Divyang Chhotu Kumar: गिरियक प्रखंड के रामनगर मरकट्टा गांव में जन्मे छोटू के माता-पिता कभी नहीं सोचते थे कि उनका बेटा विकलांगता के बावजूद इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करेगा. उनका नाम 'छोटू' रखा गया था और आज वह नाम पूरे गांव में प्रेरणा का स्रोत बन चुका है.
नालंदा के 17 वर्षीय छोटू कुमार दिव्यांग होते हुए भी किसी भी हुनर का मोहताज नहीं हैं. दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से जीवन में जो मुकाम हासिल किया है, वह हर किसी के लिए प्रेरणा है. छोटू की प्रतिभा ने यह साबित कर दिया है कि किसी भी विकलांगता के बावजूद कठिन परिश्रम और इच्छाशक्ति से बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.
गिरियक प्रखंड के रामनगर मरकट्टा गांव में जन्मे छोटू के माता-पिता कभी नहीं सोचते थे कि उनका बेटा विकलांगता के बावजूद इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करेगा. उनका नाम 'छोटू' रखा गया था और आज वही नाम पूरे गांव में एक प्रेरणा के रूप में जाना जाता है.
बचपन से ही क्रिकेट के प्रति छोटू की रुचि थी, लेकिन हाथों की कमी के कारण वह बच्चों के साथ खेल नहीं पाता था. छोटू ने हार नहीं मानी और घर के पास लकड़ी से क्रिकेट की प्रैक्टिस करने लगा. वह खुद को साबित करना चाहता था और इसने उसे बड़े संघर्ष का सामना करने की प्रेरणा दी. साथ ही क्रिकेट मैदान तक पहुंचने में उसे दिक्कत होती थी क्योंकि कोई उसे वहां ले जाने को तैयार नहीं था, लेकिन उसने खुद ही पैदल 2 किलोमीटर का सफर तय किया. यह उसके दृढ़ संकल्प और संघर्ष का प्रतीक था.
जानकारी के अनुसार चलने में कठिनाई होने के बावजूद छोटू ने साइकिल चलाना सीखा. फिर उसने मोटरसाइकिल चलाना भी शुरू किया, ताकि वह किसी भी काम में रुकावट का सामना न करे. इस कठिन प्रयास से उसने यह दिखा दिया कि अगर मन में दृढ़ निश्चय हो तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती.
छोटू ने हमेशा अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता दी. हालांकि उसकी पारिवारिक स्थिति मददगार नहीं थी, लेकिन उसने ट्रैक्टर चलाकर अपनी पढ़ाई का खर्च उठाया. उसकी मेहनत का ही नतीजा था कि वह आज 12वीं की परीक्षा की तैयारी कर रहा है. साथ ही बचपन में जब छोटू के पास कोई लेखन सामग्री नहीं थी, तो उसने जमीन पर शब्दों को पैरों से उकेरने की शुरुआत की. आज वही छोटू अपने पैरों से कागजों पर सुंदर लिखाई करता है, जिसे देखकर लोग दंग रह जाते हैं.
छोटू का सपना है कि वह यूपीएससी की परीक्षा पास कर डीएम बने. उसकी मेहनत और लगन ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर किसी में मेहनत करने का जज्बा हो, तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं होती. साथ ही छोटू की सफलता के पीछे उसके परिवार का भी बड़ा हाथ है, विशेष रूप से उसकी मां के प्रोत्साहन ने उसे कभी पीछे नहीं हटने दिया. उसका संघर्ष और परिवार की समर्थन से वह आज उस मुकाम पर पहुंचा है, जहां वह दूसरों के लिए प्रेरणा बन चुका है.
छोटू कुमार का जीवन इस बात का उदाहरण है कि जीवन में किसी भी प्रकार की विकलांगता कोई दीवार नहीं है. सही दिशा और कठिन मेहनत से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है. उसका संदेश है कि मेहनत करने से कभी न थकें, क्योंकि सफलता उन लोगों के कदम चूमती है जो कभी हार नहीं मानते.
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