Delhi Secretariat Seal: AAP के नेता ने कहा कि दिल्ली की जनता की पसंदीदा योजनाओं पर रोक लगाने की साजिश हो रही है और सचिवालय बंद करना लोकतंत्र के खिलाफ है. वहीं, कांग्रेस ने इसे सत्ता का दुरुपयोग बताया और कहा कि जब तक नई सरकार आधिकारिक रूप से नहीं बन जाती, तब तक ऐसे फैसले लेने का कोई मतलब नहीं है.
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Delhi Secretariat Seal: दिल्ली की सियासत में एक नया मोड़ आ चुका है. जैसे ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने चुनाव में जीत दर्ज की, वैसे ही दिल्ली सचिवालय के दरवाजों पर ताला लटकने की खबर सामने आई. उपराज्यपाल (LG) द्वारा अचानक लिए गए इस फैसले ने राजनीति में हलचल मचा दी है. विपक्ष इसे 'लोकतंत्र पर हमला' बता रहा है, तो वहीं बीजेपी इसे 'प्रशासनिक सुधार' का नाम दे रही है. सवाल उठ रहा है कि आखिर यह फैसला क्यों लिया गया और इसके पीछे की असली वजह क्या है.
क्यों दिया गया दिल्ली सचिवालय बंद करने का आदेश?
सूत्रों के मुताबिक उपराज्यपाल ने यह आदेश सुरक्षा कारणों से दिया है. चुनाव के बाद प्रशासनिक फेरबदल की संभावना को देखते हुए यह कदम उठाया गया है ताकि किसी भी तरह की अव्यवस्था या फाइलों में हेरफेर को रोका जा सके, लेकिन विपक्ष इसे एक अलग ही नजरिए से देख रहा है. एक वरिष्ठ विपक्षी नेता का कहना है कि चुनाव जीतने के बाद बीजेपी को सचिवालय को बंद करने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या वे कोई छुपी हुई जानकारी मिटाना चाहते हैं या फिर यह प्रशासन पर पूरी तरह से कब्जा जमाने की कोशिश है. हालांकि, बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह फैसला केवल सुचारू प्रशासनिक बदलाव के लिए लिया गया है. उनका दावा है कि नई सरकार के गठन तक सचिवालय के कुछ हिस्सों को सीमित रूप से संचालित किया जाएगा ताकि अनावश्यक गड़बड़ी से बचा जा सके.
विपक्ष के तीखे सवाल और भाजपा की सफाई
इस फैसले के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला बोल दिया. आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दिल्ली की जनता ने जिन योजनाओं को पसंद किया, क्या बीजेपी अब उन पर रोक लगाने की तैयारी कर रही है. सचिवालय बंद करना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित करने की एक साजिश है. वहीं, कांग्रेस ने भी इसे 'सत्ता का दुरुपयोग' करार दिया और कहा कि जब तक नई सरकार की आधिकारिक रूप से घोषणा नहीं होती, तब तक ऐसे किसी भी फैसले का कोई औचित्य नहीं है. बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा है. एक पार्टी प्रवक्ता ने बयान दिया कि नई सरकार के गठन से पहले कुछ संवेदनशील दस्तावेजों और प्रशासनिक कार्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.
क्या है आगे की रणनीति?
सूत्रों की मानें तो सचिवालय को आंशिक रूप से बंद करने के फैसले की अवधि ज्यादा लंबी नहीं होगी. नई सरकार के गठन के साथ ही सचिवालय में फिर से सामान्य कामकाज शुरू हो जाएगा. लेकिन जिस तरह से विपक्ष ने इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दे दिया है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में यह मामला और गरमाने वाला है. विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला एक प्रशासनिक कदम से ज्यादा राजनीतिक कदम लगता है. दिल्ली की सत्ता में बदलाव के साथ ही इस तरह के फैसले आमतौर पर देखे जाते हैं, लेकिन इस बार जिस तेजी से सचिवालय पर ताला लगाया गया, उसने राजनीतिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है. अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह केवल एक अस्थायी प्रशासनिक निर्णय था या फिर इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक मकसद छिपा है.
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