Bilaspur News in Hindi: देवभूमि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित औहर में आज भी विद्यमान है पांडवों द्वारा स्थापित मूर्तियां व शिलाएं. अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने शिवलिंग, भगवान हनुमान की मूर्ति व शीतला माता के पिंडीरुप की स्थापना करी थी.
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विजय भारद्वाज/बिलासपुर: देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपनी आस्था व संस्कृति के लिए विश्वभर में जाना जाता है. एक ओर जहां हिमाचल प्रदेश के शक्तिपीठों में श्रद्धालुओं की अपार आस्था विद्यमान है, तो वहीं यहां के मठ-मंदिर अपने आप में कईं तरह का इतिहास संजोए हुए हैं. जी हां ऐसा ही एक ऐतिहासिक स्थान बिलासपुर में स्थित है जिसका संबंध पांडवों के अज्ञातवास से है.
आपको बता दें, कि इतिहास अपने गर्भ में कई ऐसे रहस्यमयी जगहों को दबाए बैठा है जो आजतक केवल रहस्य बनकर ही रह गए हैं. आज हम आपको ऐसे ही एक रहस्यमयी जगह से रूबरू करवाएंगे जहां ना केवल पांडवों ने शरण ली थी बल्कि कईं तरह मूर्तियां व शिलाएं भी बनाई थी. आज हम जिस जगह की बात कर रहे हैं वह विद्यमान है देवभूमि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित औहर में.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 14 वर्ष के वनवास पर निकले पांडवों ने अज्ञातवास का महत्वपूर्ण समय औहर में भी गुजारा था. जहां वह कुछ समय के लिए रुके थे और इसी दौरान उन्होंने देवजी-देवताओं की पूजा आराधना करने के लिए अपने हाथों से मूर्तियों का निर्माण कर शिलाएं भी स्थापित की थी.
वहीं अज्ञातवास के दौरान औहर में ठहरे पांडवों द्वारा शिवलिंग की स्थापना के बाद, भगवान हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित की गईं जबकि कुछ ही दूरी पर पांडवों ने शीतला माता के पिंडी रूप की भी स्थापना की है. पांडव इस जगह से इतने प्रभावित थे कि वह इस स्थान को हरिद्वार का रूप देना चाहते थे, जिसको लेकर उन्होंने दो-तीन पौड़ियों का निर्माण भी किया था लेकिन सुबह करीब ढाई बजे जब एक स्थानीय महिला द्वारा छाछ-मट्ठा छोलने की आवाज पांडवों को आई तो उन्हें सुबह होने का अहसास होने लगा और अज्ञातवास होने के कारण कहीं किसी को पांडवों के औहर वन में होने का पता ना चले इसलिए वह औहर से आगे की यात्रा के लिए रवाना हो गए.
जिसके कारण पूरी पौड़ियों का निर्माण नहीं हो पाया, लेकिन आज भी इस स्थान को मिनी हरिद्वार के नाम से जाना जाता है. वहीं इस ऐतिहासिक धरोहर की जानकारी भले ही कुछ ही लोगों तक सीमित रह गई हो मगर कुल देवी शीतला माता मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा जहां माता रानी के दरबार में माथा टेका जाता है, तो साथ ही इस ऐतिहासिक धरोहर के दर्शन कर भक्त यहां भी अपनी हाजिरी लगाना नहीं भूलते.
वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने बुजुर्गों से इस ऐतिहासिक स्थल की कहानियां सुनी है और उन्हें यहां स्थापित शिलाओं व मूर्तियां से यह पूर्ण विश्वास है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस पवित्र स्थान को चुना था और यहीं पर देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर पूजा-आराधना भी की थी. वहीं दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि औहर में पांडवों द्वारा स्थापित यह मंदिर व शिलाएं उनकी आस्था का केंद्र है और शादी विवाह या किसी समारोह के दौरान वह यहां आना नहीं भूलते.
साथ ही भक्तों का कहना है कि इस स्थान पर आकर श्रद्धालु जो भी कामना करता है वह अवश्य ही पूरी होती है. वहीं इस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख न होने के कारण यहां की पौड़ियां नाम मात्र की ही रह गई हैं, तो वहीं मिनी हरिद्वार भी आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. ऐसे में जरूरी यह हो गया है कि हिमाचल प्रदेश की प्राचीन संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए रखने के लिए प्रदेश सरकार को आगे आना चाहिए ताकि ऐसे प्राचीन स्थानों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा सके है और इन ऐतिहासिक धरोहरों का जीर्णोद्धार कर आने वाली पीढ़ी को भी इन एतोहसिक स्थानों के प्रति जागरूक किया जा सके.