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Jaisalmer: जैसलमेर में आज अंतर्राष्ट्रीय ऊंट दिवस मनाया गया. ऊंट के संरक्षण को लेकर राजस्थान सरकार ने 30 जून, 2014 को इसे राज्य पशु घोषित किया था, परंतु इस रेगिस्तान की जहाज की दुर्दशा कोई भी सरकार नहीं देख रही हैं. ऊंट को राज्य पशु घोषित कर उसके संरक्षण को लेकर प्रयास करने के दावों की हकीकत जैसलमेर पोकरण मार्ग पर सडक़ों पर आए दिन दम तोड़ रहें ऊंटों से बयां हो रही हैं. यहां आए दिन सड़क और रेल दुर्घटनाओं में ऊंटों की मौत हो रही हैं. दूसरी तरफ जैसलमेर जिले में उष्ट्र विकास योजना की प्रगति इतनी धीमी है कि निर्धारित लक्ष्य में ऊंटपालकों को लाभान्वित करने की सरकारी मंशा पूरी होती नजर नहीं आती हैं.
रेगिस्तान के जहाज रूप में विशिष्ट पहचान रखने वाला ऊंट अब विलुप्त होने के कगार पर हैं, ऊंट पर इन दिनों संकट के गहरे बादल मंडरा रहें हैं और आने वाले समय में शायद भावी पीढ़ी ऊंट को तस्वीरों में ही देख पाएगी. राज्य सरकार की ओर से ऊंटों की लगातार घटती संख्या को रोकने के लिए और ऊंटों के संरक्षण के लिए उष्ट्र विकास योजना शुरू की गई थी, लेकिन जागरुकता के अभाव में यह योजना भी कारगर साबित नहीं हो रही है. इस योजना के तहत जिले के सभी मूल निवासी ऊंट पालक चाहे वे किसी भी वर्ग से संबंधित हो उन्हें जिले में पाई जाने वाली सभी उष्ट्र वंशीय नस्लों के लिए सहायता दी जाएगी. इस योजना के तहत सभी ऊंट पालक अपना पंजीकरण नजदीकी पशु चिकित्सालय में करवा सकते हैं. पंजीकृत सभी उष्ट्र वंशीय पशुओं को औषधियां, खनिज लवण और कृमिनाशक दवा विभागीय पशुधन की ओर से निशुल्क उपलब्ध करवाई जाएंगी तथा पंजीकृत ऊंटनी के ब्याने पर उत्पन्न नर या मादा बच्चे को एक माह की उम्र पर तीन हजार रुपए, 9 माह की उम्र पर तीन हजार रुपए तथा 18 माह की उम्र पूर्ण करने पर चार हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी. पंजीकृत सभी उष्ट्र वंशीय पशुओं का भामाशाह पशु बीमा योजना अंतर्गत बीमा कराया जाना आवश्यक किया गया था. पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष ऊंटों की संख्या घट रही हैं. पशुपालन विभाग द्वारा पशुगणना 2007 की तुलना में 2012 में ऊंटों की संख्या में 22.79 फीसदी कमी हुई हैं, आशंका है कि यदि इस दिशा में कुछ कदम नहीं उठाया गया तो, ऊंट किताबों व इंटरनेट तक ही सिमटकर रह जाएंगे.
