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BHU Kanoon: उत्तराखंड में क्यों आया भू कानून, पांच बड़ी वजहें, बाहरी और मूल निवास को लेकर लंबा चला आंदोलन

BHU Kanoon in Uttarakhand: उत्तराखंड कैबिनेट ने 19 फरवरी को सख्त भू-कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. नए कानून के तहत हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर बाकी 11 जिलों में बाहरी राज्यों के लोग कृषि और बागवानी के लिए जमीन नहीं खरीद सकेंगे. अन्य प्रयोजन के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी. बाहरी राज्यों के व्यक्ति केवल 250 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते हैं, वह भी जीवन में एक बार और शपथ पत्र देकर. 2018 के पुराने प्रावधान निरस्त कर दिए गए हैं. इस विधेयक को मौजूदा विधानसभा सत्र में पेश किया जा सकता है. 

 

भू-कानून को मंजूरी

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 भू-कानून को मंजूरी

उत्तराखंड में सख्त भू-कानून के लिए संशोधन विधेयक को मंजूरी मिल गई है. बुधवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया. सरकार लंबे समय से जारी आंदोलन और जनता की मांग को देखते हुए इस कानून को बजट सत्र में पेश करेगी. आइए जानते हैं, नए भू-कानून में क्या प्रावधान किए गए हैं? 

उत्तराखंड का क्षेत्रफल

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उत्तराखंड का क्षेत्रफल

उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल 56.72 लाख हेक्टेयर है. इसमें कुल भौगोलिक क्षेत्र का 63.41 फीसदी वन क्षेत्र है और बंजर भूमि के तहत आता है. कृषि योग्य भूमि बेहद कम महज 7.41 लाख हेक्टेयर करीब 14 फीसदी ही है. उत्तराखंड की 2000 में स्थापना के बाद 25 साल हो चुके हैं. उत्तराखंड में एकमात्र भूमि बंदोबस्त 1960 से 1964 के बीच हुआ था, लेकिन पिछले चार-पांच दशकों में कृषि योग्य भूमि का धड़ल्ले से गैर कृषि उद्देश्यों में इस्तेमाल करने की शिकायतें स्थानीय लोग कर रहे हैं.

 

भूमि कानून में पहला संशोधन

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भूमि कानून में पहला संशोधन

उत्तराखंड में भूमि कानून में पहला संशोधन 2003 में हुआ, जब एन.डी. तिवारी सरकार ने बाहरी लोगों के लिए कृषि भूमि खरीद की सीमा 500 वर्ग मीटर तय की. 2008 में बी.सी. खंडूरी सरकार ने इसे घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया. 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने बड़ा बदलाव करते हुए उद्योगों के लिए जमीन खरीद की सीमा और किसान होने की बाध्यता हटा दी.  मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सिंगल विंडो एक्ट लागू किया, जिससे गैर-कृषि भूमि राज्य सरकार में निहित नहीं हो सकती.

उत्तराखंड में मूल निवास प्रमाण पत्र की मांग

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 उत्तराखंड में मूल निवास प्रमाण पत्र की मांग

उत्तराखंड में 1950 को मूल निवास की कटऑफ डेट मानने की मांग उठ रही है. 1950 में जारी प्रेसीडेंशियल नोटिफिकेशन के मुताबिक संविधान लागू होने के समय जो व्यक्ति जिस राज्य में था, वही उसका मूल निवासी होगा. 1961 में इसे दोबारा स्पष्ट किया गया. लेकिन 2000 में राज्य बनने के बाद, उत्तराखंड सरकार ने 1985 को कटऑफ वर्ष माना. 2010 में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने 1950 की अधिवास व्यवस्था को सही ठहराया, लेकिन 2012 में हाईकोर्ट ने 9 नवंबर 2000 को ही मूल निवास की आधार तिथि मान लिया, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया.

