Varanasi Dev Deepawali: वाराणसी में 12 लाख दीयों वाली भव देव दिवाली देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और अगर आप भी काशी जा रहे हैं तो यहां के प्रमुख घाटों को आनंद लेना ना भूलें आइये आपको बताते हैं काशी के प्रमुख घाट, उनका इतिहास और उनकी विशेषताएं.
15 नवंबर 2024 को देव दीपावली को लेकर काशी में तैयारियां जोरों पर हैं. इस बार देव दिवाली पर काशी को 12 लाख दीयों से रोशन किया जाएगा. इस खास कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए देश के कोने-कोने से ही नहीं बल्कि विदेशी भी पहुंच रहे हैं.
अगर आप भी काशी की देव दीपावली देखने जा रहे हैं तो इस अवसर पर काशी के प्रमुख घाटों का आनंद लेना न भूलें....वैसे तो काशी में कुल 88 घाट हैं जिनमें से ज्यादातर घाट स्नान और पूजा के लिए इस्तेमाल होते हैं.
मोक्ष की नगरी कहे जाने वाला वाराणसी के घाटों का इतिहास बहुत पुराना है. जानकारी के मुताबिक वाराणसी के ज्यादातर घाटों का निर्माण 1700 ईस्वी के बाद किया गया. कुल 88 घाटों में से दो महाश्मशान घाट हैं. मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाटों पर सिर्फ दाह संस्कार किया जाता है.
अस्सी घाट वाराणसी का प्रमुख और सबसे दक्षिणी घाट है, जो अस्सी नदी और गंगा के संगम पर स्थित है. यह घाट अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है. कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने दुर्गा देवी की पूजा के बाद अपने खड्ग को अस्सी नदी में प्रवाहित किया था. यहां सुबह-शाम की गंगा आरती और विशेष धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं.
दशाश्वमेध घाट वाराणसी का सबसे प्रसिद्ध घाट है. मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने यहां दस अश्वमेध यज्ञ किए थे, जिससे यह घाट दशाश्वमेध कहलाया. यहां शाम की गंगा आरती विश्वप्रसिद्ध है, जहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होकर गंगा मां की आराधना करते हैं. यह घाट प्राचीन समय से धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है और इसे आध्यात्मिक अनुभव के लिए विशेष माना जाता है.
मणिकर्णिका घाट को 'मुक्ति स्थली' के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां अंतिम संस्कार के बाद मोक्ष प्राप्ति की मान्यता है. माना जाता है कि देवी सती का कान का मणि (मणिकर्णिका) यहां गिरा था, जिसके कारण इसका नाम मणिकर्णिका पड़ा. यहां की पवित्रता और धार्मिक महत्व के कारण इसे हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है.
पंचगंगा घाट का उल्लेख पुराणों में मिलता है और यह वाराणसी के पंचतीर्थों में से एक है. कहा जाता है कि यहां गंगा, यमुना, सरस्वती, धूतपापा, और किरणा नदियों का संगम होता है. धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व वाले इस घाट पर साधु-संतों का निवास भी देखा जा सकता है.
राजेंद्र प्रसाद घाट का नाम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सम्मान में रखा गया है. इसे पहले केदार घाट के रूप में जाना जाता था. यहां पर आने वाले भक्त गंगा में स्नान करते हैं और विशेष पर्वों पर यहां बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं. घाट का दृश्य अत्यंत सुंदर है और पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है.
आदि केशव घाट वाराणसी का उत्तरी घाट है, और यह वरुणा और गंगा के संगम पर स्थित है. माना जाता है कि भगवान विष्णु ने यहाँ अपनी मूर्ति स्थापित की थी, इसीलिए इसे 'आदि केशव' कहा जाता है. यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा और स्नान के लिए आते हैं.
यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.