मसूरी स्थित होटल सेवॉय को देश का पहला होटल माना जाता है. 1838 में बने इस होटल में शुरुआती दौर में सिर्फ अंग्रेजों को प्रवेश मिलता था. यह होटल अपने समय का एक प्रतिष्ठित स्थान था, जो आज भी अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है.
1920 में होटल में आयोजित अफगान कांफ्रेंस ने इसे ऐतिहासिक पहचान दी. इस दौरान नेपाल के शमशेर जंग बहादुर और कपूरथला के महाराज जगजीत सिंह जैसी शख्सियतों ने यहां की प्राकृतिक सुंदरता की तारीफ की थी.
अंग्रेजों के शासनकाल में मसूरी को गर्मियों की राजधानी की तरह इस्तेमाल किया जाता था और उस वक्त भी सेवॉय होटल मसूरी की शान था. हालांकि, शुरूआत में भारतीयों को यहां प्रवेश नहीं दिया जाता था, जो बाद में बदल गया.
1906 में क्वीन मैरी के दौरे के दौरान होटल ने शाही मेहमाननवाजी का अनुभव किया. उन्होंने क्राइस्ट चर्च के पास एक पेड़ भी लगाया, जो आज भी उनकी यात्रा की याद दिलाता है.
1905 के कांगड़ा भूकंप से होटल की इमारत को नुकसान पहुंचा. 1907 में मरम्मत के बाद इसे फिर से खोला गया. 1907 में ही यहां पहली बार बिजली आई. उससे पहले इस ऐतिहासिक होटल के बॉलरूम और डाइनिंग रूम के झूमर मोमबत्तियों से ही जगमगाते थे. और आमतौर पर स्प्रिट लैंप का इस्तेमाल होता था.
युद्ध के बाद, होटल का बॉलरूम और ऑर्केस्ट्रा यहां की पहचान बन गए. डांस फॉर्म जैसे वाल्ट्ज, टैंगो और फॉक्स-ट्रॉट ने इसे एक सांस्कृतिक केंद्र में बदल दिया.
होटल ने मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी सहित कई नामी हस्तियों की मेजबानी की. इसके अलावा, ईरान के शाह और पंचम दलाई लामा जैसे अंतरराष्ट्रीय मेहमान भी यहां की मेहमाननवाजी का लुत्फ ले चुके हैं.
सेवॉय न केवल पार्टियों और जैज संगीत का केंद्र था, बल्कि यहां ब्यूटी कॉन्टेस्ट और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते थे, जो इसे और खास बनाते थे.
होटल के गौरवशाली इतिहास पर आधारित डॉक्यूमेंट्री "सेवॉय: सागा ऑफ एन आइकन" को दादा साहेब फाल्के बेस्ट डॉक्यूमेंट्री और बेस्ट सिनेमेटोग्राफी अवॉर्ड मिला है. इसे किशोर काया के निर्देशन में बनाया गया है, जिसमें प्रख्यात लेखक गणेश शैली ने एंकरिंग की है.
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