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Mahakumbh History: दुर्वासा ऋषि का श्राप कैसे बना महाकुंभ की वजह, इंद्रदेव की एक गलती कैसे पूरे ब्रह्मांड को पड़ी भारी, जाने कुंभ का इतिहास

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की रौनक देखते बन रही है. इस धार्मिक नगरी में दुनियाभर से श्रद्धालु आ रहे हैं. महाकुंभ के दौरान दिव्य स्नान की परंपरा शुरू हो गई है. जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी

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Mahakumbh History: महाकुंभ 2025 की रौनक संगम नगरी में देखते बन रही है. इस धार्मिक नगरी में दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु आ रहे हैं. महाकुंभ के दौरान दिव्य स्नान की परंपरा शुरू हो गई है. इस बार 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु कुंभ स्नान के लिए पहुंचने वाले हैं. पौराणिक कथाओं की मानें तो महाकुंभ का आयोजन अमृत की खोज का परिणाम है, लेकिन यह कथा सिर्फ इतनी ही नहीं है.

श्राप का परिणाम

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श्राप का परिणाम

असल में अब जो महाकुंभ हमारे लिए वरदान साबित हो रहा है, वह एक श्राप का परिणाम था. ऐसा श्राप जो देवताओं को मिला, जिससे एक समय मानवता खतरे में पड़ गई थी. समय के साथ वही श्राप मानव समुदाय के लिए वरदान साबित हुआ. इस पूरी परंपरा के पीछे एक ऋषि का श्राप है, जो आज वरदान बनकर हमारे सामने है. देवलोक से निकली इस परंपरा की धारा में मानवता के पुण्य का वरदान तो है ही, साथ ही यह नीति और नैतिकता की शिक्षा का आधार भी है. 

पुण्य का वरदान

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पुण्य का वरदान

स्कंदपुराण की कथा के मुताबिक, स्वर्ग की राजधानी अमरावती हर सुखों से भरी थी, जिसकी वजह से इसका स्वर्ग नाम सार्थक था. देवताओं ने कई सालों तक चले देवासुर संग्राम को जीत लिया था और इसके कारण उन्हें अब शत्रुओं का भय भी नहीं था. कुल मिलाकर स्वर्ग में मन को प्रसन्न करने वाली हवा बह रही थी, उनमें फूलों की सुगंध घुली हुई थी.

मद में चूर

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मद में चूर

इनका संयोजन इतना खूबसूरत होता है कि कई बार गंधर्व अपनी तानों का गान छोड़कर उनका संगीत सुनने लग जाते थे. इसका असर ये था कि अब देवता भी धीरे-धीरे अपने कर्तव्यों को छोड़कर आमोद-प्रमोद में लगे रहते. उनके अधिपति इंद्र तो राग रंग में ऐसे डूबे थे कि अब उन्हें ज्ञात ही नहीं था कि संसार के प्रति भी उनका कुछ दायित्व है. वह गंधर्वों से दिन के आठों पहर नए-नए राग सुनते और सोमरस के मद में चूर रहते थे. 

बृहस्पति की चिंता

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बृहस्पति की चिंता

इसकी वजह देव-दानवों का वह युद्ध है, जिसमें देवराज इंद्र ने विजय पाई थी. हालांकि उन्हें विजय त्रिदेवों  (ब्रह्नमा-विष्णु-महेश) के कारण मिली थी, लेकिन विजय का अभिमान ऐसा हो गया कि वह अब सोच बैठे थे कि अब कोई आक्रमण होगा ही नहीं. देवगुरु बृहस्पति की चिंता भी यही थी. वह भविष्य की आशंका से कम चिंतित थे, लेकिन वर्तमान में संकट यह था कि राग-रंग में डूबे देवराज अब ग्रहमंडल की बैठक भी नहीं कर रहे थे.

समझाने की कोशिश

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समझाने की कोशिश

सप्तऋषियों ने इसके लिए चिंता जताई थी, लेकिन युद्ध की वजह से वह भी इस शांति को भंग नहीं होने देना चाहते थे, लेकिन कई पक्ष बीत जाने के बाद अब उन्हें चिंता होने लगी थी. ग्रहमंडल की बैठक नहीं हुई तो नक्षत्रों का सारा विधान रुक सकता था. संतुलन बिगड़ सकता था. इस चिंता को दूर करने ही देवराज इंद्र से बैठक बुलाने का अनुरोध करने ही ऋषि दुर्वासा सप्तऋषियों के प्रतिनिधि बनकर देवलोक की ओर बढ़े.