योजनाओं की जानकारी का अभाव में कम हो रही ऊंटों की संख्या
रेगिस्तान के जहाज रूप में विशिष्ट पहचान रखने वाला ऊंट अब विलुप्त होने के कगार पर हैं, ऊंट पर इन दिनों संकट के गहरे बादल मंडरा रहें हैं और आने वाले समय में शायद भावी पीढ़ी ऊंट को तस्वीरों में ही देख पाएगी. राज्य सरकार की ओर से ऊंटों की लगातार घटती संख्या को रोकने के लिए और ऊंटों के संरक्षण के लिए उष्ट्र विकास योजना शुरू की गई थी, लेकिन जागरुकता के अभाव में यह योजना भी कारगर साबित नहीं हो रही है. इस योजना के तहत जिले के सभी मूल निवासी ऊंट पालक चाहे वे किसी भी वर्ग से संबंधित हो उन्हें जिले में पाई जाने वाली सभी उष्ट्र वंशीय नस्लों के लिए सहायता दी जाएगी. इस योजना के तहत सभी ऊंट पालक अपना पंजीकरण नजदीकी पशु चिकित्सालय में करवा सकते हैं. पंजीकृत सभी उष्ट्र वंशीय पशुओं को औषधियां, खनिज लवण और कृमिनाशक दवा विभागीय पशुधन की ओर से निशुल्क उपलब्ध करवाई जाएंगी तथा पंजीकृत ऊंटनी के ब्याने पर उत्पन्न नर या मादा बच्चे को एक माह की उम्र पर तीन हजार रुपए, 9 माह की उम्र पर तीन हजार रुपए तथा 18 माह की उम्र पूर्ण करने पर चार हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी. पंजीकृत सभी उष्ट्र वंशीय पशुओं का भामाशाह पशु बीमा योजना अंतर्गत बीमा कराया जाना आवश्यक किया गया था. पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष ऊंटों की संख्या घट रही हैं. पशुपालन विभाग द्वारा पशुगणना 2007 की तुलना में 2012 में ऊंटों की संख्या में 22.79 फीसदी कमी हुई हैं, आशंका है कि यदि इस दिशा में कुछ कदम नहीं उठाया गया तो, ऊंट किताबों व इंटरनेट तक ही सिमटकर रह जाएंगे.
राज्य सरकार ऊंटों की संख्या को बढ़ावा देने के लिए राज्य पशु ऊंट के बच्चे पैदा होने पर पशुपालक को 10 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाती हैं, उसके बाद भी प्रशासन द्वारा इनका प्रचार प्रसार नहीं होने के कारण पशुपालकों को इस संबंध में जानकारी नहीं होने के कारण क्षेत्र में ऊंटों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है. यदि सरकार द्वारा ऊंट पालकों को समय पर इनका प्रचार प्रसार करते हैं, तो निश्चित तौर पर ऊंट पालकों को सरकार द्वारा दी जा रही प्रोत्साहन राशि का लाभ मिल सकता है. विश्व में ऊंटों के संरक्षण को लेकर जर्मनी की डॉ.ईलसे ने इसको लेकर कई बार सरकार के पास बात पहुंचाई, परंतु सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. जैसलमेर के सावंता गांव के सुमेर सिंह जो कि एक ऊँट पालक हैं, ऊंटों के संरक्षण को लेकर अपना दुःख बया किया की इस तरह ऊंटों की अनदेखी की गयी तो आने वाले समय में यह रेगिस्तान का जहाज खत्म हो जायेगा.
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दुर्घटनाओं में मौत और अकाल से हाहाकार
ऊंटों की संख्या कम होने का एक और मुख्य कारण आए दिन होने वाली रेल और सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली ऊंटों की मौत भी हैं. गत एक वर्ष में रामदेवरा और पोकरण क्षेत्रों में रेल और सडक़ दुर्घटनाओं में दो दर्जन ऊंटों से अधिक ऊंटों की मौत हो चुकी हैं. वर्ष 2012 में राज्य सरकार की ओर से की गई पशुगणना में जिले में करीब 49 हजार ऊंट और ऊंटनियां थे, जो धीरे.धीरे घटते जा रहें हैं. दूसरी ओर हाल ही में बारिश के अभाव में अकाल का दंश झेल रहें जैसलमेर जिले में ऊंट बेसहारा हो रहें हैं और संरक्षण के अभाव में काल का ग्रास भी बन रहें हैं. जैसलमेर जिले के धोलिया, खेतोलाई, ओढाणिया, मोडरडी, चांदनी, महेशों की ढाणी, चौक आदि आसपास क्षेत्र में ऊंट अभ्यारण्य क्षेत्र विकसित करने की दरकार हैं, यहां तारबंदी और उसमें पेयजल व चारे की व्यवस्था अकाल के समय भी की जाये. रेलवे ट्रेक व सड़कों के किनारे दोनों तरफ तारबंदी की व्यवस्था हो, जिससे ऊंट रेलवे ट्रेक व सड़क पर नहीं पहुंच सकें और हादसे में काल का ग्रास न बने. ऊंटों के विचरण के लिए जिले की सबसे बड़ी देगराय ओरण थी, जिस पर अब निजी कम्पनियों ने अपना कब्ज़ा कर लिया हैं, ओरण के अंदर बिजली के बड़े बड़े पॉवर हॉउस बनाने शुरू कर दिए हैं. आने वाले समय में वहां पशुओं को विचरन पर पाबंदी भी लग जायेगी.
