समलैंगिक विवाह पर जारी है खिंचतान, BCI के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने बताया अनुचित

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर हो रही सुनवाई पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने एक प्रस्ताव में चिंता जाहिर की थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने समलैंगिक विवाह संबंधी याचिकाओं पर बीसीआई के प्रस्ताव को ‘अत्यंत अनुचित’ बताया.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 28, 2023, 08:41 PM IST
  • समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर जारी है सुनवाई, जानें अपडेट
  • एससीबीए ने बीसीआई के प्रस्ताव को ‘अत्यंत अनुचित’ बताया
समलैंगिक विवाह पर जारी है खिंचतान, BCI के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने बताया अनुचित

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के एक प्रस्ताव की निंदा करते हुए उसे ‘अत्यंत अनुचित’ कहा, जिसमें कहा गया है कि शीर्ष अदालत (Supreme Court) को समलैंगिक विवाह (Same-Sex-Marriage) को वैध बनाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई छोड़ देनी चाहिए.

समलैंगिक विवाह के मुद्दे एससीबीए ने की प्रस्ताव की निंदा
बीसीआई ने 23 अप्रैल को पारित एक प्रस्ताव में उच्चतम न्यायालय में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर हो रही सुनवाई पर अपनी चिंता प्रकट की और कहा कि अदालत द्वारा विवाह की अवधारणा जैसी मौलिक चीज में बदलाव करना ‘विनाशकारी’ होगा और इस मामले को विधायिका पर छोड़ देना चाहिए.

एससीबीए के अनेक सदस्यों के हस्ताक्षर वाले उसके बयान में कहा गया कि यह तय करने की जिम्मेदारी अदालत की है कि मुद्दे पर फैसला अदालत को सुनाना चाहिए या इसे संसद पर छोड़ देना चाहिए. उसने कहा, 'एससीबीए की कार्यसमिति को लगता है कि बीसीआई के लिए 23 अप्रैल, 2023 को प्रेस वक्तव्य जारी कर उच्चतम न्यायालय के समक्ष मामले में सुनवाई का विरोध करना अत्यंत अनुचित है.'

पांच सदस्यीय संविधान पीठ याचिकाओं पर सुन रही है दलीलें
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पांच सदस्यीय संविधान पीठ उन याचिकाओं पर दलीलें सुन रही है, जिनमें समलैंगिक विवाह को वैधता प्रदान करने का अनुरोध किया गया है. बीसीआई ने एक प्रस्ताव में कहा था कि इस तरह के संवेदनशील मामले में शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला भावी पीढ़ियों के लिए बहुत नुकसानदेह हो सकता है.

समलैंगिक जोड़ों पर केंद्र से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा ये सवाल
बता दें, सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने गुरुवार को केंद्र से कहा कि समलैंगिक जोड़ों को उनकी वैवाहिक स्थिति की कानूनी मान्यता के बिना भी संयुक्त बैंक खाते या बीमा पॉलिसियों में भागीदार नामित करने जैसे बुनियादी सामाजिक लाभ देने का तरीका खोजा जाए.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि जब अदालत कहती है कि मान्यता को विवाह के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता नहीं है, तो इसका मतलब मान्यता हो सकती है जो उन्हें कुछ लाभों का हकदार बनाती है, और दो लोगों के जुड़ाव को विवाह के बराबर नहीं माना जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने स्वीकार किया कि समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मंजूरी संसद के अधिकार क्षेत्र में है.
(इनपुट- भाषा)

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