नई दिल्लीः हिन्दुस्तान के इतिहासलेखन पर आजादी के पहले अंग्रेज यानी विदेशी इतिहासकारों का कब्जा रहा. आजादी के बाद विदेशी मानसिकता वाले वामपंथी इतिहासकारों के गिरोह ने इस पर कब्जा जमा लिया. नतीजा ये हुआ कि अपने देश के इतिहास को हम विदेशी चश्मे से पढ़ते और समझते रहे हैं. इन विदेशी मानसिकता वाले इतिहासकारों ने भारत के प्राचीन गौरव और गरिमा का जमकर मजाक उड़ाया. उन्होंने प्राचीन भारत का अपना एक खास नजरिया लोगों पर थोपा, जिसे सच मानकर देश के अधिकतर लोग हीनभावना के शिकार हुए.
तथ्यों पर वामपंथी पर्दा, झूठ का प्रचार
'हिन्दुस्तान पर 1000 साल तक बाहरी आक्रांताओं की हुकूमत रही.' इसे लेकर अलग-अलग मत हैं. कुछ इसे ऐतिहासिक सच बताते हैं तो कुछ इसे नकारते हुए सिर्फ 150 साल की विदेशी हुकूमत की बात करते हैं. वामपंथी इतिहासकार 1000 साल वाली थ्योरी को सिरे से नकारते हैं. सवाल है कि सच्चाई क्या है? लेकिन, इससे पहले दो बार भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का चेयरमैन पद संभालने वाले और 5 बार परिषद के सदस्य रह चुके वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब के इस बारे में विचार जान लेते हैं.
वह कहते हैं, 'ये जो फॉरेन रूल है यही कहा जाता है कि 150 साल रहा. हम जब स्कूल में पढ़ते थे तो आप कांग्रेसी हैं या महासभाई हैं उसका एक टेस्ट था. अगर आप ये कहते हैं कि डेढ़ सौ साल फॉरेन रूल रहा तो आप कांग्रेसी हैं. अगर आप ये कहते हैं कि एक हजार साल फॉरेन रूल रहा तो आप महासभाई हैं. क्योंकि वो मुसलमान रूलर्स को भी फॉरेन रूलर्स कहते थे.'
वामपंथियों के ऐतिहासिक झूठ का पर्दाफाश
इरफान हबीब के बयान से साफ है कि हमारे देश के इतिहासलेखन पर किस तरह से सियासी विचारधारा का गहरा असर रहा है. उनके मुताबिक कांग्रेसी वही माना गया, जिसने हिन्दुस्तान पर सिर्फ 150 साल की विदेशी हुकूतम की थ्योरी मानी और उनकी नजर में महासभाई यानी हिन्दू महासभा, जनसंघ या आरएसएस के समर्थक 1000 साल की विदेशी हुकूमत वाली थ्योरी को मानते हैं और मनवाना चाहते हैं. कहने की जरूरत नहीं कि इस मुद्दे को लेकर देश की सियासत शुरू से ही दो फाड़ रही है. बहरहाल, राजनीतिक विचारधारा के चश्मे से इतिहास की असली तस्वीर नहीं देखी जा सकती. इसके लिए तथ्यों और पुख्ता प्रमाणों की जरूरत पड़ती है. अब मुगल काल को फॉरेन रूल माना जाए या नहीं, इसकी पड़ताल तथ्यों की रोशनी में करते हैं. हिन्दुस्तान में मुगल वंशावली इस तरह से हैः बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब, बहादुरशाह.
फ्रांसीसी डॉक्टर ने दी मुगल शासन की जानकारी
शाहजहां मुगल शासन की पांचवीं पीढ़ी का रहनुमा था. उससे पहले मुगलों की चार पीढ़ियां इस देश पर हुकूमत कर चुकी थीं. इससे अनुमान तो यही लगता है कि शाहजहां का शासनकाल आते-आते मुगलों की हुकूमत पूरी तरह से हिन्दुस्तानी परिवेश में घुल मिल चुकी होगी. पर सच्चाई थोड़ी अलग है. शाहजहां के शासनकाल में एक फ्रांसीसी डॉक्टर फ्रेंकोइस बर्नियर भारत आया था. फ्रेंकोइस बर्नियर ने शाहजहां की तर्जे-हुकूमत को काफी नजदीक से देखा समझा था और हिन्दुस्तान की तत्कालीन स्थिति को भी कायदे से जांचा परखा था. दरअसल, डॉक्टर बर्नियर दारा शिकोह और औरंगजेब के दरबार में बतौर फिजिशियन मुलाजिम था. बर्नियर ने बाद में एक किताब लिखी TRAVELS OF THE MOGUL EMPIRE.
