Varanasi Namo Ghat: बनारस का इतिहास बहुत पुराना है. जितना पुराना यह शहर है उतने पुराने हैं यहां के घाट, हर घाट से इतिहास की कड़ियां जुड़ी हैं. देव दीपावली पर इन घाटों की सुंदरता देखते ही बनती है. यहां पर्यटक बहुत दूर-दूर से गंगा नदी में डुबकी लगाने और बनारस में अपने खोए हुए जीवन के सुकून को वापस पाने के लिए आते हैं. देव दिवाली के दिन पुननिर्मित 'नमो घाट' का उद्घाटन हो जाएगा.
हिंदू धर्म में देव दीपावली का खास महत्व होता है. दीपावली के बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि पर देव दिवाली मनाई जाती है. ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव (Lord Shiva) ने देवताओं को त्रिपुरासुर नाम के राक्षस के आतंक से मुक्ति दिलाई थी. बैकुंठ लोक में देवताओं ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं. इसीलिए हर साल इस पर्व को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है.
इस साल देव दिवाली 15 नवंबर, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी. इस मौके पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ वाराणसी में 91.06 करोड़ रुपये की लागत से पुननिर्मित 'नमो घाट' का उद्घाटन करेंगे. काशी में देव दिवाली के दिन बहुत से कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. पढ़िए बनारस के नमो घाट के बारे में.
शिव की नगरी वाराणसी में लगभग 84 घाट हैं, जो काफी प्रसिद्ध है. उन्हीं 84 घाटों में से एक नमो घाट है. जिसकी स्थापना हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है. इस घाट की सुंदरता देखते नहीं बनती है. आइए जानते हैं इस घाट की विशेषताओं के बारे में
पहले इस घाट को खिड़किया घाट के नाम से जानते थे लेकिन रेनोवेशन के बाद इस घाट का सौंदर्यकरण पर्यटक को खूब आकर्षित करता है. यदि आप बनारस आने का प्लान कर रहे है तो, इस घाट को भी अपने घूमने की लिस्ट में जरूर शामिल करें.
हाथ जोड़कर मूर्तियां बनाने के बाद घाट का नाम बदलकर "नमस्ते" कर दिया गया. यह घाट, जो लगभग 21,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र को कवर करता है. पुनर्निर्मित 'खिड़किया घाट', जो 'नमस्ते' में मुड़े हुए हाथों के रूप में तीन बड़ी मूर्तियों के कारण 'नमो घाट' के नाम से जाना जाता है.
पहले चरण में बनाई गई बड़ी 'नमस्ते' मूर्ति की लम्बाई करीब 25 फुट और छोटी प्रतिमा की लम्बाई 15 फुट है. दूसरे चरण में धातु की बनी नमस्ते मूर्ति करीब 75 फ़ीट ऊंची है और यह भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में अमृत महोत्सव में लगवाई गई. यहां हेलिकॉप्टर भी उतर सकता है.
इस घाट का निर्माण 81 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में 91.06 करोड़ रुपये से किया गया है. घाट की बनावट और अंतरराष्ट्रीय सुविधा के साथ 75 फीट ऊंचा का नमस्ते का स्कल्पचर पर्यटकों को आकर्षित करता है. इस नमो नमः स्कल्पचर की वजह से इसका नाम नमो घाट रखा गया.
अपने प्राकृतिक आकर्षण से परे, नमो घाट अत्यधिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है. नमो घाट जटिल मूर्तियों, सुंदर पत्थर की नक्काशी और जीवंत भित्तिचित्रों से सजा हुआ है.
नमो घाट पर फ्लोटिंग सीएनजी स्टेशन, ओपन एयर थियेटर, कुंड, फ्लोटिंग जेटी पर बाथिंग कुंड और चेंजिंग रूम भी बने हुए हैं. दिव्यांगजन और बुजु
मणिकर्णिका घाट, वाराणसी में सबसे प्रसिद्ध, पवित्र और सबसे पुराने घाटों में से एक है. राजा घाट के उत्तरी भाग में एक महल तथा दक्षिणी भाग में अन्नपूर्णा मठ है. इस घाट का निर्माण राजाराव बालाजी ने 1720 में करवाया था. अस्सी घाट बनारस का सबसे प्रसिद्ध घाट है. शिवरात्रि के दौरान इस घाट पर लगभग हजारों की संख्या में लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं. गंगा महल घाट पर महल था इस वजह से इस घाट का नाम “गंगा महल घाट” रखा गया.ललिता घाट पर पशुपतिश्वर की मूर्ति है, जो भगवान शिव का ही एक रूप हैं.
नमो घाट काशी का पहला घाट है जहां जल, थल और वायु मार्ग से पहुंचा जा सकता है. नमो घाट उत्तर प्रदेश के वाराणसी में राजघाट के पास स्थित है. यह परिवहन के विभिन्न साधनों के माध्यम से आसानी से पहुँचा जा सकता है. वाराणसी या बाहरी शहरों के लोग आसानी से वहां पहुंच सकते हैं. यह घाट राजघाट पुल के पास है.