सतीश कौशिक की यादों को सहेजे धनौंदा में पसरा मातम, हुड्डा सरकार में करवाया था गांव का विकास
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सतीश कौशिक की यादों को सहेजे धनौंदा में पसरा मातम, हुड्डा सरकार में करवाया था गांव का विकास

चचेरे भाई सुभाष ने बताया कि सतीश कौशिक साल में एक बार जरूर गांव आते थे. यहां वे बाजरा की रोटी, सरसों का साग बड़े प्यार से खाते थे. इतना ही नहीं ऊंट गाड़ी पर बैठकर बहुत खुश होते थे.

सतीश कौशिक की यादों को सहेजे धनौंदा में पसरा मातम, हुड्डा सरकार में करवाया था गांव का विकास

नई दिल्ली: फिल्म अभिनेता और डायरेक्टर सतीश कौशिक ने 66 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. इस खबर को सुनने के बाद फिल्म इंडस्ट्री और उनके चाहने वाले दुखी हैं, लेकिन हरियाणा के एक गांव धनौंदा में हर किसी के आंखों में गम के बादल रह-रहकर उमड़ रहे हैं. सतीश कौशिक से जुड़ी उनकी पुरानी यादें उन्हें व्याकुल कर रही हैं.ग्रामीणों ने सतीश कौशिक के निधन को गांव के लिए अपूर्णीय क्षति बताया है.  

दरअसल महेंद्रगढ़ जिले के कनीना उपमंडल का गांव धनौंदा सतीश कौशिक का पैतृक गांव है.सतीश कौशिक का जन्म 13 अप्रैल 1956 को दिल्ली में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बुधवार रात गुडगांव के फोर्टिस हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली. पोस्टमार्टम के बाद उनका पार्थिव शरीर चार्टर्ड प्लेन से मुंबई ले जाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार होगा. 

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सतीश कौशिक के पिताजी दो भाई थे. बड़े का नाम गोवर्धन व छोटे का नाम बनवारी लाल. सतीश कौशिक सहित वे तीन भाई थे. बड़े भाई का नाम ब्रह्म प्रकाश कौशिक और मझले भाई का नाम अशोक कौशिक है. वहीं सतीश कौशिक की 3 बहनें- सरस्वती देवी, शकुंतला देवी व सविता देवी हैं. उनके पिता बनवारीलाल दिल्ली में मुनीम का काम करते थे. कुछ समय बाद उन्होंने हैरिसन कंपनी की एजेंसी ली थी. सतीश कौशिक की पढ़ाई दिल्ली के ही स्कूलों में हुई. सतीश कौशिक के दोनों सगे भाई मुंबई में ही रहते हैं.

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चाव से खाते थे बाजरा की रोटी, सरसों का साग
सतीश कौशिक के चचेरे भाई सुभाष ने बताया कि उनके (सतीश कौशिक) चले जाने से सबसे अधिक क्षति उन्हें है, क्योंकि वह उनका विशेष ध्यान रखते थे. सुभाष ने बताया कि सतीश साल में एक बार अवश्य गांव आते थे. यहां वे बाजरा की रोटी, सरसों का साग बड़े प्यार से खाते थे. इतना ही नहीं गांव आने पर ऊंट गाड़ी पर बैठकर बहुत खुश होते थे.

बचपन में दोस्तों के साथ खेलते थे गुल्ली डंडा
दोस्त राजेंद्र सिंह नंबरदार ने बताया कि बचपन में जब सतीश छुट्टियों में आते थे तो हम सभी गुल्ली डंडा, कबड्डी, कुश्ती खेलते थे. गांव में बने बाबा दयाल के जोहड़ के पास बनी में जाकर पील खाते थे और जाल के पेड़ पर मौज मस्ती करते थे. उन्होंने बताया कि सतीश कौशिक ने हमें कई बार मुंबई आने के लिए कहा, लेकिन समय के अभाव के कारण हम वहां नहीं जा सके.

गांव में सतीश के साथी रहे सूरत सिंह ने बताया कि वे जब भी गांव में आते थे उनके यहां भी रुकते थे और पूरा समय उनके साथ बिताते थे और फोन पर उनसे  समय-समय पर गांव की जानकारी लेते रहते थे. उन्होंने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से गांव को एक करोड़ रुपये की ग्रांट दिलवाई थी, जिससे गांव में काफी विकास हुआ था.

घर के पड़ोस में रहने वाले ठाकुर अतरलाल ने बताया कि जब वह बचपन में स्कूल की छुट्टियों में गांव आते थे, तब हम गांव की गलियों में खेलते थे, जब वे वापस जाते थे तो हम सभी बड़े भावुक हो जाते थे और उनका अगली साल आने का इंतजार करते थे. आज उनके जाने से हमें बहुत दुख है. सतीश कौशिक ने 2010 में गांव के राधा कृष्णा मंदिर में मूर्ति की स्थापना करवाई थी. गांव के जोहड़ की सफाई करवाई. सरकार के सहयोग से स्टेडियम बनवाया और सरकार से गांव में काफी ग्रांट भी उपलब्ध करवाई थी. 

सतीश कौशिक के चचेरे भाई के बेटे सुनील ने बताया मेरे ताऊजी जब भी गांव में आते थे तो पहले मुझे फोन पर बताते थे. गांव के लोग सामाजिक कार्यक्रमों में सतीश कौशिक को बुलाते थे और वे अपने काम छोड़कर गांव आते थे वे कहते थे कि यह मेरा पैतृक गांव है. मुझे इससे सबसे अधिक लगाव है. सुनील ने कहा कि आज उनका अचानक छोड़कर चले जाना गांव के लिए सबसे बड़ी क्षति है. सुबह से ही क्षेत्र के लोगों का घर आने-जाने का सिलसिला लगा हुआ है सभी उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करते हैं.