Republic Day Kavita: 'वे बेच रहे हैं ये झंडे...', गणतंत्र दिवस पर पढ़ें भारत की असल तस्वीर दिखाने वाली कविता!

Republic Day Kavita: भारत 26 जनवरी को 76वां गणतंत्र मनाने जा रहा है. लेकिन आज भी देश में कई समस्याएं व्याप्त हैं, जिनके निवारण के लिए जनता राह तक रही है. गरीबी भी इन्हीं समस्याओं में से एक है. कवि ज्ञानेंद्रपति ने उन बच्चों की पीड़ा एक कविता में बताई है, जो गणतंत्र दिवस करीब आने पर झंडा बेचकर कुछ कमाई करते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 25, 2025, 12:25 PM IST
  • कवित ज्ञानेंद्रपति की कविता
  • गणतंत्र दिवस पर जरूर पढ़ें
Republic Day Kavita: 'वे बेच रहे हैं ये झंडे...', गणतंत्र दिवस पर पढ़ें भारत की असल तस्वीर दिखाने वाली कविता!

नई दिल्ली: Republic Day Kavita: गणतंत्र दिवस का मौका हर भारतीय के लिए बेहद विशेष माना जाता है. यदि आप भी इस दिन को खास बनाना चाहते हैं तो कवि ज्ञानेंद्रपति की एक खास कविता पढ़ सकते हैं, जो आपको भारत की एक ऐसी तस्वीर दिखाएंगे, जो आपको इमोशनल कर देगी.

कविता में क्या बताया गया है?
कवि ज्ञानेंद्रपति की ये कविता उन बच्चों पर है 26 जनवरी करीब आते ही भारत का झंडा 'तिरंगा' सड़कों पर बेचते हुए दिखाई देते हैं. ये बच्चे भी उसी भारत का हिस्सा हैं, जो अपने गणतंत्र पर गर्व करता है, इस दिन उल्लास मनाता है. कवि ज्ञानेंद्रपति की इस कविता में इन बच्चों की स्थिति को बताया गया है. कविता में इसका भी जिक्र है कि ये बच्चे कैसे अपनी तुतली जुबान से झंडा खरीदना का आग्रह करते हैं. कवि ने वर्णन किया है कि ये बच्चे जाड़े में भी झंडे बेचने के लिए निकल आते हैं. गिनती सीखने की उम्र में ये बच्चे खनखनाते सिक्के गिनने को मजबूर हैं. 

यह इनका गणतंत्र-दिवस है
तुम दूर से उन्हें देख कहोगे

गिनती सीखने की उम्रवाले बच्चे चार-पांच
पकड़े हुए एक-एक हाथ में एक-एक नहीं, कई-कई

नन्हें कागजी राष्ट्रीय झंडे तिरंगे
लेकिन थोड़ा करीब होते ही

तुम्हारा भरम मिट जाता है
पचीस जनवरी की सर्द शाम शुरू-रात

जब एक शीतलहर ठेल रही है सड़कों से लोगों को असमय ही घरों की ओर
वे बेच रहे हैं ये झंडे

घरमुंही दीठ के आगे लहराते
झंडे, स्कूल जानेवाले उनके समवयसी बच्चे जिन्हें पकड़ेंगे

गणतंत्र दिवस की सुबह
स्कूली समारोह में

पूरी धज में जाते हुए
उनके करीब

उनके खेद-खाए उल्लास के करीब
और छुटकों में जो बड़का है

बतलाता है तुतले शब्दों, भेद-भरे स्वर में
साठ रुपए सैकड़ा ले

बेचते एक-एक रुपये में
हिसाब के पक्के

गिनती सीखने की उम्र वाले बच्चे
गणतंत्र दिवस समारोह के शामियाने के बाहर खड़े

जड़ाती रात की उछीड़ सड़क पर
झंडों का झुंड उठाए, दीठ के आगे लहराते 

झंडा ऊंचा रहे हमारा!

-कवि ज्ञानेंद्रपति

 

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