फर्रुखाबाद में गंगा की रेती पर धर्म और अध्यात्म का संगम 'श्री राम नगरिया मेला' पूरी तरह बस चुका है. यहां रंग-बिरंगी धर्म पताकाएं लहराने लगी हैं.
यह माघ मेला त्याग, तपस्या और समर्पण का प्रतीक है. इस ‘मिनी कुंभ’ मेले का शुभारंभ महंत ईश्वर दास महाराज और डीएम के साथ किया गया.
13 जनवरी से शुरू हुआ मिनी कुंभ मेला श्री रामनगरिया करीब एक महीने तक चलता है. मेले में करीब दो लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने स्नान किया है.
गंगा के तट पर चल रहा मेला श्री रामनगरिया में कल्पवासी एक महीने तक कल्पवास करते हैं. यहां की रोजाना मॉनिटरिंग होती है. साफ-सफाई अन्य चीज ठीक रहें. इसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है.
फर्रुखाबाद के पांचाल घाट पर लगने वाला माघ मेला काफी लोकप्रिय है. प्राचीन ग्रथों में पांचाल घाट के इस पूरे क्षेत्र को स्वर्गद्वारी कहा गया है.
1985 में एनडी तिवारी की सरकार ने मेले के लिए हर साल 5 लाख रुपए देना शुरू किया गया. हर साल माघ मेले में गंगा किनारे मेला लगता है, जिसे रामनगरिया मेला कहते हैं.
गंगा के तट पर कल्पवास कर रामनगरिया लगने का कोई लिखित प्रमाण नहीं है. शमसाबाद के खोर में प्राचीन गंगा के तट पर ढाई घाट का मेला लगता चला आ रहा है.
ये मेला काफी दूर होने से कुछ साधू-संत 1950 माघ में कुछ दिन कल्पवास कर अपनी साधना करते थे, लेकिन आम जनता का इनसे कोई सरोकार नहीं होता था.
1955 में पूर्व विधायक स्वर्गीय महरम सिंह ने इस तरफ अपनी दिलचस्पी दिखाई. उन्होंने इस साल गंगा के तट पर साधु-संतों के ही साथ कांग्रेस पार्टी का एक कैम्प भी लगाया था.
उन्होंने पंचायत सम्मलेन, शिक्षक सम्मेलन, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन और सहकारिता सम्मेलन का आयोजन कराया, जिसमे क्षेत्र के लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई.
1956 में विकास खंड राजेपुर और पड़ोसी जनपद शाहजंहांपुर के अल्लागंज क्षेत्र के श्रद्धालुओं ने माघ मेले में गंगा के तट पर मड़ैया डाली और कल्पवास शुरू किया और मेले की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी.
1965 में आयोजित हुए माघ मेले में पंहुचे स्वामी श्रद्धानंद के प्रस्ताव से माघ मेले का नाम रामनगरिया रखा गया. 1970 में गंगा तट पर पुल का निर्माण कराया गया, जिसे लोहिया सेतु नाम दिया गया था.
पुल का निर्माण हो जाने से मेले में कल्पवासियों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ने लगी, जिसके बाद फर्रुखाबाद के आस-पास के सभी जिलों के श्रद्धालु कल्पवास को आने लगे.
1985 आते-आते यह संख्या कई हजारों में हो गई, जिसके बाद जिला परिषद को मेले की व्यवस्था का जिम्मा सौपा गया. तत्कालीन डीएम केके सिन्हा ने मेले के दोनों तरफ प्रवेश द्वारों का निर्माण कराया.