Jaipur News: शायद आपको पता ना हो कि भारतीय संविधान में इंसानों की जिंदगी से साथ ही जानवरों को भी जीने का अधिकार मिला हुआ है. और अगर इसे कोई बाधित करने का प्रयास करता है तो IPC में कई तरह के दंड देने के प्रावधान भी रखे गए हैं.
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Jaipur: देश का संविधान हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है. इस तरह की बात तो आपने कई बार सुनी ही होगी. लेकिन भारतीय संविधान में जानवरों को भी जीवन जीने की पूरी आजादी दी गई. और अगर इसे कोई बाधित करने का प्रयास करता है तो संविधान में कई तरह के दंड देने के प्रावधान भी मौजूद हैं. इनमें से 10 जानवर ऐसे भी हैं, जिनको मारने पर आपको जेल भी हो सकती है. तो आइए जानते हैं इसी तरह के कुछ कानूनों के बारे में, जो जानवरों को प्रोटेक्ट करते हैं :-
प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11(1) बताती है कि पालतू जानवर को छोड़ने, भूखा रखने, तकलीफ पहुंचाने, भूख-प्यास से जानवर के मरने पर आपके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है. इसके तहत आरोपी को 50 रुपए का जुर्माना हो सकता है. और अगर तीन माह के अंदर दूसरी बार जानवर के साथ ऐसा हुआ तो 25 से 100 रुपए के जुर्माने के साथ 3 माह की जेल भी हो सकती है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के तहत अगर किसी ने किसी जानवर को जहर दे दिया, जान से मार दिया या कष्ट दिया तो उसे दो साल तक की सजा हो सकती है. इसके अलावा कुछ जुर्माने का भी प्रावधान है.
सरकार के एनिमल बर्थ कंट्रोल नियम (2001) के तहत किसी कुत्ते को एक स्थान से भगाकर दूसरे स्थान में नहीं पहुंचाया जा सकता. अगर कुत्ता विषैला है, और उसके काटने का डर है तो पशु कल्याण संगठन में संपर्क किया जा सकता है.
भारत सरकार के एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल (2001) की धारा 38 की मानें तो किसी पालतू कुत्ते को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए चाहिए कि उसकी उम्र 4 माहीने पूरी हो चुकी हो. इससे पहले उसे स्थानांतरित करना अपराध है.
जानवरों को लंबी अवधि तक लोहे की जंजीर या भारी रस्सी से बांधकर रखना है. अगर आप जानवर को घर के बाहर नहीं निकालते तो यह भी कैद माना जाता है. ऐसे अपराध में 3 माहीने की जेल और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11(1) के अनुसार अगर गोशाला, कांजीहाउस, किसी घरेलू जानवर या उसके बच्चे को खाना-पानी नहीं दिया जा रहा, तो ये अपराध है. ऐसी स्थिति में 100 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है.
मंदिरों-सड़कों पर जानवरों को पीटना गैर कानूनी है. पशु बलिदान रोकने का दायित्व नगर निगम की है. पशुधन अधिनियम, 1960, वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972, आईपीसी के तहत ऐसा करना अपराध माना जाता है.
किसी जानवर को परेशान करना, चोट पहुंचाना और उसकी जिंदगी में परेशानी खड़ी करना अपराध माना जाता है. ऐसा करने पर 25 हजार जुर्माना और 3 साल की सजा भी हो सकती है.
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 16 (सी) के अनुसार जंगली पक्षियों या सरीसृपों को नुकसान पहुंचाना, अंड़ों को नुकसान पहुंचाना, घोंसलों को नष्ट कर देना अपराध माना जाता है. ऐसे में दोषी को 3 से 7 साल की जेल और 25 हजार का का जुर्माना हो सकता है.
ट्रांसपोर्ट ऑफ एनिमल रूल्स, 1978 की धारा 98 के अनुसार, पशु को स्वस्थ और बेहतर स्थिति में ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है. रोग ग्रस्त और थके जानवर को यात्रा नहीं करानी चाहिए. ऐसा करना अपराध है.
क्या आप जानते हैं अनुसूची एक क्या है?
अनुसूची 1 में 43 वन्य जीवों को रखा गया है. इसमें धारा 2, धारा 8, धारा 9, धारा 11, धारा 40, धारा 41, धारा 43, धारा 48, धारा 51, धारा 61 और धारा 62 के तहत दंड का प्रावधान किया गया है. इस सूची में सूअर से लेकर कई तरह के हिरण, बंदर, भालू, चिकारा, तेंदुए, लंगूर, भेड़िया, लोमड़ी, डॉलफिन, कई तरह की जंगली बिल्लियों, बारहसिंगा, बड़ी गिलहरी, पेंगोलिन, गैंडा, ऊदबिलाव, रीछ और हिमालय में पाए जाने वाले जानवरों के नाम शामिल हैं.
क्या है वन्य जीव संरक्षण कानून ?
जानवरों पर अत्याचार रोकने को भारत सरकार ने साल 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया. इसका इरादा वन्य जीवों के शिकार, मांस और खाल के व्यापार को रोका जाना था. इसमें साल 2003 में संशोधन किया, जिसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा दिया गया. इसमें सजा, जुर्माने और कठोर कर दिया गया है.
क्या आप जानते हैं अनुसूची दो क्या है ?
इस अनुसूची में शामिल वन्य जंतुओं के शिकार करने पर धारा 2, धारा 8, धारा 9, धारा 11, धारा 40, धारा 41 धारा 43, धारा 48, धारा 51, धारा 61 और धारा 62 के अनुसार दंड का प्रावधान है.
इस सूची के भाग एक में कई तरह के बंदर, सेही, लंगूर, जंगली कुत्ते और गिरगिट आदि शामिल हैं.
सूची के भाग दो में अगोनोट्रेचस एण्ड्रयूएसी,अमर एलिगनफुला, अमर फूसी, ब्रचिनस एक्ट्रिपोनिस और कई तरह के जानवरों को शामिल किया गया है.