राजस्थान के बाद अब बिहार में कांग्रेस करेगी दो दिन चिंतन, जानिए शिविर के सियासी मायने
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राजस्थान के बाद अब बिहार में कांग्रेस करेगी दो दिन चिंतन, जानिए शिविर के सियासी मायने

एक और दो जून को होने वाले चिंतन शिविर के जरिए पार्टी की खो चुकी जमीन को तलाशने और फिर-फिर जन-जन तक पहुंचने की रणनीति पर चर्चा होगी.

कांग्रेस बिहार में चिंतन शिविर के जरिए राजनीतिक हालातों पर चर्चा करेगी.

पटना:  Congress Chintan Shivir: केंद्र की सत्ता से 8 सालों की दूरी, बिहार में सत्ता के शीर्ष से करीब 32 सालों का वनवास. ये ही वे कारण हैं, जिसने उदयपुर के राष्ट्रीय चिंतन शिविर के बाद अब बिहार प्रदेश कांग्रेस को चिंतन शिविर के बहाने राजनीतिक हालातों की चिंता करने के लिए मजबूर कर दिया है. राजगीर में विश्व शांति स्तूप के साए में बिहार कांग्रेस शांति के साथ इस बात पर चिंतन करना चाहती है कि आखिर वो सत्ता से दूर हुई तो कैसे और अब राजनीति के अजेय योद्धा जैसे दिख रहे नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी को सत्ता से दूर करके वापसी की जाए तो भला कैसे? 

दो दिन कांग्रेस करेगी मंथन
इस मसले पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बिहार इकाई दो दिनों तक गहन मंथन करने वाली है. एक और दो जून को होने वाले चिंतन शिविर के जरिए पार्टी की खो चुकी जमीन को तलाशने और फिर-फिर जन-जन तक पहुंचने की रणनीति पर चर्चा होगी.

कठिन है डगर, मुश्किल है सफर
एक वो दौर था जब पूरे देश की तरह बिहार में कांग्रेस भी एक बड़ी राजनीतिक शक्ति हुआ करती थी. तभी तो आजादी के बाद से 1990 के दशक की शुरुआत तक बिहार में एक के बाद एक 18 कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनें. उस दौर में कांग्रेस के बिना बिहार की राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. तब शायद किसी ने ऐसा सोचा भी नहीं था कि एक ऐसा भी वक्त आएगा जब बिहार में कांग्रेस सियासत की पृष्ठभूमि में गुम हो जाएगी. लेकिन, विश्वनाथ प्रसाद सिंह सरकार (VP Singh Government) के आने के बाद मंडल कमीशन (Mandal Commission) की रिपोर्ट लागू हुई और देश ने नई सियासी करवट ली. 

कांग्रेस को वजूद बचाना मुश्किल
बिहार में लालू यादव (Lalu Yadav) के रूप में सियासत के एक नए महायोद्धा का आगमन हुआ. इसके बाद कांग्रेस बिहार की सियासत की रेस में लगातार पिछड़ती चली गयी. आलम ये था कि कांग्रेस के लिए वजूद बचाना तक मुश्किल हो गया. 

विधानसभा में सिर्फ 19 विधायक
आखिरकार देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को उसी लालू यादव की पार्टी का सहारा लेना पड़ा, जिसकी कभी वो धुर विरोधी हुआ करती थी. आरजेडी के सहारे के बाद भी आज कांग्रेस विधानसभा की सिर्फ 19 सीटों तक सिमट गयी है जबकि लोकसभा में बिहार से उसका सिर्फ एक सदस्य है. 

खेवैया के बिना कैसे किनारे लगेगी नाव?
बिहार में राजनीति के भंवर में बुरी तरह फंस कर डगमगा रही कांग्रेस की नाव को अब ऐसे खेवैया की तलाश है जो न सिर्फ उसे संभाल सके बल्कि सही दिशा में भी ले जा सके. लेकिन, यह सबकुछ इतना आसान है नहीं. जब बिहार कांग्रेस चिंतन शिविर का आयोजन करने जा रही है, उस वक्त में भी पार्टी नेतृत्व विहीनता की हालत में है. कहने को तो डॉ. मदन मोहन झा बिहार कांग्रेस के अभी भी अध्यक्ष हैं, लेकिन हकीकत यही है कि वो अपना कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद इस्तीफा दे चुके हैं और कांग्रेस के पास अभी कोई प्रदेश अध्यक्ष नहीं है.

बिहार कांग्रेस को अध्यक्ष की तलाश
मदन मोहन झा को इस्तीफा दिए लंबा वक्त बीत चुका है, लेकिन कमजोर हालत के बाद भी खेमे में बंटी कांग्रेस एक अध्यक्ष तक की तलाश नहीं कर पा रही है. कभी जाति के आधार पर तो कभी वर्ग के आधार पर नए बिहार कांग्रेस अध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है. इतना ही नहीं, बिहार कांग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास को लेकर भी पार्टी के एक बड़े वर्ग में असंतोष है. 

सिर्फ औपचारिकता ना रह जाए चिंतन शिविर!
विवादों में घिरी कांग्रेस के इस दो दिवसीय चिंतन शिविर में 300 नेता पार्टी की मजबूती पर मंथन करेंगे. आलाकमान के निर्देश पर आयोजित इस शिविर के जरिए उदयपुर चिंतन शिविर की अहम बातों को नीचे स्तर तक पहुंचाने पर जोर रहेगा. इसमें पार्टी के सिद्धांत और नीतियों से लेकर पार्टी को मजबूत करने की रणनीति पर भी पार्टी नेताओं के बीच विचार-विमर्श होगा. लेकिन, चिंतन शिविर से पहले कांग्रेस के लिए यह चिंता करने की बात है कि जब पार्टी कार्यकर्ता अपना आत्मविश्वास खो चुके हैं और नेता आपस में बंटे हुए है तो ये चिंतन शिविर एक औपचारिक बैठक भर न बनकर रह जाए. 

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कांग्रेस को एकजुट करने की कवायद
पार्टी को अगर सचमुच अपने आपको 2024 के लोकसभा चुनावों के साथ बिहार की सियासत में अपने स्थिति को मजबूत करना है तो, एकजुट होकर गंभीर चिंतन करना होगा कि पार्टी से लगातार दूर हो रहे लोगों को वापस अपनी तरफ लाया जा सके.

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