्जा पर खर्च कर देते हैं, लेकिन 300 रुपये खर्च करके थिएटर में जाना पसंद नहीं करते. युवाओं का रुझान मॉल की तरफ है.
उन्होंने आगे कहा कि पिछले 40 सालों से सरकार की ओर से भी थिएटर को पर्याप्त मदद नहीं मिल रही है, जिसके चलते यह कला आगे नहीं बढ़ पा रही है. इला अरुण ने बताया कि वह पिछले 42 साल से बिना सरकारी मदद के अपना काम कर रही हैं. इसके अलावा इला अरुण ने अपने गाने "चोली के पीछे" को लेकर भी बात की.
उन्होंने कहा कि यह गाना उनकी पहचान बन चुका है और लोग आज भी इसे पसंद करते हैं. इस सत्र में एमके रैना, अंजुला बेदी और आसद लल्लीजी ने भी अपने विचार साझा किए. सभी ने इस बात पर सहमति जताई कि थिएटर एक महत्वपूर्ण कला है, लेकिन इसे बचाए रखने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है.
इला अरुण ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा कि थिएटर मेरे लिए मंदिर है. मैं चाहती हूं कि युवा इसकी ओर आकर्षित हों और इस कला को जीवित रखें. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इस तरह के सत्र कला और संस्कृति को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण मंच साबित हो रहे हैं.