मंदिर में आने वाले श्रद्धालु जोगो देवी ने बताया कि बखरी का पुरानी दुर्गाा मंदिर देखने मे समान्य मंदिरों की तरह दिखने वाला है. इस मंदिर का इतिहास सात सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है. मुगल काल में ही इस मंदिर की स्थापना हुई थी.
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बेगूसराय : दुर्गापूजा में तंत्र साधना का प्राचीन इतिहास रहा है. देश भर में तंत्र साधकों के लिए कुछ ऐसें स्थान प्रसिद्व है, जहां तंत्र साधक सिद्वी के लिए पहुंचते है. तंत्र साधना के ऐसे ही प्रमुख स्थलों में एक बेगसूराय का बखरी प्रखंड है जो 400 साल पहले मुगल काल से ही तंत्र साधना का गढ़ रहा है. शक्तिपीठ के रूप मे चर्चित बखरी की पुरानी दुर्गा मंदिर का इतिहास सात सौ वर्ष पुराना है. मुगल काल से ही सिद्वी के प्रमुख स्थलों में एक, इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मन की हर दुआ पुरी होती है. यहां की बलि प्रथा भी जग प्रसिद्व है.
बखरी की क्या है मान्यता
मंदिर में आने वाले श्रद्धालु जोगो देवी ने बताया कि बखरी का पुरानी दुर्गाा मंदिर देखने मे समान्य मंदिरों की तरह दिखने वाला है. इस मंदिर का इतिहास सात सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है. मुगल काल में ही इस मंदिर की स्थापना हुई थी. इस मंदिर में पहले सोने की मां दुर्गा विराजती थी, पर छल से इसे दुसरे स्थान पर ले जाया गया. इस मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि यह तंत्र साधना का प्रमुख स्थल रहा है. दुर्गापूजा के अष्टमी के दिन यहां देश भर के तंत्र साधक तंत्र साधना की सिद्वि के लिए पहुंचते है.
राजस्थान से देवी मां की मूर्ति लाए थे परमार वंश
आचार्य परमात्मा पांडेय ने बताया कि बखरी के इस पौराणिक सिद्ध शक्तिपीठ के संबंध में कहा जा रहा है कि परमार वंश के राजाओं ने राजस्थान से देवी की सोने की मूर्ति लाई थी. उसे यहां स्थापित किया था, लेकिन बाद में मुगल काल में ही उस मूर्ति को कहीं अन्यत्र हटा दिया गया और उसके प्रमाण भी छुपा दिए गए, लेकिन बाद में स्थानीय लोगों के द्वारा सैकड़ों वर्षो से यहां मिट्टी की प्रतिमा बनाई जाती है तथा पूरी भक्ति भाव से आराधना की जाती है. कहा जाता है कि बिहार समेत कई प्रांत और नेपाल तक के श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और अपने मन्नतें मांगते हैं. श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां श्रद्धा भाव से मांगी गई भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है. प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां भैंसे की बलि से लेकर छागर बली तक दिया जाता है. साथ ही साथ यहां सतोगुण रजोगुण और तमोगुण तीनों विधि से देवी भगवती की आराधना की जाती है.
इनपुट- जितेंद्र चौधरी