शोर बहुत ही भारी है, अब काशी की बारी है

भगवान राम के जन्मस्थान (Ram mandir) का निर्माण शुरु होने के बाद भोलेनाथ (Lord shiva) की स्थली के उद्धार की बारी है. काशी (Varanasi) को मुक्त कराने की मांग तेज हो रही है. यह खुद देश के प्रधानमंत्री (PM Modi) का संसदीय क्षेत्र है. आज इस मामले की वाराणसी जिला अदालत में सुनवाई होने वाली है.   

Written by - Rakesh Pathak | Last Updated : Oct 3, 2020, 08:30 AM IST
    • राम मंदिर के बाद काशी विश्वनाथ की बारी
    • कट्टरपंथियों के चंगुल से कराया जाए मुक्त
शोर बहुत ही भारी है, अब काशी की बारी है

वाराणसी: भारत की प्राचीन परंपरा (Indian culture) में हर पंथ और समुदाय की आस्था और विश्वास का सम्मान रहा है. ये हमारी कमज़ोरी नहीं रही बल्कि भारतवर्ष की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है. बाहरी आक्रांताओं ने भारतीयों की सहृदयता को उनकी कमज़ोरी के तौर पर देखा. उनके धर्मस्थानों पर हमले किए. उनकी परंपराओं को खंडित किया गया ताकि भारतीयता का नामो निशान मिट जाए. इसी में से एक है काशी विश्वनाथ का मंदिर, जिसे आक्रांताओं ने तोड़ दिया था. इसे मुक्त कराने की मुहिम तेज ह गई है. आज वाराणसी की जिला अदालत में भगवान विश्वनाथ के मंदिर मामले पर अहम सुनवाई होने वाली है. 

अब राम मंदिर मामले में मिली जीत के बाद बहुसंख्यक आबादी काशी और मथुरा में अपने आराध्य के पूजा स्थलों को लेकर भी मुखर हो रही है.

सुनवाई की जगह पर अदालत में हई थी बहस 
आज इस पर फैसला हो जाएगा कि काशी विश्वनाथ केस की सुनवाई वाराणसी कोर्ट में होगी या फिर लखनऊ ट्रिब्यूनल कोर्ट में. सुनवाई कहां हो, इसी मुद्दे पर कुछ दिनों पहले अदालत में जबरदस्त बहस हुई थी. दोनों पक्षों ने अपने-अपने तर्क दिए, जिसे सुनने के बाद न्यायाधीश ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. लिहाजा, आज होने वाली सुनवाई में इस संबंध में फैसला होने की उम्मीद है. दरअसल, सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) चाहता है कि यह मामला वक्फ लखनऊ ट्रिब्यूनल कोर्ट में चलाया जाए. 

ZEE MEDIA के EXCLUSIVE दस्तावेज में मंदिर तोड़ने का जिक्र
ZEE MEDIA के पास काशी विश्वनाथ मंदिर के ऐतिहासिक EXCLUSIVE दस्तावेज हैं, जिनके मुताबिक 1669 में औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ा गया था. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि हमारे लिए जैसी अयोध्या है वैसी ही काशी है. मालूम हो कि अयोध्या पर कोर्ट के फैसले के बाद से काशी विश्वनाथ को लेकर कानूनी लड़ाई तेज हो गई है. 

निचली अदालत में सुनवाई के खिलाफ सुन्नी बोर्ड
सुन्नी वक्फ बोर्ड का तर्क है कि इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में नहीं हो सकती है. इसी को लेकर बोर्ड के वकील ने 18 सितंबर को सिविल रिवीजन दाखिल किया था, जिस पर स्वयंभू विशेश्वर का पक्ष जानने के लिए कोर्ट ने 28 सितंबर की तारीख दी थी. इस पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. 

