Rajasthan News: आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां आकर लकवा मरीज ठीक हो जाते हैं. यहां की माता रानी का मंदिर लकवा मरीजों के लिए प्रसिद्ध है. जानिए इस मंदिर की कहानी.
यह मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के गांव माता जी की पांडोली में स्थित है. यह मंदिर काफी पुराना है. इसको लेकर कहा जाता है कि यह महाभारत काल के समय का है. ये देवी का शक्तिपीठ है, जिसे झातला माता के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर पांडोली गांव के तालाब की पाल पर बना हुआ है.
जानकारी के अनुसार, यहां पर सैंकड़ो साल पुराना एक विशाल वट वृक्ष था, जिसके नीचे देवी की प्रतिमा थी. इसकी वजह से इस मंदिर को वटयक्षीणी देवी का मंदिर भी कहा जाता है. इसके बाद विक्रम संवत साल 1215 में इस जगह पर एक मंदिर बनवाया, जो आज स्थित है. फिलहाल में इस मंदिर के गर्भ गृह में पांच देवियों की प्रतिमा हैं.
झातला माता का यह मंदिर लकवा मरीजों के बीच काफी प्रसिद्ध है. इस मंदिर को लेकर लोगों के बीच मान्यता है कि यहां आकर लकवा के मरीज ठीक हो जाते हैं. लकवा मरीजों को मंदिर में रात में रुकना पड़ता है और वट वृक्ष की परिक्रमा करनी होती है. साथ ही मंदिर में एक मुर्गा छोड़ा जाता है.
झातला माता के मंदिर में चैत्र नवरात्रि और अश्विन मास की नवरात्रि में मेला लगता है. नवरात्रि में यहां पांच बार आरती होती है. इस मंदिर की देखरेख लगभग 125 साल से गुर्जर समाज का एक परिवार कर रहा है.
जानकारी के अनुसार, कहा जाता है कि पन्नाधाय का जन्म इस मंदिर की देखरेख कर रहे गुर्जर समाज के एक परिवार में हुआ था. पन्नाधाय की शादी राजसमंद जिले के कमेरी गांव में सूरजमल गुर्जर से हुआ था. यह वही पन्नाधाय हैं, जिन्होंने मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह की जान बचाने के लिए अपने बेटे चंदन की बलि दे दी थी.
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