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Premanand ji Maharaj: क्या है प्रेमानंद महाराज का असली नाम, कैसे बन गए संन्यासी?

वैसे तो वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज काफी मशहूर हैं, वो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, क्योंकि उनके प्रवचन सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं. ऐसे में अक्सर लोग उनके बारे में जानना चाहते हैं. आइए जानते हैं उनके बारे में.

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Premanand ji Maharaj: वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. उनके प्रवचन आए दिन सोशल मीडिया पर खूब वायरल होते रहते हैं. ऐसे में अक्सर लोग उनके बारे में जानना चाहते हैं. आइए इस सवाल का जवाब देते हैं.

कहां हुआ जन्म?

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कहां हुआ जन्म?

प्रेमानंद जी महाराज के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे कि वह उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले हैं. प्रेमानंद महाराज का जन्‍म कानपुर के सरसौल ब्लॉक के अखरी गांव में हुआ था.

पूजा-पाठ का माहौल

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पूजा-पाठ का माहौल

प्रेमानंदजी का जन्‍म एक साधारण परिवार में ही हुआ. उनके परिवार में शुरू से पूजा-पाठ का माहौल रहा. उनके पिता भी धार्मिक आस्‍था वाले व्‍यक्‍ति थे.

बचपन का नाम

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बचपन का नाम

प्रेमानंदजी के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था. इनके पिता शंभू पांडे और माता रामा देवी थी. प्रेमानंद जी के दादाजी ने भी संन्यास ग्रहण किया था.

कहां हुई पढ़ाई?

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कहां हुई पढ़ाई?

प्रेमानंद महाराज की पढ़ाई-लिखाई गांव से ही हुई. परिवार में पूजा-पाठ और अन्‍य धार्मिक कार्य होने के कारण उनका भी रुझान आध्‍यात्‍म की तरफ होने लगा. लिहाजा, वह भी पांचवीं क्‍लास से ही पिता के साथ पूजा-पाठ में जुड़ गए. 

आध्‍यात्मिक जीवन

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आध्‍यात्मिक जीवन

उनकी पढ़ाई चलती रही, लेकिन आठवीं के बाद जब वह 9वीं क्‍लास में पहुंचे, तो उन्‍होंने पूरी तरह से आध्‍यात्मिक जीवन जीने का निर्णय लिया, हालांकि यह आसान नहीं था.

भक्‍ति में लीन

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भक्‍ति में लीन

प्रेमानंद जी महाराज ने अपना फैसला घरवालों को बताया. सबसे कठिन मां को समझाना था, लेकिन वह इस कार्य में भी सफल रहे. इस तरह महज 13 साल की उम्र में ही उन्‍होंने घर त्‍याग दिया और भगवत भक्‍ति में लीन हो गए.

गंगा किनारे

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गंगा किनारे

घर से निकलने के बाद प्रेमानंद महाराज का अधिकांश समय गंगा के किनारे बीता. वह संन्‍यासी के रूप में गंगा के घाटों पर घूमते रहे. गंगा किनारे ही वह रहते. किसी ने खाना दे दिया तो खा लिया, वरना गंगाजल पीकर रह जाते थे. 

किसे माना दूसरी मां?

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किसे माना दूसरी मां?

प्रेमानंद जी महाराज ने गंगा को अपनी दूसरी मां मान लिया, इसलिए उन्होंने वाराणसी से लेकर हरिद्वार के गंगा घाटों पर भी अपना समय व्‍यतीत किया.