राजस्थान के लिए गर्व का विषय है कि दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान समारोह आयोजित किया जाएगा. जिसमे राजस्थान के उदयपुर के शिक्षक दुर्गाराम मुवाल को प्रशस्ति पत्र और मैडल देकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सम्मानित करेगीं.
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Teachers Day 2022: चाणक्य नीति में कहा गया है एक शिक्षक कभी साधारण नहीं होता निर्माण और प्रलय उसकी गोद में पलते हैं. एक शिक्षक वो होता है जो साम दाम दंड और भेद की नीतियों को अपनाकर अपने शिष्यों को जीवन में सफलता का मार्ग बताता है. शिक्षक वो है जो अपने शिष्य की सफलता पर सबसे ज्यादा खुश होता है और अपना जीवन सफल समझता है.आज की कहानी झीलों की नगरी उदयपुर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले शिक्षक की है, जिसने अपने विद्यार्थियों को ना सिर्फ शिक्षा दी बल्कि उन्हें मानव तस्करी से बचाकर उन्हें नया जीवन भी दिया.
उदयपुर जहां अपनी खूबसूरती के लिए विश्व प्रसिद्ध है, वहीं इस शहर की खूबसूरती पर सबसे बड़ा दाग यहां दिनों दिन बढ़ रही ह्यूमन ट्रैफिकिंग है. यहां आस पास के आदिवासी अंचल से सैकड़ों आदिवासी बच्चों को ले जाकर गुजरात में मजदूरी करायी जाती है और उनका बचपन छीन लिया जाता है. लेकिन कहते है ना एक टीचर अपने स्टूडेंट का दोस्त और रक्षक भी होता है, इस अपराध को अपने क्षेत्र में खत्म करने वाले एक शिक्षक हैं जिन्हें शिक्षक दिवस पर सम्मानित किया जाएगा. इन शिक्षक का नाम दुर्गाराम है जो मूलतः नागौर के रहने वाले हैं और उदयपुर के फलासिया पंचायत समिति के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय पारगियापाडा स्कूल में कार्यरत हैं. राजस्थान के लिए गर्व का विषय है कि दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान समारोह आयोजित किया जाएगा. जिसमे राजस्थान के दुर्गाराम मुवाल को प्रशस्ति पत्र और मैडल देकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सम्मानित करेगीं.
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जन्म भूमि नागौर और कर्मभूमि बना आदिवासी अंचल
राजस्थान के नागौर जिले के रहने वाले दुर्गाराम को बच्चों को पढ़ाना पसन्द था. वे बताते है कि मुझे बच्चों को पढ़ाने में मजा आता है, क्योंकि ऐसा करके आप समाज और देश के लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं. दुर्गाराम ने पढ़ाई-लिखाई के बाद बतौर शिक्षक उदयपुर के एक आदिवासी गांव के स्कूल में पढ़ाना शुरू किया.इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि कुछ बच्चे रोज स्कूल आ रहें थे, लेकिन अचानक ही उन्होंने स्कूल आना बंद कर दिया. दुर्गाराम को ये सब थोड़ा अजीब लगा उन्होंने बच्चों के स्कूल ना आने का कारण खोजने की कोशिश की तो पता चला की बच्चों को गुजरात की सीमा पर ले जाकर बेहद कम पैसे में उनसे 18 घंटे मजदूरी करवाई जाती है और आर्थिक मजबूरी के चलते वे बच्चे किसी से कुछ कह भी नहीं पाते. मासूम बच्चों के कंधो पर बस्ते का नहीं बल्कि परिवार को पालने की जिम्मेदारी का बोझ आगया था.
दुर्गाराम अपने स्कूल के बच्चों का बचपन इस तरह खत्म होते नहीं देख सकते थे, उन्होंने इस बारे में और ज्यादा जानकारी जुटाई तो पता लगा कि कई बिचौलिए इस बाल तस्करी में लिप्त थे. उन्होंने बताया कि वो किसी भी हालत में उन बच्चों को बिचौलियों से बचाना चाहते थे. उन्होंने निर्णय लिया कि वे इस बुराई से लड़ने की दिशा में काम करेंगे. इसलिए उन्होंने शिक्षा को हथियार बनाया और अभिभावकों के बीच शिक्षा को लेकर जागरूकता अभियान की शुरुआत की. मानव तस्करी से बच्चों को बचाना जोखिम भरा था क्योंकि इसके पीछे कई बड़े लोगों का हाथ था.
साल 2008 से शुरू हुई मानव तस्करी रोकने की मुहिम
शिक्षक ने बताया कि 2008 से वे निरंतर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए काम कर रहे हैं. दुर्गाराम जागरूकता अभियान के दौरान घर-घर गये और अभिभावकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता पैदा की. उन्हें बताया कि बच्चों को पढ़ाकर वे अपने आप को और अपने बच्चों को बेहतर भविष्य दे सकते हैं ना की मजदूरी करवाकर साथ ही मानव तस्करी को रोकने के लिए दुर्गाराम ने कुछ विश्वासपात्र लोगों को साथ लेकर अपना मुखबिर तंत्र डेवलप कर तस्करी की सूचना इकठी करने लगे. उनकी मेहनत रंग लाई और तब से अब तक 400 से ज्यादा बच्चों को इस नारकीय जीवन से मुक्त करवाकर वापस शिक्षा से जोड़ा गया, जिनमें 250 से ज्यादा बालिकाएं शामिल हैं. इन सभी बच्चों को उन्होंने गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और राजस्थान के विभिन जिलों से मुक्त करवाया और वापस शिक्षा से जोडा.
कई बार धमकियां मिलने के बाद भी कदम नहीं हटाये पीछे
ह्यूमन ट्रैफिकिंग का नेटवर्क बहुत बड़ा था और दुर्गाराम एक साधारण शिक्षक ऐसे में यह काम बेहद जोखिम भरा था, लेकिन एक शिक्षक के लिए उनके छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाला किसी दुश्मन से कम नहीं होता है. दुर्गाराम ने बताया कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग की अधिकांश घटनाएं रात में होती है. ज्यादातर घटनाओं को उन्होंने अकेले ही रोका. उन्होंने कुछ घटनाओं में पुलिस और चाइल्ड हेल्पलाइन का सहारा लिया. उन्होंने कहा कि पहले मैं यह कार्य बिना किसी को बताये गुप्त तरीके से कर रहा था, लेकिन बाद में सभी को पता चला और लोग भी साथ जुड़ने लगे. बालश्रम और बाल तस्करी के कार्य करने वाले बहुत बड़े गिरोह हैं, इन गिरोह की तरफ से दुर्गाराम को कई बार इस कार्य को छोड़ने, क्षेत्र छोड़ने और यहां तक कि जान से मारने की धमकियां भी मिली. एक बार तो रात में 2 बजे 25-30 लोगों ने दुर्गाराम को जान से मारने के इरादे से घेर लिया था, जिसका उन्होंने बिना डरे सामना किया और अपने हौसलों को मजबूत करते हुए दुगनी गति से इन घटनाओं को रोकने की दिशा में आगे बढ़ने लगे.
दुर्गाराम ने सच्चे अर्थों में गुरु शिष्य परंपरा को निभाया है और ना जाने कितने ही बच्चों को ह्यूमन ट्रैफिकिंग के दलदल में जाने से बचाया है.वाकई अगर दुर्गाराम जैसे शिक्षक हो तो हमारे देश का भविष्य उज्जवल है.
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