Climate Change Effects: जो लोग ये कहते हैं कि परिस्थितियां कितनी भी खराब क्यों ना हों, डरना नहीं चाहिए. वो गलत कहते हैं क्योंकि कभी-कभी डरना जरूरी होता है ताकि खराब होतीं परिस्थितियों को सुधारा जा सके. दुनिया के सामने इस वक्त ऐसी ही एक परिस्थिति है जलवायु परिवर्तन.
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Climate Change Effects: जो लोग ये कहते हैं कि परिस्थितियां कितनी भी खराब क्यों ना हों, डरना नहीं चाहिए. वो गलत कहते हैं क्योंकि कभी-कभी डरना जरूरी होता है ताकि खराब होतीं परिस्थितियों को सुधारा जा सके. दुनिया के सामने इस वक्त ऐसी ही एक परिस्थिति है जलवायु परिवर्तन. British Journal..The Lancet ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान के कल, आज और कल पर एक Study Report जारी की है . इस Report को दुनियाभर के 52 Research Institutes और United Nations की अलग-अलग Agencies से जुड़े 114 वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने तैयार किया है.
चौंका देगी ये रिपोर्ट
इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन की रफ्तार और जानलेवा असर के जो आंकड़े दिए गए हैं..वो ये ऐलान कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के जिस खतरे की भविष्यवाणी की जा रही थी, वो अब हकीकत बन चुकी है. रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वर्ष यानी 2023...दुनिया का अब तक का सबसे गर्म साल साबित हुआ है. अब गर्मी के जानलेवा दिनों की संख्या, हर साल बढ़ती जा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 से 2022 के दौरान हर साल औसतन 86 दिन, इतनी भीषण गर्मी पड़ी है जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है .
जलवायु परिवर्तन की तेज होती रफ्तार
भीषण गर्मी से होने वाली बीमारियों के चलते वर्ष 1990-2000 के मुकाबले, अब दुनियाभर में 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों की मौतों में 85 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है. वैश्विक जलवायु परिवर्तन के असर से जानलेवा संक्रमण बीमारियां भी तेजी से बढ़ रही हैं. 1950-60 के मुकाबले वर्ष 2013 से 2022 के दौरान डेंगू के फैलने की रफ्तार करीब 28 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है. वर्ष 1951 से 1960 के दौरान..दुनिया का 18 प्रतिशत Land Area, सूखे की चपेट में आया था जबकि 2013 से 2022 के दस सालों में 47 प्रतिशत Land Area में भीषण गर्मी और अकाल के हालात पैदा हो गये. मौसम में हो रहे Extreme बदलाव जैसे बहुत बारिश, सूखा, आग या बाढ़ की वजह से दुनिया को वर्ष 2022 के दौरान 264 बिलियन डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा है. भीषण गर्मी की वजह से दुनियाभर में वर्ष 2022 के दौरान 490 अरब Labour Hours यानी काम के घंटों का नुकसान हुआ है .
करना पड़ेगा खाद्य संकट का सामना
जलवायु परिवर्तन के ये भीषण और डरा देने वाले Side Effects तब हुए हैं जब पिछले दस वर्षों में धरती का औसत तापमान 1.14 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है . सोचिये, अगर धरती का तापमान ऐसे ही बढ़ते-बढ़ते जिस दिन 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया, तब क्या होगा? आपके लिए ये सोचना भी मुश्किल होगा. लेकिन The Lancet ने इसकी भी भविष्यवाणी की है. अगर वर्ष 2050 तक धरती के तापमान में 2 डिग्री सेल्सियसत की बढ़ोतरी हुई तो, भीषण और जानलेवा गर्मी से होने वाली मौतें 370 प्रतिशत बढ़ जाएंगी. दुनिया में अभी के मुकाबले 50 प्रतिशत का Labour Loss यानी काम के घंटों का नुकसान होगा. आज के मुकाबले करीब साढ़े बावन करोड़ ज्यादा लोग, गंभीर या अतिगंभीर खाद्य संकट का सामना करेंगे. दुनिया में डेंगू जैसी बीमारियों की संक्रामक क्षमता 37 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी.
डरना जरूरी है
इसलिए डरना जरूरी है. क्योंकि सामने दिखाई देने वाले दुश्मन से ज्यादा खतरनाक, वो दुश्मन होता है, जो चुपके से हमला करता है. जलवायु परिवर्तन ऐसा ही दुश्मन है. इस दुश्मन की सबसे बड़ी ताकत है दुनिया में इससे लड़ने की इच्छाशक्ति की कमी. अगर जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को कम नहीं किया गया तो 21वीं सदी के अंत तक धरती का तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा. जो कितना खतरनाक होगा, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है.
सिर्फ वादे और दावे किये जा रहे
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे से आज दुनियाभर में अरबों लोग अपना जीवन और आजीविका दोनों गंवा रहे हैं. लेकिन फिर भी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए इच्छाशक्ति और प्रयास.. दोनों की कमी है. अभी दुनियाभर में प्रति सेकेंड 1337 टन Carbon-Di-Oxide का उत्सर्जन हो रहा है. जिसे घटाना जरूरी है. लेकिन फिर भी कोयले और अन्य Bio-Fuels का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है. दुनिया का 95 प्रतिशत Road Transport अभी भी Fossil Fuel यानी कोयले, तेल और गैस से चलता है. गरीब देशों में अभी भी 98 प्रतिशत बिजली, कोयले से बनाई जा रही है जबकि अमीर देशों में भी 89 प्रतिशत बिजली उत्पादन कोयले से हो रहा है. गरीब देशों में 92 प्रतिशत परिवारों में अभी भी खाना बनाने के लिए कोयला और लकड़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये तीनों ही, धरती के बढ़ते हुए तापमान का एक बड़ा कारण है. लेकिन इस बढ़ते हुए खतरे को जानते हुए भी नजरअंदाज किया जा रहा है. धरती के तापमान को बढ़ने से रोकने के सिर्फ वादे और दावे किये जा रहे हैं .
धरती का तापमान बढ़ रहा है
The Lancet की रिपोर्ट में बताया गया है कि दावा किया जाता है कि दुनिया के देश Fossil Fuels का इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद कर देंगे. लेकिन सच ये है कि वर्ष 2022 में सड़क यातायात में Fossil Fuels के इस्तेमाल से Carbon Emmission में 61 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. दावा किया जाता है कि Fuel and Gas के बजाय Clean Energy को बढ़ावा दिया जा रहा है. लेकिन सच ये है कि दुनिया में Fuel and Gas कंपनियों में पिछले साल, 10 फीसदी ज्यादा Investment हुआ है. जिस धीमी गति से जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयास चल रहे हैं और जिस तेज गति से धरती का तापमान बढ़ रहा है. उससे एक बात तो बिलकुल क्लियर है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो इस सदी के अंत तक धरती का तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ना तय है और इसके असर से दुनिया में हर साल करोड़ों लोगों का मरना भी तय है. इसलिए डरना तो बनता है.
DNA : जलवायु परिवर्तन के 'किलर इफेक्ट्स'..डरना जरूरी है. धरती के इतिहास का सबसे गर्म साल रहा..वर्ष 2023
जलवायु परिवर्तन का डराने वाला DNA टेस्ट#DNA #DNAWithSourabh #ClimateChange @saurabhraajjain pic.twitter.com/0kWhw2NuzR
— Zee News (@ZeeNews) November 16, 2023