पुष्पों की माला

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पुष्पों की माला

ऋषि दुर्वासा को इंद्र के अभिमान का अंदाजा तो था, लेकिन फिर भी वह सोच रहे थे संकट को समझाने पर वह इस स्थिति को जरूर  समझ लेंगे. जब ऋषि दुर्वासा देवराज को समझाने चले तो रास्ते में उनकी मुलाकात देवर्षि नारद से हो गई. उनके हाथ में वैजयंती पुष्पों की माला थी, जिसकी सुगंध तीनों लोकों तक फैलती थी और दिव्य ऐसी कि पहनने वाले को सम्मोहित कर देती थी. नारद मुनि ने उनके कार्य को महान बताते हुए माला उन्हें भेंट कर दी. 

स्वर्ग में अपमान

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स्वर्ग में अपमान

ऋषि दुर्वासा ने इस माला को रख लिया और सोचा कि देवराज इंद्र को यह माला भेंट कर देंगे. ऋषि ने सोचा कि इंद्र अगर उनकी बात न भी समझें तो भी इस दुर्लभ उपहार से उन पर उनकी बात सुनने का एक दबाव जरूर पड़ेगा. इन्हीं बातों को सोचते-गुनते ऋषि देवलोक पहुंच गए. देवलोक पहुंचे दुर्वासा को प्रारंभ से ही अनिष्ट की आशंका लगने लगी. वह इंद्र के मन में जगे अभिमान को समझ गए थे. 

ऋषि का क्रोध

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ऋषि का क्रोध

द्वारपाल के सूचना दिए जाने के बाद भी वह अभी तक उन्हें स्वागत सहित सभा में ले जाने नहीं पहुंचे थे.  ऋषि ने इन बात को बहुत छोटा मानकर ऐसे विचारों से झटक दिया. जब वह सभा मंडल में पहुंचे तो वहां चारों ओर सिर्फ आमोद-प्रमोद का ही माहौल था. देवराज ने  दुर्वासा ऋषि को औपचारिकता वश प्रणाम किया. फिर भी ऋषि ने आशीष में हाथ उठाया और अपनी लाई पुष्पमाला उन्हें भेंट कर दी. 

इंद्रदेव को श्राप

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इंद्रदेव को श्राप

इंद्र मुस्कुराए और उस माला के फूलों को महकते हुए कहा- क्या ऋषिवर को यहां सुगंध की कुछ कमी लगी. ऐसा कहकर इन्द्र ने अभिमानवश उस पुष्पमाला को ऐरावत के गले में डाल दिया और ऐरावत ने उसे गले से उतारकर अपने पैरों तले रौंद डाला. अपनी भेंट का अपमान देखकर महर्षि दुर्वासा को बहुत क्रोध आया. जिसके बाद दुर्वासा के क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ा. उन्होंने इंद्रदेव से स्वर्ग छीनने और लक्ष्मीहीन होने का श्राप दे दिया. 

श्राप का प्रभाव

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श्राप का प्रभाव

श्राप के प्रभाव से इंद्र का सारा ऐश्वर्य लुप्त हो गया. लक्ष्मीहीन इन्द्र पर असुरों ने संगठित होकर फिर से आक्रमण कर दिया.  इंद्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए. साथ ही संसार से सारी औषधियां भी लुप्त हो गईं. राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया. हताश देवताओं को अपनी भूल का अहसास हुआ.

अमृत मंथन

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अमृत मंथन

वे  श्रीहरि विष्णु के पास पहुंचे. तब भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन का रास्ता सुझाया. इसी मंथन से अमृत निकला. जिसकी छीनाझपटी में वह देश के चार तीर्थस्थानों पर गिरा. प्रयागराज इनमें से एक है, जहां यह महाकुंभ-2025 का आयोजन हो रहा है. 

डिस्क्लेमर

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डिस्क्लेमर

यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.