भूमि बंदोबस्त और कृषि योग्य भूमि की कमी

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 भूमि बंदोबस्त और कृषि योग्य भूमि की कमी

उत्तराखंड में आजादी के बाद से एकमात्र भूमि बंदोबस्त 1960-64 के बीच हुआ. बीते दशकों में विकास, पर्यटन, औद्योगिकीकरण और आपदाओं के कारण कृषि भूमि की कमी हुई, लेकिन इसका सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. ब्रिटिश काल में 1815 से 1924  के बीच कई बार भूमि बंदोबस्त हुए, लेकिन स्वतंत्रता के बाद बड़े बदलाव नहीं हुए.  

बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीद की सीमा

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बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीद की सीमा

उत्तराखंड में आजादी के बाद से एकमात्र भूमि बंदोबस्त 1960-64 के बीच हुआ. बीते दशकों में विकास, पर्यटन, औद्योगिकीकरण और आपदाओं के कारण कृषि भूमि की कमी हुई, लेकिन इसका सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. ब्रिटिश काल में 1815 से 1924  के बीच कई बार भूमि बंदोबस्त हुए, लेकिन स्वतंत्रता के बाद बड़े बदलाव नहीं हुए.  

हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर को छूट

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हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर को छूट

इन दो जिलों को छोड़कर बाकी 11 जिलों में बाहरी राज्यों के लोग कृषि और बागवानी के लिए जमीन नहीं खरीद सकेंगे. अन्य प्रयोजन के लिए जमीन खरीदने से पहले सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य होगा. 

 

चकबंदी और बंदोबस्ती प्रक्रिया तेज होगी

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चकबंदी और बंदोबस्ती प्रक्रिया तेज होगी

पहाड़ी जिलों में चकबंदी और बंदोबस्ती की प्रक्रिया को तेज किया जाएगा ताकि भूमि का सही उपयोग हो सके.   अब जिलाधिकारी जमीन खरीदने की अनुमति नहीं दे सकेंगे, जिससे अंधाधुंध खरीद-बिक्री पर रोक लगेगी.

 

जमीन खरीद के लिए पोर्टल बनेगा

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जमीन खरीद के लिए पोर्टल बनेगा

एक डिजिटल पोर्टल बनाया जाएगा, जिसमें राज्य के बाहर के लोगों द्वारा खरीदी गई हर इंच जमीन का रिकॉर्ड दर्ज होगा. बाहरी राज्यों के लोगों को जमीन खरीदने से पहले शपथ पत्र देना होगा और उनकी जमीन को आधार से लिंक किया जाएगा. 

नियमों का उल्लंघन करने पर जमीन जब्त होगी

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 नियमों का उल्लंघन करने पर जमीन जब्त होगी

यदि कोई व्यक्ति तय सीमा से अधिक जमीन खरीदता है या गलत प्रयोजन के लिए उपयोग करता है, तो वह जमीन सरकार में निहित कर दी जाएगी. नगर निकाय सीमा के भीतर तय भू उपयोग नियमों का पालन अनिवार्य होगा. यदि कोई नियमों के विपरीत भूमि का उपयोग करता है, तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी. 

पेपरलेस रजिस्ट्री लागू होगी

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 पेपरलेस रजिस्ट्री लागू होगी

राज्य में पेपरलेस रजिस्ट्री प्रक्रिया लागू होगी, जिससे भूमि खरीद-फरोख्त में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ेगी. इस प्रणाली से दस्तावेज़ी प्रक्रिया डिजिटल होगी, समय और संसाधनों की बचत होगी, साथ ही धोखाधड़ी की संभावना कम होगी. नागरिक ऑनलाइन माध्यम से रजिस्ट्री करा सकेंगे, जिससे प्रक्रिया सरल, सुरक्षित और तेज़ हो जाएगी. 

निवेशकों के लिए सहूलियत

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 निवेशकों के लिए सहूलियत

निवेशकों को इंडस्ट्री के लिए जमीन लेने में छूट दी जाएगी, लेकिन यदि वे अन्य प्रयोजन के लिए जमीन का उपयोग करते हैं, तो सख्त कार्रवाई होगी. उत्तराखंड के स्थायी निवासियों के लिए जमीन खरीदने पर कोई सीमा नहीं होगी, जिससे वे अपनी जरूरतों के अनुसार जमीन खरीद सकते हैं.