Khalistani Movement in Canada: पंजाब के पूर्व खालिस्तानी आंदोलन और कनाडा में रहने वाले इसके समर्थकों को लेकर भारत और कनाडा के बीच संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं. इसका असर दोनों देशों के कारोबारी और राजनयिक संबंधों पर पड़ रहा है. आईये, जानते हैं, आखिर कनाडा इसमें क्यों हस्तक्षेप कर रहा है?
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Khalistani Movement in Canada:आजादी के बाद से ही भारत और कनाडा के बीच बेहतर कारोबारी और राजनयिक संबंध रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में कनाडा में भारत विरोधी खालिस्तानी आंदोलन को वहां की सरकार द्वारा दिए जा रहे नैतिक समर्थन के कारण दोनों देशों के संबंध बिगड़ रहे हैं. हाल ही में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रडो ने वहां की संसद में एक बयान दिया था, जिसके बाद कनाडा और भारत के बीच दुश्मनी की दीवार खड़ी होती नजर आ रही है. ट्रूडो ने दो दिन पहले कहा था कि इसी साल जुलाई माह में खालिस्तानी आंदोलन के एक नेता और कनाडा के नागरिक निज्जर की कनाडा में हुई हत्या के पीछे भारत का हाथ था. हालांकि, भारत ने ट्रूडो के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है.
इसके साथ ही कनाडा में रहने वाले भारतीय हिंदुओं को वहां के खालिस्तानी नेताओं ने कनाडा छोड़ने की धमकी दे दी है. इसके बाद दोनों देशों ने अपने-अपने यहां से एक दूसरे के दूतावास के एक-एक अधिकारी को देश छोड़ने का आदेश दे दिया है. वहीं, दोनों देशों ने अपने-अपने नागरिकों को भारत और कनाडा में अतिरिक्त सुरक्षा बरतने के लिए गाइडलाइन जारी किए हैं.
इसी बीच भारत ने गुरुवार को कनाडाई नागरिकों के भारत आने पर बैन लगा दिया है. यानी दोनों देशों के बीच का मामला अब बढ़ता जा रहा है, और इन सब के बीच है खालिस्तानी आंदोलन और उसके नेता... हम यहां यह समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर खालिस्तानी आंदोलन क्या है और इसमें कनाडा का नाम बीच में क्यों आ रहा है?
क्या चाहते हैं खालिस्तानी समर्थक ?
पंजाब के सिख समुदाय के कुछ लोग सिखों के लिए पाकिस्तान की तर्ज पर खालिस्तान नाम से एक अलग देश की मांग करते रहे हैं. इस प्रस्तावित देश में पंजाब सहित, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पाकिस्तान के कुछ जिले को वह शामिल करना चाहते हैं. खालिस्तान का मतलब है खालसा की धरती यानी जहां सिख लोग रहते हों.
इस मांग को कहां से मिली ताकत ?
खालिस्तान देश की मांग को धार्मिक आधार पर हुए हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे से बल मिला था. हालांकि, इसकी अवधारणा आजादी के पहले मुस्लिम लीग के पाकिस्तान के प्रस्ताव के साथ ही मानी जाती है. विभाजन के वक्त सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब को उठाना पड़ा. बंटवारे के वक्त हुए सांप्रदायिक दंगों में सबसे ज्यादा यहां के लोग जले थे. पंजाब का एक बड़ा हिस्सा भी विभाजन में पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. इस वजह से महाराजा रणजीत सिंह के सिख साम्राज्य की राजधानी लाहौर भी पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. सिखों के लिए सबसे बड़ा दुख इस बात में था कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म स्थान ननकाना साहिब भी पाकिस्तान के इलाके में चला गया.
पंजाब का बंटवारा और अलग संविधान की मांग
आजादी के बाद जब देश में भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांग उठी और आंदोलन हुए, उस वक्त पंजाब से भी ये आंदोलन शुरू हुआ. 1966 में पंजाब को हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में विभाजित कर दिया गया. हालांकि, पहली बार खुले तौर पर 1973 में अकाली दल ने खालिस्तान की मांग को हवा देने का काम किया. आनंदपुर साहिब नाम के इस प्रस्ताव में कश्मीर की तरह पंजाब में भी ज्यादा आजादी और अलग संविधान की मांग की गई थी.
