AAP Protest: आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट को वोट काउंटिंग के दौरान का पीठासीन अधिकारी का एक वीडियो दिखाया तो कोर्ट ने पीठासीन अधिकारी को फटकार लगाई और इसे लोकतंत्र के लिए मजाक बताया. दरअसल वोटों की गिनती के दौरान अधिकारी मतपत्रों पर कुछ लिखते नजर आए थे.
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Chandigarh Mayor Election: चंडीगढ़ मेयर चुनाव वैसे तो छोटा सा चुनाव था. इसका रिजल्ट आने के बाद आम आदमी पार्टी ने पीठासीन अधिकारी पर बीजेपी से मिलीभगत कर 8 वोटों को अमान्य करने का आरोप लगाया है, तब से पूरे देश में इस चुनाव और इसमें होने वाली गड़बड़ियों की चर्चा तेज हो गई है. AAP और BJP नेता रोज एक दूसरे पर जुबानी हमले कर देश को समझाने को कोशिश में लगे हैं कि लोकतंत्र का असली रक्षक कौन है और भविष्य में कौन है, जो आम जनमानस के अधिकारों को उनके मूल स्वरूप में यथावत रख पाएगा. आप आदमी पार्टी ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव को लोकतंत्र का चीरहरण करार दिया है. इस पर सुप्रीम कोर्ट की एक तल्ख टिप्पणी के बाद यह विचार का एक मामला बना गया कि क्या BJP ने वाकई में मेयर चुनाव जीतने के लिए ऐसा कुछ किया.
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पूरी कहानी आखिर शुरू कैसे हुई, इस पर एक नजर डाल लेते हैं. दरअसल मेयर चुनाव में 36 वोट पड़ने थे. BJP के 14 पार्षद, शियद (SAD) के पास 1 पार्षद और चंडीगढ़ से सांसद किरण खेर थीं. वहीं दूसरी ओर AAP के पास 13 और इंडिया गठबंधन में शामिल सहयोगी कांग्रेस के 7 पार्षद थे, लेकिन वोटों की काउंटिंग के दौरान पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह ने विपक्ष के 8 वोट अमान्य कर दिए. इसके बाद AAP-कांग्रेस उम्मीदवार कुलदीप टीटा को 12 वोट ही मिले और 16 वोटों के साथ BJP उम्मीदवार मनोज सोनकर चुनाव जीत गए.
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी की कुछ तो होगी वजह?
हालांकि जब आम आदमी पार्टी ने कोर्ट को वोट काउंटिंग के दौरान का पीठासीन अधिकारी का एक वीडियो दिखाया तो सुप्रीम कोर्ट ने पीठासीन अधिकारी को फटकार लगाई और इसे लोकतंत्र के लिए मजाक बताया. दरअसल पीठासीन अधिकारी मतपत्रों पर कुछ लिखते नजर आए और उसके बाद AAP पक्ष के 8 वोट अमान्य घोषित कर दिए गए. सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर, वीडियो रिकॉर्डिंग समेत चुनाव की सभी डिटेल पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास जमा करने का निर्देश दिया है. इसके बाद बॉलीवुड का एक गाना सहसा याद आ जाता है, जिसके बोल थे- कुछ तो हुआ है कुछ हो गया है...
इन सवालों के जवाब जरूरी
मेयर चुनाव में क्या सही हुआ और क्या गलत, उसे जानने से पहले कुछ सवाल जरूर उठे हैं, जिनका जवाब देने के लिए राजनीतिक दलों को खुले मंच पर आना चाहिए. मेयर चुनाव में उस व्यक्ति को पीठासीन अधिकारी नियुक्त क्यों किया गया, जिसे बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे का पूर्व पदाधिकारी बताया गया है. क्या ऐसा व्यक्ति निष्पक्ष चुनाव करा सकता है?
दूसरी बात- मेयर चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर आम आदमी पार्टी ने नगर निगम के बाहर धरना दे रखा है, नगर निगम के बाहर बैठे आम आदमी पार्टी के पार्षदों का कहना है कि हमें नगर निगम ऑफिस के अंदर जाने से रोका जा रहा है. हमें काम करने से भी रोका जा रहा है, जबकि भाजपा के पार्षद अंदर जा रहे हैं और सारे काम कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी चंडीगढ़ के संयोजक प्रेम गर्ग ने कहा कि चुनाव अधिकारी के साथ-साथ उन्हें ऐसा काम करने का आदेश देने वाले लोगों पर कार्रवाई हो. हमें यह भी नहीं पता कि चुनाव से जुड़ा रिकॉर्ड सुरक्षित है भी या नहीं. सवाल है कि आखिर पार्षदों को रोकने से क्या मिलेगा और इसका फायदा किसे मिलेगा.
मेयर चुनाव से उपजे विवाद के बीच दिल्ली समेत कई स्थानों पर जांच एजेंसियों की सक्रियता जिस तरह से बढ़ गई है, उसे देखते हुए सवाल उठता है कि एक जांच मेयर चुनाव से जुड़े वीडियो और अन्य दस्तावेज की करा ही ली जाए, ताकि चुनाव से पहले जनता के सामने स्पष्ट हो सके कि लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी कौन है और उसे किस ओर जाना चाहिए.