किसानों ने क्यों बनाई श्याम बेनेगल की ये फिल्म, चौंका देगी पैसा इकट्ठा करने की कहानी

Shyam Benegal Death: श्याम बेनेगल का नाम भारतीय सिनेमा में हमेशा चमचमाता रहेगा. उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. उनका निधन पूरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी क्षति हैं.

Written by - Bhawna Sahni | Last Updated : Dec 24, 2024, 12:51 AM IST
    • श्याम बेनेगल के निधन ने नम हुईं आंखें
    • अपनी फिल्मों के जरिए जिंदा रहेंगे श्याम
किसानों ने क्यों बनाई श्याम बेनेगल की ये फिल्म, चौंका देगी पैसा इकट्ठा करने की कहानी

Shyam Benegal Death: श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा का वो नाम है जिन्होंने सिनेमा का एक अलग ही रूप-रंग और दुनिया की वास्तविकता को पर्दे पर उतारा. 14 दिसंबर, 1934 को ब्रिटिश इंडिया के सिंकदराबाद में जन्में श्याम बेनेगल ने 23 दिसंबर, 2024 को हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविद कह दिया. उनके यूं चला जाना पूरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक एक बड़ी क्षति है. उनके 8 दशक के लंबे फिल्म सफर पर जितनी लिखा जाए उतना कम है. वैसे तो उन्होंने कई ऐसी उपलब्धियां हासिल कीं जिनके बारे में घंटों तक बात की जा सकती है, लेकिन आज हम आपके सामने उनकी एक ऐसी फिल्म की कहानी परोस रहे हैं, जिन्हें किसानों से तैयार कराया था.

जबरदस्त है 'मंथन' बनाने की कहानी

यहां हम बात कर रहे हैं 1976 में रिलीज हुई फिल्म 'मंथन' की. इस फिल्म के बनने की कहानी जानने के बाद आप भी कहेंगे कि हमारा देश ही नहीं, बल्कि फिल्मी दुनिया भी किसानों की कर्जदार है. श्याम बेनेगल के निर्देशन में 'मंथन' को भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे खूबसूरत और शानदार फिल्मों में से एक माना गया है. इस फिल्म में गांव और यहां के लोगों के बारे में ही चर्चा की गई है. अब इस फिल्म से किसानों का क्या नाता है ये जानने के बाद आप थोड़े हैरान जरूर हो जाएंगे. दरअसल, 'मंथन' के प्रोड्यूसर कोई और नहीं बल्कि, 5 लाख किसान थे.

श्वेता क्रांति पर बनी 'मंथन'

'मंथन' की कहानी श्वेत क्रांति यानी दुग्ध क्रांति पर आधारित है. डॉ. वर्गिस कुरियन इसके साथ सह-लेखक के तौर पर जुड़े थे. आज दुनिया डॉ. कुरियन को अमूल के कर्ता-धर्ता के रूप में जानते हैं. दूसरी ओर थे त्रिभुवदास पटेल, जो एक स्वतंत्रता सेनानी थे. देश की आजादी के बाद वह गुजरात के खेड़ा में आकर किसानों के साथ जुड़ गए. पटेल 1949 में अमेरिका से ग्रेजुएट होकर भारत लौटे और आकर वह डॉ. वर्गिस कुरियर के साथ जुड़ गए. पटेल ने ही देश में सहकारी समिति की शुरुआत की. 1970 में ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की गई, जिससे भारत में श्वेता क्रांति आ पाई और इसी के साथ भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया.

डॉ. कुरियन से मिले श्याम

इसी बीच श्याम बेनेगल की मुलाकात हुई डॉ. कुरियन से. कुरियन चाहते थे कि इस श्वेत क्रांति से जुड़ी हर चीज को सहजकर रखा जाए. वह पूरी दुनिया के सामने अपनी इस उपलब्धि को दिखाना चाहते थे, ताकि बाकि लोग भी उनसे प्रेरित हो सकें. जब उन्हें श्याम बेनेगल का साथ मिला तो उन्होंने इसे डॉक्यूमेंट्री के रूप में बनाने का फैसला किया. वहीं, श्याम भी इस पर काम शुरू करते हुए गुजरात के कई हिस्सों में निकल पड़े और श्वेत क्रांति को समझते गए.

अपनी ही डॉक्यूमेंट्री से खुश नहीं थे श्याम

श्याम ने इसके बाद कई डॉक्यूमेंट्रीज बनाई, जो डॉ. कुरियन को बेहद आईं. हालांकि, श्याम बेनेगल ने एक इंटरव्यू में इसका जिक्र करते हुए बताया था कि वह बेशक डॉ. कुरियर को ये डॉक्यूमेंट्री पसंद आ रही थीं, लेकिन वो खुद इनसे बिल्कुल संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे. दरअसल, श्याम का मानना था कि डॉक्यूमेंट्रीज कुछ चुनिंदा लोगों तक ही पहुंच पाएगी, इसलिए वो चाहते थे कि इसे फिल्म के रूप में मनाएं और दुनिया का हर शख्स इसे देख पाए. अब शुरू हुई 'मंथन' की कल्पना.

...और किसान बन गए प्रोड्यूसर

श्याम बेनेगल ने 'मंथन' बनाने का फैसला तो कर लिया, लेकिन फिल्म पर पैसा कौन लगाएगा इसका जवाब नहीं मिल पा रहा था. बहुत सोच-विचार के बाद आखिर डॉ. कुरियन ने एक हल निकाल लिया, हल भी ऐसा जिसने इतिहास रच दिया. फिल्म का बजट तैयार हुआ करीब 10 लाख रुपये, इसी के साथ 5 लाख किसान भी इसका हिस्सा बन गए. ये किसान गावों में बनाई गई समितियों में हर दिन सुबह-शाम दूध देने के लिए आते थे. वह दूध के एक पैकेट 8 रुपये लेते थे, लेकिन सभी समितियों ने किसानों से आग्रह किया कि वह सिर्फ एक दिन एक समय पर उन्हें 8 की बजाय 6 रुपये दूध का पैकेट दे दिया जाए. ऐसे में हर पैकेट पर 2 रुपये बचे, जिससे फिल्म का पूरा बजट निकल गया.

किसानों ने लुटाया प्यार

किसानों ने खुश होकर दूध के पैकेट पर 2-2 रुपये कम कर लिए. वहीं, जब 1976 में 'मंथन' रिलीज हुई तो इसे देखने के लिए भी गांव के लोगों की भारी भीड़ सिनेमाघरों तक पहुंची और ऐसा हो भी क्यों न, क्योंकि किसानों पर बनी इस फिल्म में पैसा भी किसानों का ही लगाया गया. ऐसे में 5 लाख किसान बन गए 'मंथन' के निर्माता, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक बात है.

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित हुई 'मंथन'

'मंथन' को 1976 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसे न सिर्फ के लोगों से प्यार मिला, बल्कि विदेशों में भी 'मंथन' ने खूब वाह-वाही बटोरी थी. इस फिल्म की दीवानगी देश के हर कोने-कोने में देखने को मिली. गांव भर से किसान श्याम बेनेगल की इस फिल्म को देखने के लिए ट्रक-ट्रक भर-भरकर शहरों में सिनेमाघर जाया करते थे. फिल्म में उस दौर के सुपरस्टार कलाकर स्मिता पाटिल, गिरीश कर्नाड, नसीरुद्दीन शाह और अमरीश पुरी जैसे कलाकार अहम किरदारों में नजर आए थे.

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