मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी के बाद 32 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अवैध कमाई के साथ ह्यूमन ट्रैफिकिंग दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है. इसे रोकने पर विचार व सुरक्षित प्रवासन को प्रोत्साहित करने के लिए दिल्ली में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया.
इस संगोष्ठी का आयोजन एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन ने किया. इसमें ट्रैफिकिंग के खिलाफ तत्काल एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता पर जोर दिया गया, जिससे कि पूरे क्षेत्र में प्रवासन नीतियों का समन्वय किया जा सके और अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मानकों के अनुरूप कानूनी और नीतिगत सुधार किए जा सके. संगोष्ठी में भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के ट्रैफिकिंग पीड़ित भी मौजूद थे. उन्होंने अपनी पीड़ा और अनुभव साझा करते हुए इसकी रोकथाम के लिए सुझाव दिए.
बाल अधिकारों और बाल संरक्षण के लिए दुनिया के 39 देशों में कार्यरत संगठनों के वैश्विक नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, मानव दुर्व्यापार भारी मुनाफे वाला एक संगठित अपराध है, जो विशेष रूप से बच्चों और मजबूर युवाओं के शोषण के सहारे फल-फूल रहा है. इससे निपटने के लिए ट्रैफिकिंग के आर्थिक ढांचे को नेस्तनाबूद करने, आर्गनाइज्ड क्रिमिनल गैंग के खिलाफ व्यापक स्तर पर कार्रवाई करने, गिरोहों के बारे में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए वैश्विक रजिस्टर रखने और इसके माध्यम से स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुफिया समन्वय को मजबूत करने जैसे कदमों की जरूरत है. हाल ही में बेड़ियों से जकड़कर डिपोर्ट किए गए भारतीयों के बारे में चिंता जाहिर करते हुए भुवन ऋभु ने कहा, यह भयावह वास्तविकता इस संगठित अपराध के खिलाफ वैश्विक प्रतिक्रिया की तात्कालिक आवश्यकता को दर्शाती है. उन्होंने भारत, अमेरिका समेत अन्य सरकारों से अपील की कि वे इन ट्रैफिकिंग गिरोहों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कठोर कार्रवाई शुरू करें। ट्रैफिकिंग के नेटवर्क को खत्म करने के लिए भारत, अमेरिका और उन सभी देशों के बीच जहां से ये गिरोह पीड़ितों को लेकर जाते हैं, के बीच समन्वित प्रयास आवश्यक है. हमें पीड़ितों से मिली जानकारी का विश्लेषण करना होगा, वित्तीय लेन-देन का पता लगाना होगा और इसमें शामिल गैंग्स को ध्वस्त करना होगा, ताकि शोषण के इस दुष्चक्र को तोड़ा जा सके.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सदस्य और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के पूर्व अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा, जागरूकता एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर ध्यान देना जरूरी है. सबसे पहले पीड़ितों को यह समझना होगा कि उनका शोषण हो रहा है और उन्हें अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना होगा. अक्सर वे अपने साथ हो रही नाइंसाफियों से अनजान रहते हैं। जागरूकता को देश के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाना होगा, ताकि सबसे कमजोर तबकों की आवाज सुनी जा सके, उन्हें सुरक्षा मिले और उनका सशक्तीकरण हो सके.
संयुक्त राष्ट्र के मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) की दीपिका नरुका ने बताया कि ट्रैफिकिंग इन पर्सन 2024 रिपोर्ट के अनुसार बंधुआ मजदूरी कराने के मकसद से ह्यूमन ट्रैफिकिंग में इजाफा हो रहा है लेकिन इन मामलों में दोषसिद्धि नगण्य है. श्रीलंका के विदेश मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. एम.एम.एस.एस.बी. यालेगामा और नेपाल के मानवाधिकार एवं अंतरराष्ट्रीय संधि समझौता प्रभाग के संयुक्त सचिव राजेंद्र थापा ने जोर दिया कि मानव दुर्व्यापार से निपटने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत प्रतिबद्धता और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय की आवश्यकता है.
एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल, ने कहा "प्रवासन से सबसे अधिक प्रभावित बच्चे होते हैं। काम की तलाश में चाहे उनके माता-पिता नई जगह चले जाएं, वे पीछे छूट जाएं या उन्हें साथ ले जाएं। हर स्थिति में सबसे ज्यादा परेशानी उन्हें ही होती है. ऐसे में कानून प्रवर्तन एजेंसियों, सामुदायिक जागरूकता और ठोस कार्रवाई के बीच समन्वय से ही हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि प्रवासन सुरक्षित और स्वैच्छिक हो. संगोष्ठी में भारतीय पुलिस फाउंडेशन के अध्यक्ष ओ.पी. सिंह, नेपाल के मानवाधिकार एवं अंतरराष्ट्रीय संधि समझौता प्रभाग के संयुक्त सचिव राजेंद्र थापा, श्रीलंका के विदेश मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. एम.एम.एस.एस.बी. यालेगामा, श्रीलंका के इंस्टीट्यूट ऑफ पालिसी रिसर्च के माइग्रेशन एंड पालिसी रिसर्च की प्रमुख डॉ. बिलेशा वीरारत्ने, माइग्रेंट फोरम इन एशिया (दक्षिण एशिया) की कार्यकारी समिति की सदस्य बिजया कुमारी श्रेष्ठ, भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के सलाहकार ओंकार शर्मा और महाराष्ट्र पुलिस की विशेष पुलिस महानिरीक्षक अश्वती दोरजे भी शामिल थीं.