Year Ender 2024: साल 2024 खत्म होने में अब महज 2 दिन बाकी रह गए हैं. साल 2024 में बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. इस साल में हमनें कई बड़े चेहरे खो दिए.
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Year Ender 2024: इस साल मनमोहन सिंह, जाकिर हुसैन, अमीन सयानी, श्याम बेनेगल, फली एस नरीमन, बुद्धदेव भट्टाचार्य और ए रामचंद्रन समेत अपने-अपने क्षेत्र की कई मशहूर हस्तियों ने दुनिया को अलविदा कह दिया. राजनीति, व्यवसाय, कानून और अर्थशास्त्र के क्षेत्रों ने कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी और बुद्धदेव भट्टाचार्य, व्यवसायी-परोपकारी रतन टाटा, कानूनी दिग्गज फली एस नरीमन और ए जी नूरानी और अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय जैसे दिग्गजों का निधन हो गया.
डॉ. मनमोहन सिंह का निधन
साल के अंतिम दिनों में देश ने अपने एक और सच्चे सपूत को खो दिया. भारत के सबसे बड़े नेताओं में से एक और आर्थिक सुधारों के जनक, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 26 दिसंबर को अंतिम सांस ली. कांग्रेस नेता ने 1990 के दशक में देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिए नीतियां बनाकर राष्ट्र को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया.
रतन टाटा का निधन
इससे पहले, रतन टाटा के निधन ने कारोबारी क्षेत्र में एक अपूरणीय शून्य पैदा कर दिया. टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष ने नमक से लेकर सॉफ्टवेयर बनाने तक समूह का विस्तार करके इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. सुशील कुमार मोदी, नटवर सिंह, ओम प्रकाश चौटाला और एसएम कृष्णा जैसे प्रमुख नेताओं ने भी इस वर्ष अंतिम सांस ली.
राशिद खान का निधन
गायक पंकज उधास, प्रभा अत्रे और उस्ताद राशिद खान, भरतनाट्यम नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति और तबला वादक जाकिर हुसैन के निधन से इस साल कला के क्षेत्र में भी बड़ी क्षति हुई. जनवरी में शास्त्रीय गायक राशिद खान का निधन हो गया. राशिद खान ने अपनी आवाज से 'जब वी मेट' के 'आओगे जब तुम' और 'मॉर्निंग वॉक' के 'भोर भयो' जैसे गीतों को अमर कर दिया.
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प्रभा अत्रे का निधन
भारत ने किराना घराने की सबसे पुरानी गायिकाओं में से एक प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका प्रभा अत्रे को भी खो दिया. पद्म भूषण से सम्मानित अत्रे का ख्याल, ठुमरी, दादरा और गजल सहित विभिन्न संगीत शैलियों पर असाधारण अधिकार था. अपनी सदाबहार गजलों के लिए मशहूर पंकज उधास ने 'चांदी जैसा रंग है तेरा', 'फिर हाथ में शराब है' और 'और आहिस्ता' जैसे गीतों से इस शैली को लोकप्रिय बनाया. उनकी आवाज ने 'चिट्ठी आई है', 'ना कजरे की धार' और 'जीयें तो जीयें कैसे' जैसे हिंदी फिल्मी गानों में चार चांद लगा दिये.
यामिनी कृष्णमूर्ति का निधन
बहुमुखी प्रतिभा की धनी यामिनी कृष्णमूर्ति को उत्तर भारत में भरतनाट्यम को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है. उन्हें भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, कर्नाटक गायन और वीणा में महारत हासिल थी. कला के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री (1968), पद्म भूषण (2001) और पद्म विभूषण (2016) से सम्मानित किया गया.
जाकिर हुसैन का निधन
जाकिर हुसैन की मृत्यु से देश ने अपनी पीढ़ी के सबसे महत्वपूर्ण कलाकारों में से एक को भी खो दिया. अपने पिता अल्ला रक्खा के पदचिह्नों पर चलते हुए तबला वादक न केवल घर-घर में मशहूर हुए, बल्कि उन्होंने इस वाद्य यंत्र को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया और अपने करियर में चार ग्रैमी पुरस्कार जीते.
शारदा सिन्हा का निधन
संगीत के क्षेत्र की एक और बड़ी शख्सियत शारदा सिन्हा का भी इस साल निधन हो गया. भोजपुरी और मैथिली लोक संगीत को लोकप्रिय बनाने वाली सिन्हा अपने भक्ति गीतों के जरिये छठ पूजा की आवाज बन गईं थीं. उन्होंने 'कहे तो से सजना' और 'तार बिजली' जैसे हिंदी फिल्मी गीतों में भी अपनी आवाज से अनूठी छाप छोड़ी.
साहित्य जगत ने शायर मुनव्वर राणा, केकी एन दारूवाला, उषा किरण खान, सुरजीत पातर और मालती जोशी जैसे जाने-माने नाम खो दिए. अवधी और उर्दू में लिखने वाले राणा ने फारसी और अरबी शब्दावली से अपरिचित पाठकों के लिए शायरी को सुलभ बनाया. शायर अपने राजनीतिक विचारों के लिए भी जाने जाते थे, जो अक्सर लोकप्रिय राय के विपरीत होते थे.
खाना पकाने की 'दम पुख्त' परंपरा को जिंदा करने वाले शेफ इम्तियाज कुरैशी का भी इस साल निधन हो गया. अवधी व्यंजनों में पारंगत कुरैशी ने 'दाल बुखारा', 'दम पुख्त बिरयानी', 'काकोरी कबाब', 'लहसुन की खीर' और 'वरकी पराठा' जैसे व्यंजनों को लोकप्रिय बनाया. कला क्षेत्र में मशहूर हनीफ कुरैशी भी इस साल गुजर गए. कुरैशी ने 'स्ट्रीट आर्ट' के क्षेत्र में क्रांति ला दी और दिल्ली में लोधी आर्ट डिस्ट्रिक्ट, मुंबई में ससून डॉक आर्ट प्रोजेक्ट और बैंगलोर मेट्रो सहित सार्वजनिक कला परियोजनाओं के पीछे प्रेरक शक्ति थे.
फिल्म और फैशन की दुनिया के भी कुछ नामी सितारों का भी इस साल साथ छूट गया. समानांतर सिनेमा के दो सबसे अग्रणी चेहरे श्याम बेनेगल और कुमार साहनी के निधन से बड़ा खालीपन पैदा हो गया. साहनी को 'माया दर्पण' और 'कस्बा' और बेनेगल को 'अंकुर', 'मंथन', 'निशांत' जैसी सिनेमाई कृतियों के लिए हमेशा याद किया जाएगा.
सबसे प्रसिद्ध भारतीय फैशन डिजाइनरों में से एक रोहित बल ने भी इस साल अलविदा कह दिया. निर्देशक संगीत सिवन और अभिनेता ऋतुराज सिंह व अतुल परचुरे भी इस साल अलविदा कहने वालों में शामिल थे. दृश्य कला के क्षेत्र ने चित्रकार ए रामचंद्रन को खो दिया. भारत में सार्वजनिक प्रसारण का पर्याय माने जाने वाले रेडियो जॉकी अमीन सयानी भी इस साल हम सब का साथ छोड़ गए.
(भाषा)
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