CHHATH PUJA 2022 IN BIHAR: छठ पूजा में व्रती महिलाएं तालाब और नदी में स्नान करेंगी और फिर कद्दू की सब्जी और चावल खाकर व्रत का संकल्प लेंगी. माना जाता है कि इस भोजन से साधक के जीवन में सकारात्मकता आती है.
आचार्य मदन मोहन के अनुसार इस दिन व्रती महिलाएं स्नान करके नए कपड़े पहनकर पूजा करती हैं. नए कपड़ों की आवश्यकता व्रतियों के लिए होती है और छठ पर्व में पीले, लाल रंग के कपड़ों का खास महत्व होता है. हालांकि, दूसरे रंग के कपड़े भी पहने जा सकते हैं. स्नान के बाद, छठव्रती चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का प्रसाद ग्रहण करती हैं.
व्रत रखने वाली महिलाएं पहले प्रसाद ग्रहण करती हैं, उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य प्रसाद लेते हैं. इस दिन, व्रत से पहले स्नान करने के बाद सात्विक भोजन करने को नहाय-खाय कहा जाता है. मुख्य रूप से, इस दिन छठ व्रती लौकी की सब्जी और चने की दाल का प्रसाद ग्रहण करती हैं.
इन सब्जियों को पूरी पवित्रता के साथ धोकर पकाया जाता है और खाना पकाने के दौरान साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है. खाना बनाते समय छठव्रती छठी मईया के गीतों को श्रद्धा और निष्ठा के साथ गाती हैं. नहाय-खाय के दिन जो खाना खाया जाता है, उसमें सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है. नियमों के अनुसार, छठव्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन कर सकते हैं.
36 घंटे निर्जला रहने वाले छठव्रतियों को यह व्रत कठिन नहीं, बल्कि आसान लगता है. व्रत करने वाला व्यक्ति व्रत पूरा होने तक जमीन पर ही सोता है. नहाय-खाय के दिन बनने वाले भोजन को तैयार करते समय कई खास बातों का ध्यान रखना होता है. इस दिन जो खाना बनाया जाता है, उसे रसोई के चूल्हे पर नहीं, बल्कि लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जाता है.
नहाय-खाय के दिन से व्रती महिलाओं को साफ और नए कपड़े पहनने चाहिए. छठ की समाप्ति तक, उन्हें जमीन पर सोना होता है और वे चटाई या चादर बिछाकर सो सकती हैं. इस दिन घर में तामसिक और मांसाहार पूरी तरह से वर्जित होता है, इसलिए घर में मौजूद ऐसी चीजों को पहले ही बाहर निकाल देना चाहिए और घर को साफ-सुथरा करना जरूरी है.
छठ पूजा श्रद्धा और आस्था से जुड़ी हुई है. जो इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. छठ व्रत सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है. इस पर्व में सूर्य देव की पूजा का खास महत्व है. मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली छठी मईया सूर्य देव की बहन हैं. इस व्रत में सूर्य की आराधना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं. जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन किया जाएगा, छठी मईया उतनी ही प्रसन्न होंगी। छठ पर विशेष रूप से बनने वाले ठेकुए को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है.
छठ पूजा से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी, जिससे दोनों दुखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का सुझाव दिया. राजा ने यज्ञ करवाया जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इससे राजा और भी दुखी हो गए. तभी आसमान से एक विमान उतरा, जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा की अपील पर माता ने अपना परिचय दिया और बताया कि वह ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं. माता षष्ठी ने कहा कि वह सभी की रक्षा करती हैं और निःसंतानों को संतान का वरदान देती हैं. माता ने मृत शिशु को आशीर्वाद देकर उसे जीवित कर दिया। देवी की कृपा से राजा बहुत खुश हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा की। इसके बाद से ही इस पूजा का महत्व बढ़ गया.
छठ पूजा की तिथि के अनुसार आज 5 नवंबर 2024 को नहाय-खाय है, जो छठ पूजा की शुरुआत होती है. 6 नवंबर बुधवार को खरना होगा. 7 नवंबर, गुरुवार की शाम को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य दिया जाएगा. फिर 8 नवंबर, शुक्रवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और इसी के साथ छठ पूजा का समापन हो जाएगा.
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