2019 के कुंभ के मुकाबले प्रयागराज महाकुंभ का बजट इस बार 4200 करोड़ से भी ज्यादा है. मगर आज से 143 साल पहले कुंभ के आयोजन पर केवल 20,288 रुपए खर्च किए गए थे, जो आज के हिसाब से लगभग 3.65 करोड़ रुपये होते हैं.
1882 में महाकुंभ का आयोजन सिर्फ 20,288 रुपये में हुआ था. उस समय करीब 8 लाख लोग संगम में स्नान करने पहुंचे थे, जबकि देश की कुल आबादी 22.5 करोड़ थी. यह शुरुआती कुंभ आयोजन बजट के मामले में सबसे सादगी भरा था.
1894 तक देश की आबादी बढ़कर 23 करोड़ हो गई, और कुंभ में स्नान करने वालों की संख्या 10 लाख पहुंच गई. उस साल आयोजन पर 69,427 रुपये खर्च हुए, जो आज के हिसाब से लगभग 10.5 करोड़ रुपये होते हैं.
1906 के कुंभ में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़कर 25 लाख हो गई थी. इस आयोजन पर 90,000 रुपये खर्च किए गए, जो आज के दौर में लगभग 13.5 करोड़ रुपये के बराबर है.
1918 में कुंभ में 30 लाख श्रद्धालु पहुंचे और आयोजन का बजट 1.37 लाख रुपये था. यह खर्च आज के हिसाब से करीब 16.44 करोड़ रुपये होता है, जो उस समय की महत्ता और व्यवस्थाओं को दर्शाता है.
2019 के महाकुंभ मेला का बजट 4,200 करोड़ रुपये था. यह आयोजन अब तक का सबसे बड़ा और व्यवस्थित कुंभ माना गया, जिसमें करोड़ों श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई.
प्रयागराज महाकुंभ 2025 के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने 5,435.68 करोड़ रुपये का बजट तय किया है. कुल मिलाकर आयोजन का अनुमानित खर्च लगभग 7,500 करोड़ रुपये तक हो सकता है, जिसमें केंद्र सरकार का 2,100 करोड़ रुपये का योगदान भी शामिल है.
समय के साथ श्रद्धालुओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई है. व्यवस्थाओं को और बेहतर बनाने के लिए स्वच्छता, सुरक्षित स्नान घाट, चिकित्सा सुविधाएं और आधुनिक परिवहन सेवाएं सुनिश्चित की गई हैं.
2025 के महाकुंभ में सुरक्षा और सुविधा के लिए ड्रोन, सीसीटीवी और स्मार्ट निगरानी प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है. हर श्रद्धालु को बेहतर अनुभव देने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों से व्यवस्थाओं को मजबूत किया गया है.
महाकुंभ अब न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण बन गया है. यह आयोजन भारत की परंपरा को आधुनिकता के साथ जोड़कर देश-विदेश के लोगों को आकर्षित करता है.
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