नई दिल्ली: Manmohan Singh Gah Village Pakistan: 'तेरी आवाज से ज्यादा चर्चे मेरी खामोशी के हैं', ये लाइन पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व पर सटीक बैठती है. डॉक्टर साहब बेहद कम बोलते थे, लेकिन जब बोलते तो उन्हें दुनिया सुनती थी. इसी दुनिया में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 100 किमी दूर चकवाल जिले के 'गाह' गांव के लोग भी शामिल हैं, जो अपने गांव के बेटे पर गर्व करते थे. आज इस मिट्टी का लाल पंचतत्व में विलीन होने जा रहा है.
डॉक्टर साहब की खट्टी-मीठी यादें
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म साल 1932 में अविभाजित भारत में हुआ. मनमोहन के पैतृक गांव 'गाह' से जुड़ी पास कई स्याह यादें हैं. जब मनमोहन छोटे थे, टन उनकी मां का निधन यहीं हुआ. उनका अपने दादा से बेहद लगाव था, दंगों में उनकी हत्या भी यहीं हुई. लेकिन कुछ मीठी यादें भी हैं. मनमोहन ने गाह गांव के ही प्राइमरी स्कूल में चौथी कक्षा तक शिक्षा ली थी. उनके बचपन के साथी यहीं रहा करते थे. हालांकि, विभाजन के दौरान मनमोहन सिंह का परिवार भारत आ गया था.
'घर से किसी बड़े का साया उठ गया'
डॉ मनमोहन सिंह के निधन के समाचार पाने के बाद गांव में शोक सभा रखी गई. ये सभा राजा मुहम्मद अली के भतीजे राजा आशिक अली के घर पर हुई. राजा मुहम्मद अली डॉक्टर साहब के पक्के वाले दोस्त थे. साल 2008 में राजा मुहम्मद अली अपने बचपन के दोस्त मनमोहन से मिलने दिल्ली भी आए थे. आशिक अली ने शोक सभा में कहा- डॉक्टर साह न होते तो गांव में टू लेन सड़क, हाई स्कूल और सोलर एनर्जी भी न होते. गांव में इस कदर मातम है कि जैसे हमारे घर से किसी बड़े का साया उठ गया है.
'एक बार गांव आते...'
मनमोहन सरकार में मंत्री रहे राजीव शुक्ला ने बताया था- 'डॉक्टर साहब की अपने गांव जाने की इच्छा थी. वे अपने प्राइमरी स्कूल को देखना चाहते थे. लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हो पाई.' ठीक ऐसी ही इच्छा गाह गांव के लोगों की भी है. गांव के ही इबरार अख्तर जंजुआ कहते हैं- हम सब चाहते थे कि डॉक्टर साहब एक बार गांव जरूर आएं. लेकिन ये इच्छा पूरी न हो सकी.
डॉक्टर साहब के कारण हुए विकास कार्य
जब मनमोहन प्रधानमंत्री हुआ करते थे, तब उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को पत्र लिखकर अपने पैतृक गांव में विकास कार्य कराने के लिए कहा था. इसी का नतीजा रहा कि गाह 'आदर्श गांव' भी बना. गांव की प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक अल्ताफ हुसैन ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया- 'जब डॉक्टर साहब PM बने तो गांव के लोगों में खुशी थी. डॉक्टर साहब न होते, तो गांव में इतना विकास कार्य नहीं हो पाता.' गांव के लोग मनमोहन सिंह की अंतिम यात्रा में शामिल होना चाहते थे, लेकिन यह मुमकिन नहीं हो पाया.
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