ऊंट को पालना भी कम खर्चीला नहीं
एक बार में 100 से 150 लीटर पानी पीने वाला ऊंट एक सप्ताह बिना पानी के भीषण गर्मी में रह सकता है, इस विशेषता के कारण पश्चिमी राजस्थान के गांवों में ऊंट लंबे अरसे से काफी उपयोगी रहा है. सरकार ने हाल ही में ऊंट की बिक्री व परिवहन पर रोक लगा दी थी, इसका भी विपरीत प्रभाव पड़ा और ग्रामीण इसका कुनबा बढ़ाने में कम रुचि लेने लगे, क्योंकि ऊंट को पालना भी कम खर्चीला नहीं है. गौरतलब है कि कुछ वर्ष पहले गांवों में लोगों की आजीविका के साधन के रूप में ऊंट की पहचान थी. ऊंट के कम उपयोग के बावजूद विदेशी पर्यटक ऊंट की सवारी करना ज्यादा पसंद करते हैं, कैमल सफारी के माध्यम से कई पशुपालक आजीविका चला रहें हैं और साथ ही ऊंट का खर्च भी निकाल रहें हैं. धूल भरे रेगिस्तान में 65 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाला ऊंट रेगिस्तान का जहाज कहां जाता हैं. सवारी की दृष्टि से सबसे उत्तम गोमठ नस्ल मानी जाती है, वहीं बोझा ढोने के लिए बीकानेरी ऊंट को श्रेष्ठ माना जाता है. ऊंटों के संरक्षण के लिए बीकानेर में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र की भी स्थापना की गई है. आपको बता दें कि ऊंटों के संवर्धन और संरक्षण के लिए शुरू की गई महत्वाकांक्षी सरकारी योजना का अभी तक जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार प्रसार नहीं के बराबर ही हैं, अधिकांश ग्रामीणों को योजना का नाम तक मालूम नहीं है, ऐसे में टोडिया के जन्म लेने से पहले से प्रारंभ होने वाली योजना की क्रियान्विति में वे कैसे हिस्सेदारी निभा पाएंगे. विभाग की मानें तो पहले सभी जगहों से प्रस्ताव प्राप्त होंगे, उसके बाद जिला स्तर से अधिकारी जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लेंगे और संतुष्ट होने के बाद संबंधित पशुपालक को लाभान्वित किया जाएगा.
दो से तीन सौ रुपए लीटर बिकता है ऊंटनी का दूध ,कई बीमारियों में बहुपयोगी
लोकहित पशुपालक संस्थान द्वारा सादड़ी में देश की पहली ऊंटनी के दूध की डेयरी स्थापित की गई है, जिससे राज्य में 200 रुपए व दूसरे राज्यों में 300 रुपए प्रति लीटर की कीमत से दूध बेचा जा रहा है. ऊंटनी का दूध मंदबुद्धि, कैंसर, लीवर, शुगर के साथ कई जटिल बीमारियों में औषधि के रूप में उपयोग लिया जाता हैं.
Reporter - Shankar Dan
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