लंदन: एक खगोलविज्ञानी ने नासा को बड़ी चेतावनी दी है. उन्होंने कहा है कि पानी मंगल ग्रह के जीवन के लिए घातक हो सकता है. हो सकता है कि अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह से जिन नमूनों को लेकर आए हों उनमें जीवन (microbes) रहे हों. लेकिन अपने प्रयोगों के दौरान वैज्ञानिकों ने गलती से उन्हें मार दिया हो.
टेक्निकल यूनिवर्सिटी बर्लिन के डिर्क शुल्ज़-मकुच ने खुलासा किया है कि सूक्ष्मजीवी जीवन का पता लगाने के इरादे से जुड़े प्रयोग कैसे घातक हो सकते थे. खासकर तब जब इसमें पानी का इस्तेमाल हुआ हो.
50 साल पहले हुई होगी खोज
द सन की एक रिपोर्ट में डिर्क शुल्ज़-मकुच ने एक लेख में बताया: "मंगल ग्रह पर जीवन लगभग 50 साल पहले खोजा गया होगा, लेकिन यह अनजाने में नष्ट हो गया होगा.
उन्होंने कहा, वैज्ञानिकों ने पहले ही मंगल ग्रह पर जीवन ढूंढ लिया होगा और फिर इसके सबूतों को दुर्घटनावश समाप्त कर दिया होगा. पानी मंगल ग्रह पर जीवन के लिए घातक हो सकता है' और हम 'हो सकता है कि हम पहले से ही विदेशी रोगाणुओं को मार चुके हों'.
पानी में डूबकर मरे रोगाणु
विशेषज्ञ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कितने प्रयोगों में पानी मिलाना शामिल था. उन्हें संदेह है कि यह पानी वास्तव में किसी भी सूक्ष्मजीवी जीवन को मार सकता है जो अत्यंत शुष्क मंगल ग्रह की मिट्टी में रहने के आदी थे. हो सकता है कि कोई भी रोगाणु पानी में डूब गया हो और जीवन के लिए सकारात्मक परीक्षण परिणाम आने से पहले ही मर गया हो.
कैसे लगाया ये अनुमान
"यह सिद्धांत 1970 के दशक के मध्य में नासा के वाइकिंग लैंडर्स द्वारा किए गए जीवन का पता लगाने वाले प्रयोगों के अस्पष्ट परिणामों से उत्पन्न हुआ है." लाइव साइंस के अनुसार, नासा के दो वाइकिंग लैंडर 1976 में मंगल ग्रह पर पहुंचे थे और उन्हें कई तरह के कार्य करने थे. इनमें से एक कार्य में मंगल ग्रह की मिट्टी में ऐसे बायोसिग्नेचर की तलाश करना शामिल था जो एलियन जीवन का संकेत देते हों.
इनमें से एक परीक्षण में क्लोरीनयुक्त ऑर्गेनिक्स नामक कुछ पाया गया. पर कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि यह मंगल ग्रह के बजाय सफाई उत्पादों और संदूषण से आते हैं.
हालाँकि, भविष्य के शोध से पता चला है कि क्लोरीनयुक्त कार्बनिक पदार्थ मंगल ग्रह के हैं, लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है कि ये पदार्थ जैविक प्रक्रियाओं से बने हैं या नहीं.डर्क शुल्ज़-मकुच सिर्फ इसी प्रयोग पर सवाल नहीं उठा रहे हैं. उन्होंने लिखा: "उन परीक्षणों के नतीजे उस समय भी बहुत भ्रमित करने वाले थे और आज भी वैसे ही हैं.
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