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महिमा छठी माई केः रामायण से लेकर महाभारत काल तक जुड़ा है महापर्व छठ का इतिहास, पढ़ें पूरी कहानी

 चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व का इतिहास सदियों पूराना है. छठ महापर्व को हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और सबसे पवित्र पर्व माना गया है. इस साल छठ 5 नवंबर को नहाय खाय से शुरू होगा.

छठी मइया और सूर्य भगवान

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छठी मइया और सूर्य भगवान

छठी मइया और सूर्य भगवान को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. ऋगवेद, विष्णु पुराण और भगवत पुराण में भी सूर्य पूजा का वर्णन देखने को मिलता है. षष्ठी यानी छठी मइया को भगवान सूर्य की मानस बहन माना गया हैं. ऐसी मान्यता है कि सूर्य ने ही छठी मइया की पहली पूजा की थी. वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार असुरों ने देवासुर संग्राम में जब देवताओं का हरा दिया था. देव माता अदिति ने तब भगवान सूर्य की मानस बहन षष्ठी की पूजा करके तेजस्वी पुत्र की कामना की थी. जिसके बाद छठी मइया ने अदिति को सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया और फिर भगवान ने त्रिदेव रूप असुरों को हरा दिया. इसके बाद से छठ पूजा करने का चलन शुरू हुआ.

सतयुग

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सतयुग

एक पौराणिक कथा की मानें तो सतयुग में शर्याति नाम के एक राजा हुआ करते थे. एक बार अपनी बेटी सुकन्या के साथ वो जंगल में शिकार खेलने गए थे. इसी दौरान च्यवन ऋषि जंगल में तपस्या में लीन थे. ऋषि तपस्या में इतने लीन हो गए थे कि उनके शरीर पर दीमक लग गए थी. जीमक के बांबी के कारण ऋषि की आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं. सुकन्या ने जब कौतुहलवश बांबी में तिनके डाले दिए जिससे ऋषि की आंखें फूट गईं. जिसके बाद ऋषि ने गुस्से में सुकन्या को श्राप दे दिया, श्राप के कारण राजा शर्याति के सैनिक भी दर्द से तपड़ने लगे.

राजा शर्याति

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राजा शर्याति

इसके बाद राजा शर्याति ने च्यवन ऋषि से क्षमा मांगत हुए सुकन्या को उसके अपराध के लिए ऋषि को ही समर्पित कर दिया. सुकन्या फिर ऋषि च्यवन के पास ही रहकर उनकी सेवा करने लगी. इसी दौरान सुकन्या को एक दिन एक नागकन्या मिली. नागकन्या ने सुकन्या को बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य की उपासना करने से उसे च्यवन मुनि के श्राप से मुक्ति मिल जाएगी. जिसके बाद सुकन्या ने छठ मइया का व्रत किया और ऋषि के आंखों की ज्योति लौट आई.

त्रेता युग

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त्रेता युग

एक और मान्यता यह है कि भगवान राम ने त्रेता युग में जब रावण को हराया था तो विजयादशमी मनाई गई. लंका से जब श्रीराम अयोध्या लौटकर आएं तो दीपावली मनाई गई और अयोध्या में रामराज्य की शुरूआत से पहले उन्होंने माता सीता के साथ भगवान सूर्य की उपासना की थी. वो दिन था कार्तिक महीने की षष्ठी थी जिसके बाद उस दिन से छठ पूजा करने की परंपरा चली आ रही है.

द्वापर युग

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द्वापर युग

द्वापर युग में भी सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है. कुंती ने जब भगवान सूर्य की पूजा की थी तब उन्होंने प्रसन्न होकर कर्ण को वरदान में दिया था. कर्ण भी सूर्य भगवान के परम भक्त थे और हर दिन वो कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे. आज भी छठ में सूर्य को अर्घ्य देने की यही परंपरा है. इसी काल में पांडव जुए में जब अपना सारा राजपाट हार गए थे, तब द्रौपदी ने वनवास के दौरान व्रत रखा था. पांडवों ने भी द्रौपदी के साथ सूर्य की उपासना की थी. सूर्य भगवान की कृपा से ही पांडवों को राजपाट वापस मिल सका था.