Urdu Poetry in Hindi: तुम ऐसे कौन ख़ुदा हो कि उम्र भर तुम से...
Siraj Mahi
Jan 20, 2025
कोई वा'दा वो कर जो पूरा हो, कोई सिक्का वो दे कि जारी हो
तेरे ख़याल के दीवार-ओ-दर बनाते हैं, हम अपने घर में भी तेरा ही घर बनाते हैं
बिखेरते रहो सहरा में बीज उल्फ़त के, कि बीज ही तो उभर कर शजर बनाते हैं
तुम ऐसे कौन ख़ुदा हो कि उम्र भर तुम से, उमीद भी न रखूँ ना-उमीद भी न रहूँ
एक अजीब राग है एक अजीब गुफ़्तुगू, सात सुरों की आग है आठवीं सुर की जुस्तुजू
क्या-क्या रोग लगे हैं दिल को क्या क्या उन के भेद, हम सब को समझाने वाले कौन हमें समझाए
कुछ छोटे-छोटे दुख अपने कुछ दुख अपने अज़ीज़ों के, इन से ही जीवन बनता है सो जीवन बन जाएगा
अजनबियों से धोके खाना फिर भी समझ में आता है, इस के लिए क्या कहते हो वो शख़्स तो देखा-भाला था
जाने क्यूँ लोगों की नज़रें तुझ तक पहुँचीं हम ने तो, बरसों ब'अद ग़ज़ल की रौ में इक मज़मून निकाला था
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