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Mahakumbh 2025: अखाड़ों का रोजाना 25 लाख खर्च, कहां से और कैसे कमाते हैं अखाड़े, सीए फाइल करते हैं इनकम टैक्स रिटर्न

प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्‍या स्‍नान के दौरान साधु-संतों के साथ अखाड़ों ने अमृत स्‍नान किया. पूरे महाकुंभ में अखाड़ों ने सबका ध्‍यान खींचा. अखाड़ों के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं. अखाड़े महाकुंभ में कमाई करने नहीं बल्कि अन्‍न और धन का दान करने आते हैं.

अखाड़ों का पाई-पाई का हिसाब

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अखाड़ों का पाई-पाई का हिसाब

दरअसल, प्रत्‍येक अखाड़ों में कई पद होते हैं. इन सबके काम भी अलग-अलग होते हैं. अखाड़ों में मुंशी, प्रधान, थानापति और कोठार जैसे प्रमुख पद होते हैं. इतना ही नहीं अखाड़ों का पूरा हिसाब रखने के लिए बकायदे चार्टर्ड अकाउंटेंट होते हैं. 

अखाड़ों के चार्टर्ड अकाउंटेंट

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अखाड़ों के चार्टर्ड अकाउंटेंट

ये चार्टर्ड अकाउंटेंट न केवल अखाड़ों के एक-एक पैसे का हिसाब रखते हैं, बल्कि अखाड़ों का इनकम रिटर्न भी फाइल करते हैं. आमतौर पर अखाड़े में प्रतिदिन 25 लाख रुपये खर्च होते हैं. इसमें अन्‍न क्षेत्र और दान दक्षिणा शामिल है. 

मेले में दान करते आते हैं

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मेले में दान करते आते हैं

महाकुंभ में आए अखाड़ों की तरफ से हर दिन भंडारे की व्‍यवस्‍था की गई है. अखाड़े की ओर से अन्‍न क्षेत्र चलाया जाता है. इसमें रोजाना हजारों लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं. साथ ही उन्‍हें प्रसाद के बाद दक्षिणा भी दी जाती है. 

रोजाना 25 करोड़ रुपये खर्च

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रोजाना 25 करोड़ रुपये खर्च

इस हिसाब से पूरे महाकुंभ में अखाड़ों की ओर से 10 करोड़ रुपये तक खर्च किए जाएंगे. प्रतिदिन 25 लाख रुपये खर्च होंगे. अब सवाल आता है कि अखाड़ों की कमाई कैसे होती है. 

दो प्रधान भी नियुक्‍त

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दो प्रधान भी नियुक्‍त

अखाड़ा परिषद के अध्‍यक्ष रवींद्र पुरी के मुताबिक, पंचायती अखाड़ा निरंजनी में गिरी और पुरी दो प्रधान बनाए जाते हैं. इनके हस्ताक्षर से ही रुपये खर्च किए जाते हैं. 

श्रीमहंत और सचिव

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श्रीमहंत और सचिव

निरंजनी अखाड़े में 8 श्री महंत होते हैं. इनमें से 7 सचिव बनाए जाते हैं. अखाड़े के संचालन की जिम्‍मेदारी सचिव के पास होती है. इनके अलावा अन्‍य नागाओं को भी अलग-अलग जिम्‍मेदारी दी जाती है.  

 

अखाड़ों की कमाई कैसे होती है?

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अखाड़ों की कमाई कैसे होती है?

अखाड़ा परिषद के अध्‍यक्ष महंत रवींद्र पुरी के मुताबिक, अखाड़े महाकुंभ में दान लेने नहीं, बल्कि दान करने आते हैं. उनके मुताबिक, अखाड़े के पास अपनी खेती-बाड़ी की जमीनें और अन्य संपत्तियां हैं, जिनसे किराया आता है. 

मठ-मंदिरों से आय

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मठ-मंदिरों से आय

इसके अलावा, मठ-मंदिरों से भी आय होती है. इसे महाकुंभ में अन्न और धन के दान के रूप में खर्च किया जाता है. निरंजनी अखाड़ा प्रतिदिन करीब 25 लाख रुपये खर्च करता है.

 

इनकम टैक्स भी फाइल करते हैं

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इनकम टैक्स भी फाइल करते हैं

महंत रवींद्र पुरी के मुताबिक, अखाड़े की आय और खर्च का पूरा लेखा-जोखा रखा जाता है. इसका ऑडिट चार्टर्ड अकाउंटेंट से कराया जाता है. इनकम टैक्स रिटर्न भी फाइल की जाती है. 

कुंभ में करते हैं खर्च

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कुंभ में करते हैं खर्च

अखाड़ा परिषद के अध्‍यक्ष महंत रवींद्र पुरी के मुताबिक, प्रयाग की भूमि पुण्य की भूमि है. इसलिए यहां पर न केवल गृहस्थ बल्कि साधु-संत भी पुण्य कमाने आते हैं. 

6 साल की कमाई

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6 साल की कमाई

महंत रवींद्र पुरी के मुताबिक, दानवीर महाराजा हर्षवर्धन की तरह अखाड़े को 6 साल में जो आय होती है, उसे कुंभ और महाकुंभ में आकर दान करते हैं और फिर से धन संग्रह करते हैं, ताकि अगले कुंभ और महाकुंभ में दान किए जा सकें.