बर्नियर ने अपनी किताब में लिखा है, 'हिन्दुस्तान में अभी विदेशी शासन कर रहे हैं, जो हिन्दुओं या इंडियन्स का देश है. हालांकि, मुगल शासकों के राज में भरोसेमंद और सम्मानजनक पदों पर ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुगलिया नस्ल वालों का ही कब्जा है. मुगलों के अलावा इन पदों पर विदेशियों को बैठाया गया है, जिनमें सबसे बड़ा हिस्सा फारसियों का है, उसके बाद अरब वाले और तुर्क हैं."
मुगल दरबार में रहने वाला बर्नियर शाहजहां के शासनकाल को हिन्दुस्तान पर विदेशियों की हुकूमत बता रहा है, लेकिन वामपंथी इतिहासकार इन तथ्यों को नजरअंदाज कर महासभाई और कांग्रेसी का चश्मा लोगों की आंखों पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.
क्या है गुलाम वंश की हकीकत?
फ्रेंकोइस बर्नियर की किताब से साफ हो जाता है कि मुगल वंश की पांचवीं पीढ़ी के शासक शाहजहां के शासनकाल में भी भरोसेमंद और अहम पदों पर फारसियों, अरबों और तुर्कों की नियुक्ति होती थी. हिन्दुस्तानियों पर मुगल शासकों को भरोसा नहीं था. यही नहीं 1206 ई० से 1290 ई० के मध्य इस देश पर गुलाम वंश का शासन रहा. इसे गुलाम वंश नाम क्यों दिया गया इस बात से भी ज्यादातर देशवासी अनजान ही रहते हैं.
दरअसल, मोहम्मद गोरी उत्तर भारत का क्षेत्र जीतकर खुद तो गजनी लौट गया, लेकिन जाने से पहले उसने कुतुबुद्दीन ऐबक को उत्तर भारत का गवर्नर नियुक्त कर दिया. इस तरह भारत पर इस्लामिक शासन की स्थापना हो गई. ये एक पैगाम था पूरी दुनिया के लिए कि हिन्दुस्तान पर मोहम्मद गोरी के गुलाम शासन करते हैं. मतलब हिन्दुस्तानी तब गुलामों के गुलाम हो गए थे. मोहम्मद गोरी का कोई उत्तराधिकारी नहीं था. लिहाजा 1206 में उसकी मृत्यु के बाद खुद को गुलाम कहने वाले शासकों ने इसी नाम से 1290 तक हिन्दुस्तान पर राज किया.
असली इतिहास को जानना जरूरी
हिन्दुस्तान आदि काल से ही त्याग, दया, करुणा, प्रेम, भाईचारा और अध्यात्म की धरती रही है. हिन्दुस्तान के शासकों ने प्राचीन काल से ही शक्तिसंपन्न होने के बावजूद कभी दूसरों की धरती को कब्जाने की कोशिश नहीं की, लेकिन इस देश पर 8वीं शताब्दी से ही हमले शुरू हो गए. जिसका नतीजा ये हुआ कि प्राचीन काल की सोने की चिड़िया आज अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है. रही सही कसर वामपंथी इतिहासकारों ने पूरी कर दी है जो ये चाहते ही नहीं कि यहां के लोगों तक अपने प्राचीन इतिहास की सही जानकारी पहुंचे. वामपंथी इतिहासकार अपनी इस मुहिम में काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं. लेकिन वक्त आ गया है कि हम अपने इतिहास को उसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में समझें और खुद को गौरवान्वित महसूस करें.
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