नई दिल्ली. हिन्दुस्तान की मिट्टी अत्यंत पवित्र है और इसकी पवित्रता ही इसकी विशेषता है. स्वयं स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि इस धरती पर, मृत्युलोक पर कोई कहीं भी जन्म लेता रहे लेकिन अंतिम जन्म के लिए, मोक्ष पाने के लिए उसे आर्यावर्त यानी भारत भूमि पर आना ही होगा.
अवतारी पुरुष थे स्वामी जी
वस्तुतः तथ्य यह है कि हिन्दुस्तान अवतारों की धरती है और सनातन धर्म को मानने वाले स्वामी विवेकानंद को भी अवतार ही मानते हैं. कहते हैं स्वामी जी के जन्म से पहले उनकी आस्थावान मां भुवनेश्वरी देवी ने वाराणसी में रहने वाली अपनी रिश्तेदार से विरेश्वर शिव मंदिर में पूजा अर्चना कर उनके लिए पुत्र का आशीर्वाद मांगने का अनुरोध किया.
देवकृपा के रूप में जन्मे थे नरेन
उपरोक्त घटना के बाद भुवनेश्वरी देवी के सपने में भगवान शिव आए और कहा कि मैंने तुम्हारी पूजा स्वीकार कर ली है और मैं स्वयं ही तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा. उसी के बाद स्वामी जी का जन्म हुआ. स्वामी विवेकानंद जी का असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था. उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के जाने-माने वकील थे. घर में किसी चीज का अभाव नहीं था लेकिन बालक नरेन्द्र बचपन से ही विलक्षण थे. दया-करूणा का भाव नन्हीं उम्र में ही दिखने लगा था.
शिवजी के गण ने लिया जन्म
हालांकि बचपन में वे इतने नटखट थे कि एकबार उनकी मां भुवनेश्वरी देवी ने गुस्से में कहा था कि मैंने भगवान शिव से पुत्र का आशीर्वाद मांगा था उन्होंने अपने गणों में से एक को मेरे घर-आंगन में भेज दिया. हालांकि बचपन से ही नरेन्द्रनाथ में ऐसे अद्भुत अलौकित गुण दिखाई देने लगे जिससे सबको ये लगने लगा कि ये बालक कुछ ऐसा करेगा कि अमर हो जाएगा.
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