खालिस्तानी आंदोलन में भिंडरावाले की एंट्री
पंजाब के लिए अलग संविधान और आजादी की मांगों के बीच ही वहां के एक धार्मिक नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले ने इस मांग और आंदोलन का एक तरह से हैक कर लिया और खुद को इसका नेता घोषित कर दिया. इसके समानांतर पंजाब में कई संगठन वजूद में आ गए. 1980 के दशक तक भिंडरांवाले और उसका हिंसक आंदालेन इतना ताकतवर हो गया कि सरकार का इस पर नियंत्रण करना मुश्किल हो गया. पंजाब के हालात 1990 के बाद के कश्मीर जैसे हो गए थे. जगह-जगह मार-काट, हिंसा, धमकी, फिरौती आम हो गई थी. सरकार का समर्थन करने वालों को खालिस्तानी उग्रवादी निशाना बनाने लगे. इसमें बहुत से नेताओं, अधिकारियों और पत्रकारों को अपनी जानें गंवानी पड़ी. 1982 में भिंडरावाले ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर को अपना ठिकाना बनाकर यहां से हिंसक आंदोलन का नेतृत्व करना शुरू कर दिया.
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ऑपरेशन ब्लूस्टार और खालिस्तानी भिंडरावाले का खात्मा
केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार पंजाब के हालात और भिंडरावाले से तंग आ चुकी थी. 1 जून, 1984 को केंद्र सरकार ने मंदिर परिसर में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाकर भिंडरावाले और उसके साथियों को मार गिराया. इस कार्रवाई में कई निर्दोष नागरिक भी मारे गए. सरकार ने ऑपरेशन स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से तो खाली करा लिया, लेकिन इससे दुनिया भर में इंदिरा सरकार की छवि एक सिख विरोधी नेता के तौर पर बन गई और इस घटना से दुनिया भर में रहने वाले सिख बेहद आहत हो गए.
ऑपरेशन ब्लूस्टार के नतीजे में इंदिरा गांधी की हत्या
सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लूस्टार चलाने का आदेश देने और उसमें सिखों के मारे जाने से सिख समुदाय इंदिरा गांधी से बेहद नाराज थे. इस घटना से नाराज इंदिरा गांधी की सुरक्षा में शामिल दो सिख बॉडी गार्ड ने ऑपरेशन ब्लूस्टार के चार माह बाद ही गोली मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी. इस घटना के बाद देश जल उठा.. कांग्रेस समर्थक और उसके कार्यकर्ता सिखों के प्रति नफरत से भर गए.. पूरे देश में जहां कहीं भी सिख नजर आया, उसकी हत्या कर दी गई. सिख ट्रक ड्राइवरों को पकड़कर उसे आग लगा दी गई. सिर्फ दिल्ली में ही सैंकड़ों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया. उसके घर और दुकाने जला दी गईं. कई दिनों तक जारी इस हिंसा में देशभर में लगभग 8 हजार सिख मार दिए गए.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आंदोलन ने पकड़ा जोर
इंदिरा गांधी की हत्या और सिखों के नरसंहार के बाद यह आंदोलन और तीव्र हो गया. सिख उग्रवादियों ने नरसंहार का बदला लेने के लिए कनाडा में एयर इंडिया हवाई जहाज़ को बम से उड़ा दिया जिसमें 329 लोगों की मौत हो गई. साल 1995 तक पंजाब देश में उग्रवाद का सबसे बड़र केंद्र बन गया. बाद में कांग्रेस के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और डीजीपी केपीएस गिल ने सैन्य और पुलिस बल के दम पर सिख उग्रवाद को पंजाब में पूरी तरह कुचल दिया. प्रदेश के लोगों ने उग्रवादियों का समर्थन करना बंद कर दिया और धीरे-धीरे पंजाब से खलिस्तानी आंदोलन और उग्रवाद का सफाया हो गया.
विदेशों में क्यों पनप रहे खालिस्तानी समर्थक ?
पंजाब भारत का एक समृद्ध प्रदेश है. यह कृषि क्रांति का केंद्र रहा है. यहां की एक बड़ी सिख आबादी अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में रहती है. वह वहां कारोबार करते हैं. वहां रहने वाले लोग आज भी ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके बाद भारत में हुए सिखों के नरसंहार को नहीं भूले हैं. उनके अंदर आज भी खालिस्तान को लेकर एक आग्रह है. वह खालिस्तानी समर्थक नेताओं को फंड करते हैं और इस आंदोलन को फिर से जिंदा करना चाहते हैं.
कनाडा में सिखों की एक बड़ी आबादी रहती है. पंजाब के कुछ वांछित सिख अपराधी और उग्रवादी भी चोरी-छिपे कनाडा में शरण लेते हैं, क्योंकि वहां उन्हें अपने समुदाय और वहां की सरकार का समर्थन मिलता है. सिख पंजाब में मजबूत स्थिति में है. वह ट्रूडो की पार्टी के वोटर भी हैं. इसलिए सरकार उनका समर्थन करती है. हाल के दिनों में चीन और पाकिस्तान पर ये आरोप लगे हैं कि वह भारत में हिंसा और अलगाव को बढ़ावा देने के लिए पंजाब के खालिस्तानी आंदोलन को हवा दे रहे हैं. पाकिस्तान कश्मीर से धारा 370 को ख़त्म किये जाना का बदला पंजाब को अलगाव की आग में धकेल कर लेना चाहता है.
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