महंत रविंद्र पुरी जो अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के नए अध्यक्ष बने हैं हरिद्वार के मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं. वे अखाड़ा परिषद के सचिव पद पर भी रह चुके हैं. महंत रविंद्र पुरी ने 41 साल पहले संन्यास लिया था. उन्होंने पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी से जुड़कर अपनी धार्मिक यात्रा शुरू की और 1994 में अखाड़े के सचिव बने.
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का कार्यकाल पांच साल का होता है, लेकिन महंत नरेंद्र गिरि के निधन के कारण इस बार मध्यावधि चुनाव हुए. परिषद का चुनाव पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में संपन्न हुआ, जिसमें महंत रविंद्र पुरी को नया अध्यक्ष चुना गया. उनके नेतृत्व में साधु-संतों ने सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए सहयोग करने का संकल्प लिया.
महंत रविंद्र पुरी ने महानिर्वाणी अखाड़े से संन्यास की दीक्षा ली और 1998 के कुंभ मेले के बाद अखाड़े की कार्यकारिणी में शामिल हुए. 2007 में वे अखाड़े के सचिव बने और तब से उन्होंने संगठन की विभिन्न जिम्मेदारियां संभालीं. उनके सरल स्वभाव और नेतृत्व क्षमता के कारण वे अखाड़ों में एक प्रमुख संत के रूप में उभरे.
देश के चार प्रमुख कुंभ स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में साधु-संतों और अखाड़ों को सरकार की ओर से कई सुविधाएं दी जाती हैं. इन व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से लागू करवाने और सरकार व संतों के बीच समन्वय बनाने में अखाड़ा परिषद अध्यक्ष की भूमिका अहम होती है. इसके अलावा, परिषद सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार और रक्षा का कार्य भी करती है.
पूर्व अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की कार्यशैली से महंत रविंद्र पुरी असंतुष्ट थे और 2016 के उज्जैन महाकुंभ में उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी भी ठोकी थी. हालांकि, उस चुनाव में नरेंद्र गिरि अध्यक्ष बने और दोनों के बीच मतभेद लंबे समय तक बने रहे. समय के साथ दोनों के बीच संबंध बेहतर हुए, लेकिन विचारधारा में कई बार असहमति बनी रही.
2021 के हरिद्वार कुंभ में सरकार ने प्रत्येक अखाड़े को एक-एक करोड़ रुपये की सहायता राशि दी थी. हालांकि, महंत रविंद्र पुरी ने अपने महानिर्वाणी अखाड़े के लिए यह धनराशि लेने से इनकार कर दिया. यह कदम उनके प्रशासनिक फैसलों और संत समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद 1954 में शंकराचार्य द्वारा बनाई गई थी, जिसका उद्देश्य सभी अखाड़ों को एकजुट करना था. परिषद में हर अखाड़े के महात्माओं का प्रतिनिधित्व होता है और निर्णय प्रक्रिया में उनका विशेष योगदान रहता है. परिषद के सचिव और महामंत्री को वोट देने और बैठकों में भाग लेने का अधिकार होता है.
अखाड़ा परिषद न केवल सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य करती है, बल्कि समाज में धार्मिक संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. कुंभ मेले जैसे बड़े आयोजनों में अखाड़ों की व्यवस्था करना और संतों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना इसकी प्रमुख जिम्मेदारियों में से एक है.
महंत रविंद्र पुरी का का जन्म 20 अप्रैल 1970 को साधु परिवार में गुरु निरंजन देव के यहां हुआ. इनकी शिक्षा आचार्य सम्पूर्णानंद विश्वविद्यालय वाराणसी से हुई.
श्री मनसा देवी ट्रस्ट, अखिल भारतीय सनातन परिषद के अलावा महंत रविंद्र पुरी हरिद्वार के श्री रामानंद इन्सटीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, फॉर्मेसी एंड टेक्नोलॉजी, श्री श्रवण नाथ मठ, एसएमजेएन पीजी कॉलेज, श्रीपशुपतिनाथ महादेव मंदिर और श्री मोहनानंद आश्रम ट्रस्ट, बिलारी मुरादाबाद के अध्यक्ष रहे हैं. वे श्री निरंजनी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी त्रयम्बकेश्वर, नासिक महाराष्ट्र के निदेशक भी रह चुके हैं.
महंत रविंद्र पुरी ने विहिप के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाल सेवक के रूप में 1989-1990 में रामजन्मभूमि आंदोलन और 1992 में विवादित बाबरी ढांचा गिराने में अनेकों महंत, संन्यासियों और कार सेवकों का सहयोग किया.