राम का काम हुआ पूरा, अब विश्वनाथ बारी
काशी विश्वनाथ धाम को हिंदुओं की आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता है. यही वजह है कि इस्लामिक आंक्राताओं ने कई बार आस्था के इस केंद्र का विध्वंस किया. देश की सर्वोच्च अदालत के राम मंदिर पर आए ऐतिहासिक फैसले के बाद अब काशी में बाबा विश्वनाथ की ज़मीन पर हुए मजहबी अतिक्रमण को मुक्त कराने की मुहिम तेज़ हो रही है.दरअसल ये कोई लड़ाई नहीं है. ये एक समुदाय के दूसरे समुदाय के प्रति दिल बड़ा करने की बात है. जिस छोटे और तंग दिल से इस्लामिक आक्रांता औरंगजेब ने हिंदुओं की आस्था के केंद्र को तोड़ा उस ऐतिहासिक गलती को सुधारने का मौका है ये. काशी की ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर तोड़ कर बनाई गई इसके प्रमाण मस्जिद की दीवारों को देखने से ही मिलते हैं. दावा किया जाता है कि मस्जिद के पीछे की दीवारें मंदिर के भग्नावशेष हैं. श्रृंगार गौरी का खंडहरनुमा मंदिर मुगल आक्रमण का गवाह है. ज्योतिर्लिंग की दिशा में नंदी की मूर्ति का होना यह साफ तौर पर दर्शाता है कि मंदिर की प्रतिष्ठा कितनी बुरी तरह नष्ट की गई.

इंच-इंच शिव मंदिर के साक्ष्य
साक्ष्य हैं जो बताते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर पर बर्बरता पूर्ण हमला हुआ था. करीब साढ़े तीन सौ साल से ज्यादा का वक्त गुज़र चुका है. जब काशी विश्वनाथ के प्रांगण में हिंदुओं की आस्था के बड़े केंद्र पर औरंगजेब की आतंकी सेना ने हमला किया था. धर्मांध औरंगजेब का ये हमला बहुसंख्यक आबादी की किसी धर्मपीठ पर नहीं था बल्कि सीधे उसकी आस्था पर था उसके ईश्वर पर था. कुछ लोगों का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव के जिस ज्योतिर्लिंग के दर्शन आप करते हैं उसका मूल स्वरूप वहां नहीं बल्कि उस जगह पर मौजूद है जहां साढ़े तीन सौ साल पहले मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर एक मस्जिद बना दी गई थी. काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े अहम तथ्यों को देखे तो बहुसंख्यक आबादी पर जुल्म की कहानी साफ होती है.

औरंगज़ेब ने ढहाया था हिंदू 'आस्था स्थल'
हिंदू काशी विश्वनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मानते हैं. मुस्लिम आक्रांताओं ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर कई बार हमले किए. पहला हमला 11वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने  किया था. इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था, पर पूजा पाठ होती रही. बाद में 1585 में राजा टोडरमल ने विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया. लेकिन इस्लामिक हुकूमत की नज़र काशी विश्वनाथ मंदिर पर बनी रही. 1669 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया. काशी विश्वनाथ मंदिर की जगह पर एक मस्जिद बना दी गई इसी मस्जिद को ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं. बाद में 1780 में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में नया काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया था. इसी मंदिर को आज काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद आज तक जारी है और यह मामला कोर्ट में भी चल रहा है. 2018 में हिंदू पक्ष ने ASI से परिसर का सर्वेक्षण कराने की मांग की.

राम मंदिर के बाद निकले 'बाबा' का समाधान
दावा ये है कि जहां असली ज्योतिर्लिंग मौजूद था ठीक वहीं ज्ञानवापी मस्जिद है. ज्ञानवापी का अर्थ होता है ज्ञान का तालाब या कुआं. ये शब्द फारसी या उर्दू का नहीं बल्कि हिंदी का है. ज़ाहिर है अगर साक्ष्य हैं, तथ्य हैं तो फिर सच को झुठलाया नहीं जा सकता. दिक्कत इस बात की है कि सैकड़ों साल पहले हुए अन्याय को लेकर आज एक तबका न्याय साबित करने की कोशिश करता है. सच ये भी है कि अगर देश का मुस्लिम समुदाय मंदिर तोड़ कर बनाई गई मस्जिदों को उनके हिंदुओं पर शासन के गौरवमयी स्मृति के रूप में देखता है तो फिर ऐसे विवादित स्थल हिंदुओं को सौंपे जाने की उम्मीद बेमानी है.
इसे कानूनी रुप से हासिल करना ही एकमात्र उपाय है. क्योंकि काशी विश्वनाथ मंदिर हजारों साल से हिंदुओं की पूजास्थली रहा है. 

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